लॉकडाउन के दर्द को झेल वापस घर आये हजारों मजदूरों ने फिर से चुना काम की तलाश में वापसी का रास्ता
निकल पड़े पांव अभागे, जाने कौन ठौर ठहरेंगे। जी हां ये अभागे पांव हैं उन हजारों लोगों के जो लॉक डाउन के बाद बेघर हो गए थे, दाने दाने को तरस गए थे , ज़िन्दगी को दांव पर लगा अपने परिवार के साथ पैदल ही चल दिये थे। अपने गांव, अपने घर की तरफ इस आस में कि उन्हें अब यहीं अपना ठौर बनाना है। क्या ये मजदूर और क्या इनकी परेशानियों को देखते समझते लोग सभी इन्ही कयासों में थे कि इतना कष्ट उठाकर ये जो प्रवासी मजदूर वापस अपने घर आये हैं अब ना जाएंगे ये वापस किसी गैर के आसरे में । पर अफ़सोस ऐसा हो ना पाया, जैसे ही अनलॉक की तरफ परिस्थितयां झुकीं वैसे ही परिवार पालने की मजबूरी इन कामगारों को वहीं जाने पर मजबूर करने लग गईं जहां से ये अपना सब कुछ दांव पर लगाकर वापस अपने गांव अपने खलिहानों की डगर पर चल दिये थे लॉक डाउन के बाद ।
बात करे हरदोई जिले की तो हजारों की संख्या में प्रवासी मजदूर वापस आये थे। कोई बस से आया , कोई स्पेशल ट्रेन से तो कोई साइकिल रिक्शा चलाकर आया। पैदल अपनी गठरी को सर पर लादकर आने वाले भी परिवार हजारों में थे। ये जब वापस अपने गांव घर मे पहुँचें थे तब भी इन्हें तमाम ज़िल्लतों का सामना करना पड़ा था। कोई इन्हें कोरोना बम कहता था तो कोई अहसान फरामोश । जिस रोजी रोटी की तलाश में ये सब गए थे दूर दराज उसी रोजी रोटी की लालसा ने इन्हें वापस उसी ठौर जाने को मजबूर कर दिया आखिरकार।
हरदोई के तमाम कस्बों गांवों में इन प्रवासी मजदूरों के मालिकों ने बसें भेजी इनको वापस बुलाने के लिए, रहने खाने और गुजारे का लालच दिया। ये तो अहमियत है इन मजदूरों की । अलग अलग क्षेत्रों से तमाम मजदूर वापसी की राह में लगे दिखाई पड़े। हमने इन मजदूरों से बात की तो कमोवेश सबका यही कहना था कि आखिर परिवार का पेट भी तो पालना है। इसी के लिए तो पहले भी गए थे इतनी दूर काम की तलाश में। यहां कुछ काम होता करने को तो पहले ही क्यों जाते। ना यहां तब कुछ करने को था ना अब है । हरियाणा के अंबाला जिले से बस लेकर इन कामगारों को लेने आये ठेकेदार अमरीक सिंह कहते हैं कि वो हर साल यहां आते हैं और यहां से मजदूर ले जाकर हरियाणा में धान की रोपाई करवाते हैं। एक दिन में एक मजदूर 600 से 700 रुपये कमा लेता है। लॉकडाउन के बाद ये सारे मजदूर वापस आ गए थे सो हरियाणा में स्थिति बिगड़ गयी इसीलिए अब थोड़ी ढील मिलते ही इन सबको वापस काम पर ले जाने के लिए वो बस लेकर आये हैं ।
ऐसा नही है कि सरकार ने सुध तक नही ली इनकी , तमाम रोजगार अभियान चलाए , मनरेगा में काम दिलाने का भरोसा दिया , यूपी में पीएम मोदी ने ऐसे सवा करोड़ लोगों को रोजगार देने का कार्यक्रम शुरू किया , गांव गांव सरकारी कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई गई रोजगार की व्यवस्था कराने की खातिर पर इतने सारे प्रयास ऊंट के मुंह मे जीरा ही साबित हुए फिलहाल तो और ये श्रमिक जहां से गिरते पड़ते वापस आये थे अब वही को जाने में ही अपनी भलाई मान रहे हैं । इन कामगारों के मालिकान भी इन श्रमिकों को लुभावने लालच देकर , गाड़ी घोड़ा भेजकर वापस बुलाने की जुगत भिड़ाने में लग गए हैं , वही मालिकान जो इन कामगारों और इनके परिवारों को दो वक्त की रोटी तक नही दे पाए थे लॉक डाउन के दौरान । कह सकते हैं कि ‘उन्हें कोई और नही , इन्हें भी कहीं ठौर नही’ ।
ये अभागे पांव जो निकले थे कुछ ठहरने के बाद अब फिर निकल पड़े हैं , ये प्रत्यक्ष है सरकार के लिए कि उसकी योजनाएं सब कागज़ी हैं , सारे वादे हवाई हैं , सरकार के अफसर बस आंकड़ो की बाजीगरी करके निज़ाम को खुश करते रहते हैं , ज़मीन पर हाल तब भी बेहाल था , अब भी है ।