मोदी ने चहेते उद्योगपतियों के 11 लाख करोड़ माफ़ करके और बदत्तर की अर्थव्यवस्था ; येचुरी
अपने चहेते उद्योगपतियों के यदि 11 लाख करोड़ रुपये के कर्ज़े माफ़ नहीं करती मोदी सरकार तो आज देश की स्थिति कुछ और होती। दोस्तों के क़र्ज़ माफ़ करने की जगह बैंकों से ये रकम यानि 11 लाख करोड़ लेकर पीएम मोदी अगर देश में निवेश करते, संसाधनों पर खर्च करते और रोजगार बढ़ाते तो हमारी अर्थ व्यवस्था का आज इतना बुरा हाल न होता।ये कहना है सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी का जिनकी गिनती देश के प्रमुख राजनैतिक विचारकों में होती है।
देश 24×7 से ख़ास बातचीत में कम्युनिस्ट पार्टी के मौजूदा सबसे बड़े नेता सीताराम येचुरी ने कहा कि आर्थिक बदहाली के लिए सिर्फ हालात को जिम्मेदार ठहराना गलत होगा। उनका इशारा कोविड के लॉक डाउन की ओर था। ‘ सच तो ये है कि देश के हालात नोटबंदी और जल्दबाज़ी में लागू की गयी जीएसटी के बाद से ही ख़राब होने लगे थे। इस बदहाली के साथ ही कारपोरेट दोस्तों के क़र्ज़ माफ़ करना एक और भी बड़ा गलत फैसला था, ‘ येचुरी ने बताया।
अर्थ जैसे गूढ़ विषय को सहजता से समझाते हुए येचुरी ने कहा ,’ देखिये मंदी के इस दौर में आम लोगों के हाथ में पैसा खत्म होता जा रहा है। उनकी जेब खाली हो रही है। इसलिए बाजार में भी डिमांड तेज़ी से कम हो रही है जिसका असर हर तरह के कारोबार पर पड़ रहा है। यही नहीं, विदेश में भी डिमांड कम हुई है इसलिए हमारे निर्यात पर भी असर पड़ा है।… अब आप कहेंगे कि रास्ता क्या है इससे निपटने का ? इस पर हमारा सुझाव है कि लोगों की खरीदने की क्षमता बढ़ायी जाये। इस क्षमता को बढ़ाने के लिए सरकार को बड़े पैमाने पर पैसा, देश के इंफ्रास्ट्रक्चर (संसाधन) और बाजार में निवेश करना होगा। रोज़गार के मौके बढ़ाने होंगे। युवकों के हाथ में कमाई का पैसा रखना होगा। लेकिन मोदी सरकार ने एक बड़ी रकम इस दिशा में लगाने की जगह अपने कारपोरेट मित्रों के लोन माफ़ करने में खर्च दी। ये एक बड़ी गलती थी। ‘
देश की बिगड़ती माली हालत पर जब वामपंथी नेता से पूछा गया कि कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि मोदी और शाह के पास देश की आर्थिक स्थिति सुधारने का विजन नहीं है, इस सवाल पर येचुरी ने कहा , ‘ विजन न होता तो भी कोई बात नहीं थी क्यूंकि विजन को एक्सपर्ट ठीक कर सकते है, सीखा सकते हैं। पर समस्या ये है कि यहाँ तो विजन ही गलत है। ये देश को गलत रास्ते पर ले जा रहे है और बहुत से लोग इस खतरे को अभी पूरी तरह से समझ नहीं पा रहे। दरअसल भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश का जो आर्थिक रोड मैप होना चाहिए उससे कहीं अलग मोदी का रास्ता है…जो धीरे धीरे तबाही की तरफ बढ़ रहा है ।’
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र के स्नातकोत्तर, येचुरी ने पीएम मोदी के गलत रास्ते को समझाते हुए बताया ,’ इनका रुझान कुछ चुनिंदा कारपोरेट को आगे बढ़ाना है। देश के संसाधन, असेट, खदाने, खनिज, हर तरह के रिसोर्स लूट कर इन्ही मुट्ठी भर उद्योगपतियों के हाथ में सौंपे जा रहे हैं। बदले में ये उद्योगपति इन्हे भारी राजनैतिक डोनेशन दे रहे हैं जिसके आधार पर बीजेपी, खूब पैसा खर्च करके अपनी सियासी ताकत बढ़ा रही है। यानी देश के संसाधनों की अप्रत्यक्ष तौर पर इस लूट में पार्टी खुद शामिल है। इसी तरह, बड़ी विदेशी कंपनियों को भी देश में अधिकतम मुनाफा कमाने का मौका दिया जा रहा है। इसके पीछे मकसद ये है कि बदले में ये विशाल मल्टी-नेशनल कंपनियां और उनकी सरकारें, मोदी की अपनी किस्म की राजनीति को समर्थन दे।’
अगर भारत में मोदी सरकार, निजी कंपनियों या मल्टी-नेशनल को आगे बढ़ा रही है तो चीन या रूस भी तो यही कर रहे हैं। अमेरिका और यूरोप में तो पूँजीवाद इन्ही निजी कम्पनियों की बुनियाद पर टिका है। इसलिए मोदी ग़लत क्या कर रहे हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में वामपंथी विचारक येचुरी ने कहा कि निजी कम्पनियों को बढ़ाने और कुछ चुनिंदा निजी कम्पनियों को बढ़ाने में बहुत अंतर है। चीन में जिन कम्पनियों को मौक़ा दिया जा रहा है उन्हें अपना मुनाफ़ा, देश के संसाधन और रोज़गार में निवेश करना ही होता है। ‘ कम्पनी को जॉब क्रीएट करने ही होंगे। जब रोज़गार का सृजन होगा जब आम लोगों के हाथ में सीधा पैसा आएगा तो डिमांड भी बढ़ेगी, बाज़ार भी बढ़ेगा । यही मूल कारण है चीन के आगे बढ़ने का। लोगों के हाथ में सीधे पैसा देना। लोगों को रोज़गार के मौक़े देना। देश के इंफ़्रास्ट्रक्चर को मज़बूत करना। और कमोवेश यही स्थिति योरोप और अमेरिका में भी है। लेकिन हमारे देश में उलटा हो रहा है, यहाँ लोगों के हाथ में पैसा देने की जगह कुछ चुनिंदा निजी कंपनियों के हाथ में सब कुछ दिया जा रहा है। ‘
कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव और कई बार सांसद रहे सीताराम येचुरी ने कहा कि कोविड के दौरान हुए लॉक डाउन से मंदी की समस्या और गहरी हुई है। बड़े पैमाने पर छोटी से लेकर बड़ी कंपनियां बंद हुई हैं। रोजगार छिने हैं।जनता की कमाई के साधन घटे है। और ऐसी विषम आर्थिक परिस्थितियों में यदि लाखों करोड़ रूपये के कारपोरेट कर्ज़े माफ़ करके, लोगों के हाथ का पैसा छीन लिया जाये तो हम सरकार के विज़न पर और क्या कहें ? दरअसल सच ये है कि आज आम आदमी सिर्फ जीने के लिए खर्च कर रहा है। जीवन को बेहतर करने के लिए जो खर्च करना चाहिए, वो पैसा उसके पास नहीं है , येचुरी ने कहा।