बंगाल के बाहर दीदी की वर्चुअल रैली:शहीद दिवस पर ममता के भाषण की देशभर में लाइव स्ट्रीमिंग होगी,
पश्चिम बंगाल में बड़ी जीत के बाद अब ममता बनर्जी की निगाहें देश की राजनीति पर हैं। कोलकाता में बुधवार को दोपहर 2 बजे ममता शहीद दिवस के कार्यक्रम में भाषण देंगी। उनके भाषण को अलग-अलग शहरों में बड़ी स्क्रीन पर दिखाया जाएगा। यानी, यह देशभर में ममता की वर्चुअल रैली होगी। इसकी स्ट्रीमिंग दिल्ली, उत्तर प्रदेश, असम, त्रिपुरा और दूसरी जगहों पर भी की जाएगी। भाषण का स्थानीय भाषाओं में अनुवाद किया जाएगा।
कोलकाता में 1993 में 21 जुलाई को यूथ कांग्रेस के प्रदर्शन के दौरान पुलिस की गोलीबारी में 13 कार्यकर्ता मारे गए थे। इस प्रदर्शन की अगुवाई ममता ही कर रही थीं। इसके बाद से ही तृणमूल कांग्रेस ने इस दिन को शहीद दिवस के तौर पर मनाना शुरू कर दिया। हर साल 21 जुलाई को तृणमूल इस दिन बड़ी रैली का आयोजन करती है। पिछले साल इस दिन ममता ने अपने दफ्तर से पार्टी वर्कर्स को संबोधित किया था।
‘2024 में दिल्ली में ममता सरकार’
पार्टी के नेता मदन मित्रा ने बताया कि TMC 21 जुलाई को वर्चुअल कार्यक्रमों के जरिए राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश करने जा रही है। इसके लिए त्रिपुरा, असम, ओडिशा, बिहार, पंजाब, यूपी और दिल्ली में बड़ी स्क्रीन लगाई जाएगी। उन्होंने कहा कि 2024 में दिल्ली में ममता सरकार होगी। 2024 के आम चुनाव का सबसे बड़ा फैक्टर उत्तर प्रदेश है। यहां 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा हारने जा रही है।
बंगाल विधानसभा जैसा नारा
ममता का ‘जिसे देश चाहता है’ नारा उस नारे से मिलता जुलता है, जो उन्होंने इसी साल हुए बंगाल विधानसभा चुनाव में दिया था। बंगाल में ममता ने नारा दिया था- बांग्ला नीजेर मेये के चाए यानी बंगाल अपनी बेटी चाहता है। बेटी की इमेज बहुत सोच-समझकर पेश की गई थी ताकि बंगाली जनता को ममता पड़ोस की वो लड़की दिखाई दे, जिसने अकेले ही वाम किले को ढहा दिया था।
बंगाल जीतने के बाद दूसरे राज्यों पर नजर
तृणमूल का महासचिव बनाए जाने के तुरंत बाद अभिषेक बनर्जी ने कहा था कि अब पार्टी केवल बंगाल नहीं, बल्कि दूसरे राज्यों में भी चुनाव लड़ेगी। इससे पहले भी तृणमूल केरल और गुजरात में चुनाव लड़ चुकी है, पर ज्यादा असर नहीं डाल पाई। नॉर्थ ईस्ट में मणिपुर, अरुणाचल और त्रिपुरा में पार्टी ने पकड़ बनाई पर उसे कायम नहीं रख सकी। तृणमूल के एक नेता ने कहा कि अब देश का मूड अलग है।
ममता का केंद्र का सपना नया नहीं
ममता बनर्जी के मन में दिल्ली दरबार का सपना नया नहीं है। 2012 में जब उन्होंने राष्ट्रपति के लिए UPA की ओर से प्रणब मुखर्जी के नॉमिनेशन का विरोध किया था और एपीजे अब्दुल कलाम का नाम रखा था, तभी ये जाहिर हो गया था कि उनके मन में केंद्र की राजनीति है।2014 में ममता की पार्टी ने 40 लोकसभा सीटें जीती थीं, इसके बावजूद उन्हें केंद्र में कोई रोल नहीं मिला, क्योंकि मोदी की अगुआई में भाजपा को सबसे बड़ा बहुमत हासिल हुआ था। 2019 में भी हालात यही रहे। हालांकि, ममता भी 2021 के चुनावों में पहले से ज्यादा बहुमत के साथ लौटी हैं।2019 में ममता बनर्जी करीब-करीब सभी विपक्षी दलों को एक मंच पर ले आई थीं, जब उन्होंने कोलकाता के ब्रिज परेड ग्राउंड में रैली की थी। हालांकि, NDA और UPA, दोनों सरकारों का हिस्सा रह चुकी तृणमूल को विश्वसनीय साथी न तो कांग्रेस मानती है और न ही भाजपा।
मोदी-शाह को रोकने वाली देश की अकेली लीडर ममता: तृणमूल
तृणमूल के राज्यसभा सदस्य ने टेलीग्राफ से कहा कि ममता नेशनल पॉलिटिक्स को लेकर अपनी योजना और नजरिया 48 घंटे के भीतर सबके सामने रखेंगी। 2021 के बंगाल विधानसभा चुनाव के बाद ये साफ हो गया है कि देश में ममता ही अकेली नेता हैं, जो नरेंद्र मोदी और अमित शाह को रोक सकती हैं। तृणमूल के एक सूत्र ने कहा कि दीदी की राजनीतिक योजना के बहुत फायदे हैं। गुजरात जैसे राज्यों में विपक्ष की जगह खाली है और दीदी उसे हासिल करना चाहती हैं।
2022 के UP चुनाव लिटमस टेस्ट होंगे
विपक्ष के लिए 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव लिटमस टेस्ट की तरह होंगे और ये तृणमूल के लिए भी बहुत बड़ा मौका साबित हो सकते हैं। बंगाल जीत के बाद तृणमूल ने उत्तर प्रदेश में मेंबरशिप कैंपेन शुरू किया है। तृणमूल की नजर ग्रामीण इलाकों के असंतुष्ट चल रहे बसपा के नेताओं पर है।