एयर इंडिया महाराजा की घर वापसी
68 साल बाद टाटा ग्रुप बन सकता है एअर इंडिया का मालिक, जानिए कब तक पूरी होगी प्रोसेस और खरीददार को क्या-क्या मिलेगा
घाटे से जूझ रही एअर इंडिया को बेचने की प्रोसेस जारी है। 15 सितंबर को इसे खरीदने की इच्छुक कंपनियों के लिए बोली लगाने की आखिरी तारीख थी। इस दिन तक टाटा ग्रुप और स्पाइस एयरलाइंस ने इसके लिए बोली लगाई है। अगर सब कुछ ठीक रहा तो दिसंबर तक एअर इंडिया को बेचने की प्रक्रिया पूरी हो सकती है।
सरकार का कहना है कि बोली के लिए सरकार के पास कई कंपनियों ने संपर्क किया है, जिसमें सबसे बड़ा नाम टाटा ग्रुप का है। टाटा के साथ ही स्पाइसजेट के चेयरमैन अजय सिंह ने भी बोली लगाई है। अगर टाटा ग्रुप एअर इंडिया को खरीदता है, तो 68 साल बाद टाटा दोबारा एअर इंडिया का मालिक बन जाएगा।
आइए समझते हैं, सरकार एअर इंडिया को क्यों बेच रही है? क्या इससे पहले भी एअर इंडिया को बेचने की कोशिश हुई है? एअर इंडिया के आर्थिक हालात कैसे हैं? और सरकार एयरलाइन में क्या-क्या बेच रही है…
सरकार एअर इंडिया को बेच क्यों रही है?
इसकी कहानी शुरू होती है साल 2007 से। 2007 में सरकार ने एअर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस का मर्जर कर दिया था। मर्जर के पीछे सरकार ने फ्यूल की बढ़ती कीमत, प्राइवेट एयरलाइन कंपनियों से मिल रहे कॉम्पिटीशन को वजह बताया था।
हालांकि साल 2000 से लेकर 2006 तक एअर इंडिया मुनाफा कमा रही थी, लेकिन मर्जर के बाद परेशानी बढ़ गई। कंपनी की आय कम होती गई और कर्ज लगातार बढ़ता गया। कंपनी पर 31 मार्च 2019 तक 60 हजार करोड़ से भी ज्यादा का कर्ज था। वित्त वर्ष 2020-21 के लिए अनुमान लगाया गया था कि एयरलाइन को 9 हजार करोड़ का घाटा हो सकता है।
क्या पहले भी हुई है एअर इंडिया को बेचने की कोशिश?
हां। इससे पहले 2018 में भी सरकार ने एअर इंडिया के विनिवेश की तैयारी की थी। फैसला लिया था कि सरकार एअर इंडिया में अपनी 76 फीसदी हिस्सेदारी बेचेगी। इसके लिए कंपनियों से एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट (EOI) मंगवाए गए थे, जिसे सब्मिट करने की आखिरी तारीख 31 मार्च 2018 थी, लेकिन निर्धारित तारीख तक सरकार के पास एक भी कंपनी ने EOI सब्मिट नहीं किया था।
इसके बाद जनवरी 2020 में नए सिरे से प्रक्रिया शुरू की गई। इस बार 76 फीसदी की जगह 100 फीसदी हिस्सेदारी बेचने का फैसला लिया गया। कंपनियों को 17 मार्च 2020 तक एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट सब्मिट करने को कहा गया, लेकिन कोरोना की वजह से एविएशन इंडस्ट्री बुरी तरह प्रभावित हुई, इस वजह से कई बार तारीख को आगे बढ़ाया गया और 15 सितंबर 2021 आखिरी तारीख निर्धारित की गई।
सरकार एयरलाइंस में क्या-क्या बेच रही है?
सरकार एअर इंडिया की 100 फीसदी हिस्सेदारी बेच रही है। इसमें एअर इंडिया एक्सप्रेस की भी 100 फीसदी हिस्सेदारी शामिल है। साथ ही कार्गो और ग्राउंड हैंडलिंग कंपनी AISATS की 50 फीसदी हिस्सेदारी शामिल है।विमानों के अलावा एयरलाइन की प्रॉपर्टी, कर्मचारियों के लिए बनी हाउसिंग सोसायटी और एयरपोर्ट पर लैंडिंग और पार्किंग स्लॉट भी सौदे का हिस्सा होंगे।नए मालिक को भारतीय एयरपोर्ट्स पर 4400 डोमेस्टिक और 1800 इंटरनेशनल लैंडिंग और पार्किंग स्लॉट मिलेंगे। साथ ही विदेशी एयरपोर्ट पर भी करीब 900 स्लॉट मिलेंगे।
कंपनी पर जो कर्ज है उसका क्या होगा?
31 मार्च 2019 तक कंपनी पर 60,074 करोड़ रुपए का कर्ज था। जनवरी 2020 में DIPAM द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, एयरलाइंस को खरीदने वाले को 23,286 करोड़ रुपए का कर्ज चुकाना होगा। बाकी के कर्ज को सरकार की कंपनी एअर इंडिया एसेट होल्डिंग्स (AIAHL) को ट्रांसफर किया गया है।
इसे एअर इंडिया की घर वापसी क्यों कहा जा रहा है?
बोली लगाने वालों में टाटा ग्रुप भी है। 1932 में जेआरडी टाटा ने देश में टाटा एयरलाइंस की शुरुआत की थी, लेकिन दूसरे विश्वयुद्ध के बाद दुनियाभर में एविएशन सेक्टर बुरी तरह प्रभावित हुआ था। इस मंदी से निपटने के लिए योजना आयोग ने सुझाव दिया कि सभी एयरलाइन कंपनियों का राष्ट्रीयकरण कर दिया जाए।
मार्च 1953 में संसद ने एयर कॉर्पोरेशंस एक्ट पास किया। इस एक्ट के पास होने के बाद देश में काम कर रही 8 एयरलाइंस का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। इसमें टाटा एयरलाइंस भी शामिल थी। सभी कंपनियों को मिलाकर इंडियन एयरलाइंस और एअर इंडिया बनाई गई। एअर इंडिया को इंटरनेशनल तो इंडियन एयरलाइंस को डोमेस्टिक फ्लाइट्स संभालने का जिम्मा दिया गया। अगर एअर इंडिया को टाटा ग्रुप खरीद लेता है, तो ये एक तरह से एअर इंडिया की घर वापसी होगी।