पद्मिनी की जौहर गाथा और मुंतशिर का अंदाज
बोले- रानी नहीं तो उनकी जौहर चिता की राख माथे पर मलने के लिए, यह झकझोर देगा
मनोज मुंतशिर ने ‘जौहर’ काव्य पाठ किया रिलीज।
हिंदी फिल्मों में कई यादगार और लोकप्रिय गाने लिख चुके गीतकार मनोज मुंतशिर ने बुधवार शाम एक गाना रिलीज किया। मनोज मुंतशिर ने श्याम नारायण पांडेय के लिखे काव्य ‘जौहर’ को खुद की आवाज देकर अपने यूट्यूब चैनल पर अपलोड किया। उन्होंने इस काव्य पाठ को रिक्रिएट कर पद्मिनी की जौहर गाथा और राजस्थान के शौर्य का इतिहास बताया है।
राजस्थान के शौर्य को बताने वाली इस कविता से पहले उन्होंने एक वीडियो जारी कर कहा कि ‘कमजोर हृदय, दुर्बल आत्मसम्मान और वो सभी जिनका खून ठंडा और राष्ट्र गौरव शून्य हो चुका है। यह काव्य पाठ उनके लिए नहीं है। कुछ और देख सुन ले। आत्मा को अफीम चटाकर सुलाने वाली कई लोरियां यूट्यूब पर गाई जा रही है। कंटेंट की कोई कमी नहीं है। जौहर का ये काव्य पाठ उनके लिए है, जो झूठ के कीचड़ पर नहीं सच की आकाश गंगा पर चलते हैं। भारत की मिट्टी को चन्दन समझ कर मस्तक पर मलते हैं।
मनोज मुंतशिर।
मनोज मुंतशिर ने कहा कि उन्होंने ये संकल्प लिया है कि देश के साहित्य और इतिहास की वो मशाल जो खंडहर हो चुके पुस्तकालय और अवशेष मात्र बचे किलों में अब तक प्रज्ज्वलित रहने के लिए संघर्ष कर रही है, वो उन मशालों को खुले आसमान के तले लाएंगे। ताकि प्रकाश लोगों तक पहुंचे। देश के लोग देखें कि उनकी साहित्यिक धरोहर कितनी भव्य है और इतिहास कितना उज्जवल है। इसकी शुरुआत उन्होंने जौहर एक चिंगारी से की है।
उन्होंने महारानी पद्मिनी की जौहर गाथा को भारतभूमि की अनकही गाथा बताते हुए कहा कि जौहर वो काव्य है जो आपको सुलाएगा नहीं झकझोर देगा। इसे सुनकर आप अपनी हड्डियों में वो ताप महसूस करेंगे, जो महारानी पद्मिनी और उनकी सखियों ने जौहर की ज्वाला में झुलसते हुए सहा था।
पराधीनता की बजाय मृत्यु का आलिंगन है जौहर
राजस्थान की युद्ध परंपरा में पराधीनता के बजाय मृत्यु को स्वीकार किया जाता था। युद्ध के दौरान परिस्थितियां ऐसी बन जाती थी कि शत्रु के घेरे में रहकर जीवित नहीं रहा जा सकता था। तब राजा समेत सभी पुरूष रणक्षेत्र में उतर पड़ते थे कि या तो विजयी होकर लौटेंगे या फिर विजय की कामना हृदय में लिए अंतिम दम तक शौर्यपूर्ण युद्ध करते हुए दुश्मन सेना का ज्यादा से ज्यादा नाश कर शहीद हो जाएंगे। पुरुषों के इस आत्मघाती कदम को ‘शाका’ कहा गया।
इसके बाद रानी समेत सभी महिलाओं का भी पराधीनता स्वीकार करने के बजाय जलती चिता की ज्वाला में कूदकर सामूहिक बलिदान दे देना जौहर कहलाया। पद्मावती मेवाड़ की महारानी थीं। माना जाता है कि चित्तौड़ में खिलजी के हमले के वक्त अपने सम्मान को बचाने के लिए उन्होंने 1303 में जौहर किया था।
खबरें और भी हैं…