RSS के लिए Modi हैं छोटी मछली – असली खेल तो 2026 में है!

RSS में बढ़ते असंतोष को देखते हुए, कुछ नेता यह भी सोचने लगे हैं कि पार्टी को अपनी विचारधारा और मूल सिद्धांतों पर वापस लौटने की जरूरत है।

RSS | हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 के परिणाम ने बीजेपी को एक निश्चित राहत दी है, लेकिन यह जीत पार्टी के आंतरिक समीकरणों को शांत नहीं कर पाई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में बीजेपी ने हरियाणा जैसे छोटे राज्य में अपनी स्थिति को मजबूत किया है, लेकिन संघ के भीतर असंतोष की लहरें अब भी उठ रही हैं।

हरियाणा की जीत को देखकर बीजेपी उत्साहित है, लेकिन RSS इस पर तटस्थ है। संघ का मानना है कि हरियाणा जैसे छोटे राज्य की जीत से न तो राष्ट्रीय स्तर पर कोई ठोस परिवर्तन आएगा और न ही इससे मोदी के नेतृत्व को लेकर उठते सवाल खत्म होंगे। RSS के नेता इसे एक छोटी मछली का शिकार मानते हैं, जबकि असली खेल तो 2026 के चुनावों में होना है, जहां देशभर में बीजेपी की स्थिरता और विचारधारा की परीक्षा होगी।

इस असंतोष का मुख्य कारण यह है कि मोदी-शाह की जोड़ी ने पिछले एक दशक में पार्टी के आंतरिक ढांचे को अपने तरीके से व्यवस्थित किया है, जो कई RSS के गुटों के लिए चिंता का विषय बन गया है। मोदी जल्द ही 75 वर्ष के होने जा रहे हैं, और इस उम्र में उन्हें नई रणनीतियों और नेतृत्व में बदलाव की आवश्यकता महसूस हो सकती है। संघ के कुछ नेता मानते हैं कि यदि पार्टी ने मोदी के बाद का नेतृत्व अभी से तैयार नहीं किया, तो 2026 में भारी नुकसान हो सकता है।

RSS में बढ़ते असंतोष को देखते हुए, कुछ नेता यह भी सोचने लगे हैं कि पार्टी को अपनी विचारधारा और मूल सिद्धांतों पर वापस लौटने की जरूरत है। उनका तर्क है कि मोदी सरकार ने जिस प्रकार से व्यक्तिगत लोकप्रियता और सत्ता के स्थायित्व पर ध्यान केंद्रित किया है, उससे पार्टी की मूल पहचान कमजोर हो रही है।

बीजेपी को हरियाणा की जीत के साथ ही कई नई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। महाराष्ट्र और झारखंड के चुनावों में भी यदि पार्टी को अपेक्षित परिणाम नहीं मिलते हैं, तो संघ के भीतर मोदी के नेतृत्व को लेकर और भी सवाल उठेंगे। संघ और बीजेपी के बीच का यह खींचतान 2026 में देश की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

“हरियाणा की जीत से MODI को राहत, लेकिन RSS की चुनौतियां अभी बाकी”

इसलिए, हरियाणा की जीत को लेकर बीजेपी का उत्साह अस्थायी हो सकता है, लेकिन संघ की चिंताएँ और असंतोष अभी भी बनी हुई हैं। असली चुनौती 2026 में होगी, जब बीजेपी को अपनी विचारधारा और नेतृत्व के दृष्टिकोण पर गंभीरता से विचार करना होगा।

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