कोर्ट में लंबित मामलों पर मीडिया की टिप्पणियां जजों को प्रभावित करने की कोशिश: केके वेणुगोपाल
नई दिल्ली। अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा है कि कोर्ट में लंबित मामलों पर मीडिया की ओर से की गई टिप्पणियां जजों को प्रभावित करने की कोशिश होती है और वे उन मामलों पर असर डालने की कोशिश करते हैं। अटार्नी जनरल ने कहा कि ऐसा करना कोर्ट की अवमानना की तरह हैं। सुप्रीम कोर्ट में वकील प्रशांत भूषण के खिलाफ 2009 के एक अवमानना मामले में सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल ने ये टिप्पणी की।
सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल ने कहा कि मैं जब टीवी देखता हूं और जमानत याचिका पर सुनवाई आनी होती है तो टीवी आरोपित की किसी व्यक्ति से बातचीत फ्लैश करता है। यह आरोपित के लिए नुकसानदेह होता है और ये सुनवाई भी प्रभावित करता है। ये कोर्ट की अवमानना है। इस पर वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कहा कि लंबित मामलों के सवाल पर सहारा के केस में विचार हुआ था। उन्होंने यूरोपियन कोर्ट के एक फैसले का जिक्र किया, जिसमें कोर्ट ने पूछा था कि क्या प्रेस को शाइलॉक केस की रिपोर्ट न देने को कहा जाए।
इस मामले पर अगली सुनवाई 4 नवम्बर को होगी। कोर्ट ने उस समय तक सभी पक्षों के वकीलों को निर्देश दिया कि वे संविधान बेंच के समक्ष भेजने वाले सवालों पर आपस में बात कर लें। कोर्ट ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि वो इस मामले के एमिकस क्युरी हरीश साल्वे से संपर्क कर उन्हें 4 नवम्बर को कोर्ट में पेश होने का निर्देश दें।
कोर्ट ने पिछले 10 सितम्बर को अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल से एमिकस क्युरी के रूप में कोर्ट की मदद करने का आग्रह किया था। पिछले 25 अगस्त को जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस मामले को नई बेंच के सामने लिस्ट करने के लिए चीफ जस्टिस को भेज दिया था । उसके बाद एएम खानविलकर की अध्यक्षता में नई बेंच का गठन किया गया। नई बेंच अभिव्यक्ति की आजादी और कोर्ट की अवमानना से जुड़े सवालों पर विचार करेगी।
पिछली सुनवाई के दौरान प्रशांत भूषण के वकील राजीव धवन ने इस मामले को संविधान बेंच को भेजने की मांग की थी। उन्होंने कहा था कि प्रशांत भूषण ने कानून के कुछ सवाल उठाए हैं, जिन पर विचार करने के लिए संविधान बेंच को रेफर करना जरूरी है। धवन ने कहा कि इस मामले में संवैधानिक मसले जुड़े हुए हैं, इसलिए अटार्नी जनरल का भी पक्ष सुना जाना चाहिए। तब जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा था कि प्रशांत भूषण की ओर से उठाए गए सवालों में से कुछ मसले पहले ही हल हो चुके हैं। तब धवन ने कहा था कि संविधान की धारा 129 और 215 के तहत कोर्ट को स्वत: संज्ञान लेकर अवमानना की कार्रवाई करना संविधान के दूसरे प्रावधानों का उल्लंघन करती है या नहीं, इस पर विचार करना जरूरी है। उसके बाद जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा था कि तब इसे उचित बेंच के पास लिस्ट किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा था कि इस मामले में न केवल अटार्नी जनरल बल्कि एमिकस क्युरी के सहयोग की जरूरत भी पड़ सकती है।
ये मामला 2009 में दिए एक इंटरव्यू का है। उस समय प्रशांत भूषण ने 16 में से आधे पूर्व चीफ जस्टिस को भ्रष्ट कहा था। पिछले 17 अगस्त को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पहले इस पर विचार ज़रूरी है कि ऐसे बयान से पहले क्या आंतरिक शिकायत करना उचित नहीं होता।