Mayawati का नया दांव: जमीन हासिल करने की कोशिश
Mayawati ने पहले 'सर्वजन हिताय' को प्राथमिकता दी, लेकिन अब वे महसूस कर रही हैं कि बहुजन (दलितों) पर उनकी पकड़ कमज़ोर हो रही है।
पूर्व मुख्यमंत्री Mayawati , जो कई वर्षों तक ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ के सिद्धांत पर चलती रहीं, अब ‘बहुजन हिताय’ पर जोर दे रही हैं। यह बदलाव उनके कोर वोट बैंक, यानी दलितों और पिछड़ों के प्रति सीधा संकेत है। सूत्रों के अनुसार, मायावती ने बसपा के संस्थापक द्वारा स्थापित सरकारी कर्मचारियों के संगठन बामसेफ को पुनर्गठित और सक्रिय करने का निर्णय लिया है।
बीते कुछ वर्षों में बसपा की राजनीतिक स्थिति कमजोर हुई है। Mayawati ने पहले ‘सर्वजन हिताय’ को प्राथमिकता दी, लेकिन अब वे महसूस कर रही हैं कि बहुजन (दलितों) पर उनकी पकड़ कमज़ोर हो रही है। ऐसे में, उन्होंने अपनी रणनीति में बदलाव किया है। अब वे अपने पुराने आधार को मजबूत करने की कोशिश कर रही हैं, ताकि पार्टी को फिर से अपनी खोई हुई ताकत हासिल हो सके।
बामसेफ के जरिए Mayawati का लक्ष्य न केवल दलितों को फिर से एकजुट करना है, बल्कि ब्राह्मणों और अन्य जातियों के लिए भाईचारा समितियां बनाकर सामाजिक इंजीनियरिंग भी करना है। इससे वे विभिन्न जातियों के बीच एक सामंजस्य बनाने की कोशिश कर रही हैं, जिससे पार्टी को लाभ हो सके।
उत्तर प्रदेश में 2014 के बाद से बसपा लगातार चुनावी पराजय का सामना कर रही है। पार्टी के भीतर उठते विरोध और विचारधाराओं के संघर्ष ने भी Mayawati की स्थिति को कमजोर किया है। ऐसे में, बामसेफ का पुनर्गठन और भाईचारा समितियों का गठन एक महत्वपूर्ण कदम है।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यदि Mayawati इस रणनीति को सफलतापूर्वक लागू करती हैं, तो इससे उनकी पार्टी को फिर से मजबूती मिल सकती है। हालांकि, यह देखना होगा कि क्या यह प्रयास उत्तर प्रदेश की जटिल जातीय राजनीति में उन्हें फिर से खड़ा कर सकेगा।
इस नई रणनीति के जरिए Mayawati न केवल दलितों का समर्थन दोबारा हासिल करना चाहती हैं, बल्कि सवर्ण समुदाय को भी अपने पक्ष में लाने की कोशिश कर रही हैं। यह समय बसपा के लिए एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है।