ब्राह्मण सम्मेलन कराते ही ट्रोल होने लगीं मायावती अब BSP का मतलब बहुजन नहीं ब्राह्मण समाज पार्टी हो गया;
अयोध्या में बहुजन समाज पार्टी (BSP) के ब्राह्मण सम्मेलन कराते ही सोशल मीडिया पर मायावती ट्रोल होने लगी हैं। शनिवार सुबह से ही ट्विटर पर #BSP_मिशन_भूल_गई ट्रेंड कर रहा है। यूजर्स ने कहा कि मायावती अब अपना मिशन भूल गई हैं। BSP का मतलब बहुजन नहीं बल्कि ब्राह्मण समाज पार्टी हो गया है।
हालांकि, बसपा नेताओं ने इसे साजिश बताया। पार्टी से जुड़े कुछ नेताओं का कहना है कि BSP फिर से सत्ता में वापसी कर रही है। ब्राह्मण, दलित मिलकर BSP को बहुमत दिलाएंगे। यही कारण है कि कुछ लोग सोशल मीडिया पर जानबूझकर साजिश कर रहे हैं।
एक दिन पहले ही ब्राह्मण सम्मेलन का आगाज किया
ब्राह्मणों को रिझाने के लिए शुक्रवार को अयोध्या पहुंचे बसपा के सतीश चंद्र मिश्र ने विचार संगोष्ठी को संबोधित किया था। कहा था कि जितने ब्राह्मणों की हत्या हुई है, ब्राह्मण उससे सबक लें। 13% ब्राह्मण व 23% दलित एकजुट होंगे तो सरकार बनने से कोई नही रोक पाएगा।
मिश्र ने संगोष्ठी में BJP पर हमला करते हूए पूछा कि उन्होंने ब्राह्मणों के लिए क्या किया। हम तो ब्राह्मण समाज के पास इसलिए आए हैं कि 10 सालों से ब्राह्मण समाज उपेक्षित है। उसे सम्मान दिलाना है। बसपा सरकार में 62 सीट ब्राम्हण जीते। ब्राह्मण समाज के कारण ही बसपा की पूर्ण बहुमत की सरकार आई थी ।
लोग पूछ रहे हैं कि हम अयोध्या क्यों आए? क्या भाजपा की ठेकेदारी हो गई है अयोध्या? भगवान राम को वर्षों भाजपा ने टेंट में रखा। जबकि केंद्र और प्रदेश में भाजपा की सरकार थी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब जाकर मंदिर का निर्माण शुरू हुआ है। मंदिर के नाम पर वर्षों से चंदा इकट्ठा किया। एक वर्ष हो गया। एक साल में नींव भी नही बन पाई, क्या अयोध्या के महंतों से मन्दिर निर्माण पर राय ली गई।
यूपी में ब्राह्मण क्यों जरूरी?
यूपी की राजनीति में ब्राह्मणों का वर्चस्व हमेशा से रहा है। आबादी के लिहाज से प्रदेश में लगभग 13% ब्राह्मण हैं। कई विधानसभा सीटों पर तो 20% से ज्यादा वोटर्स ब्राह्मण हैं। ऐसे में हर पार्टी की नजर इस वोट बैंक पर टिकी है। बलरामपुर, बस्ती, संत कबीर नगर, महाराजगंज, गोरखपुर, देवरिया, जौनपुर, अमेठी, वाराणसी, चंदौली, कानपुर, प्रयागराज में ब्राह्मणों वोट 15% से ज्यादा हैं। यहां उम्मीदवार की हार-जीत में ब्राह्मण वोटर्स की अहम भूमिका होती है। 2017 में 56 सीटों पर ब्राह्मण उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी। इनमें 44 BJP के थे।
2007 में ब्राह्मणों ने ही मायावती को दिलाई थी सत्ता
2007 में मायावती की अगुआई में BSP ने ब्राह्मण+दलित+मुस्लिम समीकरण पर चुनाव लड़ा तो उनकी सरकार बन गई। बसपा ने इस चुनाव में 86 टिकट ब्राह्मणों को दिए थे। तब मायावती को ब्राह्मणों ने दिल खोलकर वोट दिया था। इसके दो कारण थे। पहला ये कि मायावती ने सोशल इंजीनियरिंग का कॉन्सेप्ट रखा था और दूसरा ब्राह्मण समाजवादी पार्टी से नाराज थे। उस दौरान सपा के विकल्प में बसपा ही सबसे मजबूत पार्टी थी। कांग्रेस और BJP की स्थिति ठीक नहीं थी। अब 2022 के चुनाव के लिए BSP की प्लानिंग है कि वह करीब 100 ब्राह्मणों और मुस्लिमों के अलावा अन्य जाति के उम्मीदवारों को टिकट दें।