मायावती की BSP भी अब भाजपा की तरह हिन्दुत्व की नैया पर सवार!

 

 

बसपा द्वारा मिशन-2022 के लिए अयोध्या से ब्राह्मण संगोष्ठी की शुरुआत करने के साथ ही यह चर्चा गर्म हो गई है कि क्या बसपा भी भाजपा और अन्य सियासी दलों की तर्ज पर नरम हिन्दुत्व के रास्ते पर आ गई है? कमोबेश उसके ब्राह्मण सम्मेलनों के समय और स्थान में अयोध्या, मथुरा और वाराणसी के शामिल होने और अयोध्या में रामलला के दर्शन के साथ सम्मेलन की शुरुआत करने को लेकर ऐसे सवाल उठना लाजि़मी हैं। बहुजन समाज पार्टी ने वर्ष 2007 की तरह इस बार फिर से सोशल इंजीनियरिंग की कवायद शुरू की है।

कभी तिलक, तराजू और तलवार को लेकर विवादित नारे देने वाली बसपा का यह पैंतरा यूं ही नहीं है। दरअसल, वर्ष 2007 में ब्राह्मणों के साथ ही क्षत्रियों को संग लेकर बसपा अपने बलबूते सत्तारूढ़ हुई थी। वक्त के साथ उसकी इस सोशल इंजीनियरिंग की धार भोथरी हो गई। विधानसभा चुनाव 2017 में बहुजन समाज पार्टी के वोट बैंक में वर्ष 2007 की तुलना में 8.2 फीसदी की गिरावट हो गई। यह क्रमश: वर्ष 2012 में 25.95 फीसदी रहा था और वर्ष 2017 में 22.23 फीसदी के साथ सिर्फ 19 सीटें आई थीं।

बसपा ने अब वोट प्रतिशत बढ़ाने के मद्देनज़र ही 75 जिलों में ब्राह्मण संगोष्ठियां करने का फैसला किया है। इसके तहत मथुरा, काशी और प्रयागराज में कार्यक्रम होंगे। ऐसे में बसपा के वरिष्ठ नेताओं द्वारा अयोध्या में रामलला के दर्शन करने की तरह ही अन्य मंदिरों में भी दर्शन कर कार्यक्रम शुरू करें तो हैरत नहीं। राजनीतिक विश्लेषक पूर्व आईजी अरुण कुमार गुप्ता कहते हैं-‘बसपा को यह बखूबी एहसास हो चुका है कि बिना बेस वोट बैंक में अन्य मतदाताओं को जोड़े उसका सत्ता हासिल करना मुश्किल है। लिहाजा अब यह नरम हिन्दुत्व या यूं कहें ब्राह्मण वोट कार्ड खेलकर भाजपा के वोटों में सेंधमारी की कोशिश की जा रही है।’

Related Articles

Back to top button