Meghalaya Assembly Election 2023 : क्या होगा इस बार कांग्रेस का हाल?
मेघालय की 60 में से 36 ऐसी विधानसभा की सीटें हैं जहां महिलाओं की जनसंख्या पुरुषों से अधिक है।
सुभाष चन्द्र
बीते विधानसभा चुनाव में मेघालय की सबसे बड़ी पार्टी बनकर कांग्रेस उभरी थी। इस बार 5 साल का समय बीत चुका है। भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में उनके बताए रास्तों पर यहां भी अपनी सशक्त सियासी पैठ बनाना चाहती है। मेघालय विधानसभा का कार्यकाल 15 मार्च को समाप्त हो रहा है। मेघायल विधानसभा चुनाव को लेकर राष्ट्रीय दलों के साथ-साथ क्षेत्रीय दलों नें भी तैयारी शुरू कर दी है।
मेघालय में बीजेपी, कांग्रेस, तृणामूल कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियों के साथ-साथ क्षेत्रीय दलों को वर्चस्व है। क्षेत्रीय दलों में नेशनल पीपुल्स पार्टी, यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी, पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट, हिल स्टेट पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, गारो नेशनल काउंसिल, खुन हैन्नीवट्रेप राष्ट्रीय जागृति आंदोलन, नार्थ ईस्ट सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी, मेघालय डेमोक्रेटिक पार्टी प्रमुख हैं। मेघालय में विधानसभा की 60 सीटें हैं। साल 2018 में यहां 59 विधानसभा सीटों पर चुनाव हुए थे। तब कांग्रेस यहां सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। कांग्रेस को 21 सीटों पर जीत हासिल हुई है। एनपीपी दूसरी बड़ी पार्टी के रूप में सामने आई, जिसके खाते में 19 सीटें थी। वहीं बीजेपी को 2 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि यूडीपी को 6 सीटें हासिल हुईं थी। माना जा रहा है कि भाजपा और यूडीपी दोनों ही पार्टियों सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार नहीं उतारेंगी। भाजपा सूत्रों के मुताबिक, पार्टी करीब 20 से 25 सीटों पर उम्मीदवारों को खड़ा कर सकती है। जबकि यूडीपी का इससे भी कम सीटों पर चुनाव लड़ने की उम्मीद है।
मेघालय एक महिला प्रधान समाज है। पूर्वोत्तर भारत के इस राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दल तैयारियां कर रहे हैं। मेघालय की 60 में से 36 ऐसी विधानसभा की सीटें हैं जहां महिलाओं की जनसंख्या पुरुषों से अधिक है। भले ही यहां समाज महिला प्रधान है लेकिन राजनीति में महिलाओं की मौजूदगी ना के बराबर ही है।असम और मेघालय के बीच 884.9 किमी लंबी अंतर्राज्यीय सीमा पर 12 स्थानों पर विवाद हैं। दोनों राज्यों ने पहले 12 विवादित क्षेत्रों में से छह को हल करने के लिए पिछले साल मार्च में एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे, जबकि शेष छह विवादित क्षेत्रों को हल करने के लिए चर्चा चल रही है। इस बीच असम से लगी विवादित सीमा से सटे इलाकों में रहने वाले मतदाताओं को मेघालय में आगामी विधानसभा चुनाव में वोट डालने की अनुमति दी जाएगी।
कई पुलिस शिकायतों और अंत में भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष बर्नार्ड मारक की पिछले साल गिरफ्तारी ने एनपीपी के साथ संबंधों को तनावपूर्ण बना दिया। दोनों गठबंधन सहयोगियों ने अकेले चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया है। कॉनराड संगमा की पार्टी ने 60 सदस्यीय विधानसभा के लिए होने वाले चुनाव को लेकर 58 उम्मीदवारों की पहले ही घोषणा कर दी है, जबकि भाजपा ने अभी तक उम्मीदवारों के नामों को अंतिम रूप नहीं दिया है।मारक ने कॉनराड संगमा के खिलाफ चुनाव लड़ने का ऐलान किया। जिसकी वजह से एनपीपी और भाजपा के बीच तनाव और भी ज्यादा बढ़ने की संभावना है। हालांकि सिर्फ मारक की वजह से एनपीपी और भाजपा के बीच मतभेद उभकर सामने नहीं आए बल्कि कई अन्य मुद्दों के लेकर भी खींचतान देखने को मिली है। समान नागरिक संहिता और मुकरोह गांव की गोलीबारी ने सहयोगियों के बीच सेंधमारी का काम किया। बता दें कि मुकरोह गोलीबारी में पांच नागरिकों की मौत हुई थी।
भगवा खेमे का मानना है कि एनपीपी और तृणमूल कांग्रेस के कुछ विधायकों के आने से भी उनका जनाधार मजबूत हुआ है और कई प्रमुख नेता भी पार्टी में शामिल हुए हैं। पार्टी के भीतर ऐसा अनुमान लगाया गया कि भाजपा गारो हिल्स इलाके में कम से कम 5 सीटें जीत सकती है। लेकिन सवाल यही खड़ा होता है कि भाजपा क्या अपने दम पर सरकार बना सकती है? क्योंकि साल 2018 में 20 सीटें जीतने वाली एनपीपी ने भाजपा, यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी (UDP) और हिल स्टेट पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के सहयोग से सरकार बनाई थी। बता दें कि यूडीपी और एचएसपीडीपी भी कॉनराड संगमा की पार्टी के साथ गठबंधन किए बिना चुनाव लड़ रहे हैं। यूडीपी ने एचएसपीडीपी के कई नेताओं को अपने पाले में शामिल कर लिया था। जिसकी वजह से एचएसपीडीपी का वोटबैंक काफी प्रभावित हुआ।