12 आतंकियों को मौत के घाट उतार देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दे गए लेफ्टिनेंट नवदीप
नई दिल्ली. लेफ्टिनेंट नवदीप सिंह की तैनाती उन दिनों उत्तरी कश्मीर के गुरेज सेक्टर में थी. उन्हें कमांडो ऑपरेशन में माहिर ‘घटक’ पलटन का कमांडर बनाया गया था. उन पर खास तौर पर पाकिस्तान से होने वाली घुसपैठ को रोकने और आतंकी मंसूबों को नेस्तनाबूद करने की जिम्मेदारी थी. वह तारीख 19 अगस्त 2011 की थी, जब गुरेज सेक्टर से 17 खूंखार आतंकियों के घुसपैठ की सूचना लेफ्टिनेंट नवदीप सिंह को मिली. सूचना मिलते ही, लेफ्टिनेंट नवदीप सिंह अपनी पलटन के साथ आतंकियों के सफाए के लिए निकल पड़े. घुसपैठ संभावित इलाके में सर्च ऑपरेशन शुरू किया गया. उन सभी रास्तों को मार्क किया गया, जहां से आतंकियों के गुजरने की संभावना ज्यादा थी. इन सभी रास्तों पर लेफ्टिनेंट नवदीप ने अपने पलटन के सिपाहियों को तैनात कर दिया.
सिर पर गंभीर चोट के बावजूद 4 आतंकियों को मार गिराया
कुछ समय की कवायद के बाद, लेफ्टिनेंट नवदीप और उनकी पलटन को आतंकी नजर आ गए. लेफ्टिनेंट नवदीप ने मोर्चा संभालते हुए आतंकियों को चेतावनी दी. आतंकियों ने भारी गोलीबारी शुरू की दी. आतंकियों के इस दुस्साहस का जवाब देने के लिए लेफ्टिनेंट नवदीप आगे बढ़े और तीन आतंकियों को उनके अंजाम तक पहुंचा दिया. इसी बीच, उनकी निगाह पलटन के जवानों पर गोलीबारी कर रहे चौथे आतंकी पर पड़ी. वे उस चौथे आतंकी की तरफ बढ़े ही थे, तभी उनको सिर पर गंभीर चोट लग गई. उन्होंने अपनी चोट की परवाह छोड़ चौथे आतंकी से भिड़ गए और कुछ ही पलों में उसे मौत के घाट उतार दिया. अब तक लेफ्टिनेंट नवदीप अकेले चार आतंकियों को मौत के घाट उतार चुके थे. बाकी बचे आतंकियों की बौखलाहट इस कदर बढ़ गई थी कि उन्होंने सेना के जवानों पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी थी.
साथी जवान की जान बचाने के लिए कुर्बान की खुद की जान
चारों आतंकियों को उनके अंजाम तक पहुंचाने के बाद लेफ्टिनेंट नवदीप की निगाहें अब बाकी बचे आतंकियों को खोज रही थीं. इसी बीच, उनकी निगाह आतंकियों की गोलियों से जख्मी हुए अपने एक साथी पर पड़ी. वे आतंकियों की तरफ से बरस रहीं गोलियों की परवाह करे बिना, अपने साथी की तरफ बढ़ चले और अदम्य साहस का परिचय देते हुए अपने घायल साथी को सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया. अब तक लेफ्टिनेंट नवदीप बुरी तरह से जख्मी हो चुके थे. बावजूद इसके, वह तब तक आतंकियों पर गोलियां बरसाते रहे, जब तक उनके निढाल होकर गिर नहीं गए. इस ऑपरेशन में कुल 12 आतंकियों को मार गिराया गया था. 20 अगस्त 2011 को लेफ्टिनेंट नवदीप सिंह ने महज 26 वर्ष की उम्र में देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दे दिया और वे शहीद हो गए.
लेफ्टिनेंट नवदीप के पिता और दादा भी थे सेना में अधिकारी
लेफ्टिनेंट नवदीप सिंह मूल रूप से पंजाब के गुरदासपुर जिले के रहने वाले थे. उनका जन्म एक सैन्य परिवार में हुआ था. वे अपने परिवार की तीसरी पीढ़ी थे, जो देश की सेवा के लिए सेना में भर्ती हुए थे. लेफ्टिनेंट नवदीप के दादा सेना में जूनियर कमीशंड अधिकारी थे. उनके पिता सूबेदार मेजर जोगिंदर सिंह ने 30 साल तक बंगाल सैपर्स में अपनी सेवाएं दी थीं. वे मानद कप्तान के रूप में सेना से सेवानिवृत्त हुए थे. बचपन से ही उनका पालन पोषण देश भक्ति और देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने की भावनाओं के साथ हुआ था. यही वजह है कि आईएचएम-गुरदासपुर से होटल प्रबंधन में स्नातक और आर्मी इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, कोलकाता से प्रबंधन में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त के बावजूद उन्होंने सेना को अपनी कर्मभूमि के तौर पर चुना.
देश के सर्वोच्च शांति का पुरस्कार से हुए सम्मानित
लेफ्टिनेंट नवदीप को 2010 में सेना आयुध कोर में शामिल किया गया था. इस कोर की जिम्मेदारी युद्ध और शांति के दौरान भारतीय सेना को रसद सहायता प्रदान करने की होती है. हालांकि यह बात दीगर है कि लेफ्टिनेंट नवदीप सिंह को उनकी पहली पोस्टिंग 15 मराठा लाइट इन्फैंट्री की एक इन्फेंट्री यूनिट में मिली. यह यूनिट जम्मू-कश्मीर में काउंटर इंसर्जेंसी ऑपरेशन के लिए तैनात थी. गुरेज सेक्टर ऑपपरेशन के लिए लेफ्टिनेंट नवदीप सिंह को मरणोपरांत उनके असाधारण साहस, अदम्य भावना और सर्वोच्च बलिदान के लिए देश का सर्वोच्च शांति काल वीरता पुरस्कार, ‘अशोक चक्र’ से सम्मानित किया गया था. उन्हें यह पुरस्कार पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल द्वारा 26 जनवरी, 2012 को प्रदान किया गया था.