ममता के नंदीग्राम से चुनाव लड़ने के क्या हैं ‘मायने’, TMC को इससे होगा फायदा!
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पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी की चुनावी तैयारियां देखते हुए राज्य की सीएम ममता बनर्जी (CM Mamata Banerjee) ने भी कमर कस ली है और अब वो अपने पुराने तेवर में लौट आई है। पिछले दिनों उन्होंने पूर्वी मिदनापुर की नंदीग्राम सीट (Nandigram) से चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया, जिससे विरोधियों के कान खड़े हो गए हैं।
उनका नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का ऐलान करना बड़ा ही सियासी संकेत दे रहा है। जानकारों की माने तो ममता इस सीट के जरिए एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश कर रही हैं। उन्होंने इस घोषणा के साथ ही बीजेपी और टीएमसी को छोड़ कर गए बागियों को चुनौती दे दी है।
विरोधियों पर तेज प्रहार
जानकारों की माने तो ममता ने अपने विरोधियों पर बड़ा ही तेज प्रहार किया है। नंदीग्राम से लड़ने की घोषणा इसलिए उन्होंने की क्योंकि वो टीएमसी के बागी और बीजेपी का हाथ थामने वाले नेता सुवेंदु अधिकारी (Suvendu Adhikari) का गढ़ है। ममता इस घोषणा के साथ ही सुवेंदु को उनके ही मैदान में मात देने की सोच रही हैं।
इसके साथ ही ममता ने यह भी जता दिया कि कोलकाता में बीजेपी नेताओं के शक्ति प्रदर्शन से वो जरा भी परेशान नहीं हुई हैं और न ही उनका आत्मविश्वास डगमगाया है। उन्होंने दिखा दिया कि अगर बीजेपी अपने तेवर दिखा रही है तो वो भी पीछे नहीं हटेंगी।
ममता बनर्जी ने रैली में कहा था
नंदीग्राम के तेखाली इलाके में एक बड़ी रैली को संबोधित करते हुए ममता ने कहा था कि वो नंदीग्राम से चुनाव लड़ेंगी। उन्होंने कहा था कि नंदीग्राम मेरी बड़ी बहन और भवानीपुर मेरी छोटी बहन है। अगर हो सका तो वो दोनों जगह से चुनाव लड़ सकती है। ममता के इस ऐलान के कुछ ही घंटों बाद सुवेंदु अधिकारी ने ममता बनर्जी को नंदीग्राम से हारने का भी ऐलान कर दिया था और कहा था कि अगर वो 50 हजार से कम वोटों से ममता बनर्जी को नहीं हरा पाए तो वो राजनीति छोड़ देंगे।
उन्होंने कहा था, ‘मैंने हमेशा से नंदीग्राम से विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार अभियान की शुरुआत की है यह मेरे लिए भाग्यशाली स्थान है। इस बार भी मुझे लगा कि यहां से विधानसभा चुनाव लड़ना चाहिए।
नंदीग्राम को क्यों चुना
बताय जाता है कि नंदीग्राम विशेष आर्थिक क्षेत्र के निर्माण के लिए तत्कालीन वाममोर्चा सरकार जबरन जमीन अधिग्रहण के विरोध विशाल जन-आंदोलन का केंद्र रहा था। लंबे समय तक चले और रक्तरंजित रहे इस आंदोलन के चलते ही बनर्जी और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस सत्ता में पहुंची थीं और अब इसी को ममता दोहराना चाहती हैं।