मनमोहन सिंह के बजट ने बदल दी देश की अर्थव्यवस्था की दिशा,
जून 1991 में नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री बने और उन्होंने वित्त मंंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी मनमोहन सिंह को। इससे पहले मनमोहन सिंह रिजर्व बैंक के गवर्नर रह चुके थे। उन्होंने कई आर्थिक सुधार किए थे। उस समय अर्थव्यवस्था की हालत खराब थी। नरसिम्हा राव ने वित्त मंत्री के तौर पर मनमोहन सिंह को अर्थव्यस्था में सुधार के लिए बड़े बदलाव करने की छूट दी।
बतौर वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने आज ही के दिन 1991 में अपना पहला बजट संसद में पेश किया था। भारत के इतिहास में इस बजट को गेम चेंजर बजट कहा जाता है। मनमोहन सिंह ने इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट पॉलिसी में बदलाव कर भारतीय अर्थव्यवस्था को दुनिया के लिए खोल दिया। इसी बजट की बदौलत भारत की अर्थव्यवस्था ने गति पकड़ी और देश में आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने का खाका तैयार हुआ।
दरअसल इससे पहले देश की अर्थव्यवस्था कई कारणों से पिछड़ी हुई थी। शेयर बाजार में घपले, चीन और पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध, आयात के लिए जटिल लाइसेंसिंग सिस्टम और विदेशी पूंजी निवेश पर सरकारी रोक जैसे कई कारण थे, जो अर्थव्यवस्था की रफ्तार को थामे हुए थे।
बजट पेश करने के बाद मीडिया से चर्चा करते मनमोहन सिंह। अपनी चुप्पी के लिए प्रसिद्ध मनमोहन सिंह ने इस बजट के दौरान करीब 18,650 शब्द बोले थे। बजट पेश करते हुए किसी वित्त मंत्री द्वारा बोले गए ये सबसे ज्यादा शब्द हैं।
साथ ही 80 के दशक तक सरकार तय करती थी कि किस उद्योग में कितना उत्पादन होगा। सीमेंट से लेकर बाइक के उत्पादन तक हर क्षेत्र में सरकारी नियंत्रण था। 1991 में जब मनमोहन सिंह वित्त मंत्री बने, तब भारत में विदेशी मुद्रा का भंडार केवल कुछ हफ्तों तक ही आयात करवा सकता था। ये एक गंभीर समस्या थी।
मनमोहन सिंह ने तीन कैटेगरी में बड़े बदलाव किए। ये थे – उदारीकरण, वैश्वीकरण और निजीकरण। साथ ही मनमोहन सिंह ने इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट पॉलिसी में भी बड़े बदलाव किए। इम्पोर्ट लाइसेंस फीस को घटाया गया और एक्सपोर्ट को प्रमोट किया गया।
कस्टम ड्यूटी को 220 फीसदी से घटाकर 150 फीसदी किया गया। बजट में बैंकों पर आरबीआई के नियंत्रण को भी कम किया गया। बैंकों को जमा और कर्ज पर इंटरेस्ट रेट और कर्ज की राशि तय करने का अधिकार दिया गया। नए निजी बैंक खोलने के नियम भी आसान किए गए। इससे देश में बैंकों का भी विस्तार हुआ।
केंद्र सरकार ने लाइसेंस राज खत्म कर दिया। किस वस्तु का कितना उत्पादन होगा और कितनी कीमत होगी, इसका फैसला बाजार पर छोड़ दिया गया। केंद्र सरकार ने करीब 18 उद्योगों को छोड़कर बाकी सभी के लिए लाइसेंस की अनिवार्यता को खत्म कर दिया।
इन बदलावों ने भारतीय उद्योगों को सीधे अंतरराष्ट्रीय बाजार से कॉम्पिटिशन के द्वार खोल दिए। इन्ही सुधारों का नतीजा था कि अगले 1 दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था ने तेज गति से विकास किया।