राजनीति में प्यार के साइड इफेक्ट
-ए॰ एम॰ कुणाल
एक समय था जब लड़कियां अपने पंसदीदा फिल्म स्टार और स्पोर्ट्स मैन की तस्वीर तकिये के नीचे रख कर सोती थीं लेकिन अब उनकी सोच मे बदलाव आ रहा है। आज उन्हें ग्लैमर के साथ-साथ पावर भी चाहिए। अगर आपको किसी लड़की के पर्स में किसी राजनेता की तस्वीर मिले तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिये।
राजनेताओं के नाम किसी न किसी हस्ती के साथ पहले भी जुड़ते रहे हैं। वह चाहे अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जोन एफ कैनडी और मर्लिन मुनरो का किस्सा हो, बिल क्लिंटन और मोनिका का मामला हो, फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी और सुपर माडल कार्ला ब्रूनी के प्रेम प्रसंग का मामला हो, या फिर जवाहर लाल नेहरू और माउंटवेटन की पत्नी का मामला हो, यह वह किस्से हैं जो अपने समय में काफी सुर्खियों में रहे थे। सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर रहे राजनेताओं के ज्यादतर किस्से तो कहानी बनते-बनते रह जाते हैं। हो भी क्यों न, राजधर्म जो सर्वोपरि हो जाता है। अगर अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की बात करें तो, अमेरिका जैसे खुले समाज में जहां कि पर तरह की घटनाएं आम बात हैं, वहां की जनता ने अपने राष्ट्रपति का किसी गैर महिला के साथ संबंध बर्दाश्त नहीं किया। मोनिका के साथ संबंध के कारण क्लिंटन की कुर्सी पर बन आयी थी।
कुछ ऐसी ही विषय पर अमिताभ बच्चन की दो फिल्में आई थीं- निशब्द और चीनी कम। इन फिल्मों में अमिताभ को अपने से काफी कम उम्र की लड़की के साथ प्यार करते दिखाया गया। निशब्द में जहां अमिताभ अपनी बेटी की सहेली के प्यार में पागल दिखे, वहीं चीनी कम में अपने से तीस साल छोटी तब्बू के साथ प्यार करते नज़र आए। फिल्म ‘चीनी कम’ के एक सीन में अमिताभ तब्बू से इस बात की शिकायत करते हैं कि अपने से 6 साल छोटे परेश रावल से उनकी बेटी का हाथ मांगते हुए शर्म आती है। लेकिन वास्तविक जीवन में उम्र की दीवार कोई मायने नहीं रखती। न तो इस बात से राजनेताओं को परहेज है और न ही उनसे आधी उम्र की इन लड़कियों को ही कोई फर्क पड़ता है।
फिल्मों में इस तरह के किस्से आम हैं लेकिन राजनीतिक जीवन में लोगों को बहुत सी बातों का ध्यान रखना पड़ता है। राजनीतिक कारणों के चलते ही राजीव और सोनिया की शादी से इन्दिरा गांधी नाराज थीं। अगर संजय गांधी का आकस्मिक निधन नहीं हुआ होता तो शायद ही राजीव राजनीति में आते। संजय गांधी का नाम भी मेनका गांधी से पहले रुखसाना सुल्ताना के साथ काफी चर्चा में था। संजय गांधी उनसे प्यार करते थे या नहीं, पर उन दिनों पार्टी के अंदर रुखसाना का प्रभाव काफी था और संजय भी उसे प्रमोट करते थे। मेनका गांधी के साथ संजय की शादी के बाद रुखसाना की कहानी का क्या हुआ, यह कोई नहीं जानता है।
राजनीति में कुर्बानी की परम्परा काफी पुरानी है, राजनीतिक कारणों के चलते ही हॉलीवुड की मशहूर अदाकारा मर्लिन मुनरो को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। हालांकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि मुनरो की मौत नींद की गोलियों की ओवरडोज से हुई थी लेकिन कुछ लोग इसके पीछे राष्ट्रपति कैनडी का हाथ बताते हैं। 1985 में बीबीसी के संवाददाता एंथोनी समर ने अपनी रिपोर्ट में यह साफ कहा था कि मुनरो ने आत्महत्या नहीं की थी बल्कि उनकी हत्या की गई थी। बाद में एक तस्वीर भी जारी की गई थी जिसमें मर्लिन मुनरो के साथ दो शख्स खड़े हैं, उनमें से एक की शक्ल हूबहू जॉन कैनडी जैसी ही है। सच्चाई चाहें जो भी हो लेकिन एक बात तो तय है कि राजनीति के लिए लोग किसी भी हद तक जा सकते हैं। अगर प्यार बंद कमरे तक रहे तो ठीक है लेकिन जब प्यार राजनीति पर हावी होने लगे तो उसे कुर्बान करने से भी इन राजनेताओं को कोई गुरेज नहीं है।
भारत से अपनी नफरत के लिए मशहूर पाकिस्तान के नेताओं के प्यार के किस्से भी कुछ कम रोचक नहीं है। वह चाहे मोहम्मद अली जिन्ना हों या मौजूदा प्रधानमंत्री इमरान खान, दोनों ही अपने प्रेम प्रसंग के लिए चर्चा में रहे हैं। क्रिकेट से संन्यास के बाद अबतक तीन शादी कर चुके इमरान के बारे में तो यहां तक कहा जाता है कि इन दिनों पाकिस्तान की सरकार उनकी बेगम चला रही हैं। वहीं मिस पाकिस्तान रहीं महलीज़ सरकारी और पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ का मामला भी कुछ दिन सुर्खियों में रहा था। 26 वर्षीय महलीज़ ने यह कह कर पाकिस्तान के साथ-साथ वर्ल्ड मीडिया में खलबली मचा दी थी कि मुशर्रफ में वह सारी खूबियां हैं, जो हर लड़की एक मर्द में देखना पसंद करती है और वह भी उन लड़कियों में से एक हैं।
एक समय में रूस की जिम्नास्ट एलीना और दुनिया के दूसरे सबसे ताक़तवर इंसान पुतिन के मामले ने भी काफी तूल पकड़ा था। जबकि पुतिन की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई थी। मीडिया के सामने अपने प्यार का खुलकर इज़हार करने वाली इन सुंदर बालाओं को भला इस बात की परवाह कहां है। इसे महज सस्ती लोकप्रियता के लिए किया गया स्टंट कहें या प्यार, सच्चाई चाहें जो भी हो लेकिन सत्ता और सुंदरी के मेल को लेकर बहस कोई नई नहीं है।
भारत के अंतिम वायसराय लार्ड माउंटबेटन की पत्नी के साथ जवाहर लाल नेहरू के प्यार के किस्से काफी चर्चा में रहे थे। लार्ड माउंटबेटन करीब 18 महीने भारत में रहे थे। उस दौरान पंडित नेहरू को एडविना के करीब आने का मौका मिला। नेहरू द्वारा शेरवानी के ऊपर गुलाब का फूल लगाने को भी लेडी माउंटवेटन से जोड़ कर देखा जाता था। भारत से चले जाने के बाद भी दोनों के बीच दोस्ती कायम रही। नेहरू साल मे कम से कम दो बार एडविना से मिलने के लिए ब्रिटेन जाया करते थे। इसके अलावा वे बराबर एडविना को खत लिखा करते थे। बताया जाता है कि जब एडविना की मौत हुई थी उस वक्त उनके पास नेहरू के खतों का छोटा सा बंडल मिला था। शायद अंतिम समय में वे उन खतों को पढ़ रही थीं।
यूं तो नेहरू और एडविना के संबंधों के बारे काफी कुछ लिखा गया है, लेकिन उसकी प्रमाणिकता पर सवाल उठते रहे हैं। माउंटबेटन की बेटी पामेला ने एडविना और नेहरू के संबंधों को स्वीकार कर धुंधली पड़ चुकी तस्वीर पर से मिट्टी हटाने का काम किया है। पामेला ने अपनी पुस्तक ‘इंडिया रिमेम्बर्ड’ में कई अनछुए पहलुओं को उठाया है। हालांकि पामेला ने नेहरू और एडविना के बीच शारीरिक संबंधों की बात से इनकार किया है लेकिन यह कह कर कि वे दोनों आत्मा से जुड़े हुए थे, उनकी प्रेम कहानी को अमर करने की कोशिश की है। किताब में पामेला का कहना है कि भारत से चले जाने के बाद भी दोनों के बीच दोस्ती कायम रही और इस बात की जानकारी उनके पिता को भी थी। पामेला ने इस बात को भी स्वीकार किया है कि उनके पिता लार्ड माउंटबेटन ने एडविना के साथ नेहरू के संबंधों का फायदा उठाया। एडविना के प्रभाव का ही परिणाम था कि लार्ड माउंटबेटन के कहने पर नेहरू कश्मीर समस्या को सयुंक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में भेजने को तैयार हो गए थे। हालांकि बाद में नेहरू को अपने इस फैसले पर काफी पछतावा हुआ था। क्योंकि सुरक्षा परिषद ने अमेरिका के इशारे पर कश्मीर के प्रश्न को बदल कर भारत-पाकिस्तान विवाद बना दिया था, जिसका परिणाम भारत आज तक भुगत रहा है।
एडविना माउंटबेटन के साथ नेहरू के करीबी रिश्तों के बारे में उनके प्राइवेट सचिव जे. ओ. मथाई ने भी कई मौकों पर चर्चा की है। भारत से चले जाने के बाद भी कई बार नेहरू की एडविना से मुलाकात हुई थी। एडविना अपनी मौत से एक वर्ष पहले भारत आई थीं। उस समय साथ में खींची गई दोनों की तस्वीर आज भी उनकी यादों को ताजा करती है। एडविना की मौत 21 फरवरी 1960 को हुई थी, उस वक्त ऑस्ट्रेलियाई राजनयिक वाल्टर क्रोकर नेहरू के साथ मौजूद थे। क्रोकर ने अपनी डायरी में लिखा है कि वे राजकीय भोज पर आये थे। लेकिन जैसे ही नेहरू ने खाना शुरू किया तभी एडविना की मौत का दुखद समाचार उन्हें मिला। उनकी खाने की थाली जस की तस रखी रह गई। हालांकि उन्होंने काफी हद तक खुद को संभालने की कोशिश की और सभी से सामान्य तौर पर बातचीत करते रहे लेकिन उनके चेहरे के भाव को साफ तौर पर पढ़ा जा सकता था।
एडविना की मौत के चार साल बाद 1964 में पंडित नेहरू भी चल बसे। उनके साथ ही वे खूबसूरत यादें भी दफन हो गईं, जो इतिहास की एक अनमोल धरोहर होतीं। वैसे तो पंडित नेहरू पढ़ने लिखने के शौकीन थे लेकिन एडविना के साथ अपने संबंधों के बार में उन्होंने कभी कुछ भी नहीं लिखा। नेहरू को करीब से जानने वाले लोगों ने भी इस विषय को अनछुआ ही रहने दिया। वह तो भला हो पामेला माउंटबेटन का, जिन्होंने अपनी मां और पंडित नेहरू के संबंधों को उजागर कर इस रहस्य पर डला पर्दा उठाया।
इस कड़ी में अगला नाम भाजपा के भीष्म पितामह और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का आता है, जिनके किस्से मीडिया में न सही, पर राजनीतिक गलियारों में काफी चर्चा में रहे थे। वाजपेयी का नाम उनके कॉलेज के दिनों की दोस्त राजकुमारी कौल से जोड़ा जाता रहा है। उस जमाने में, ये भी चर्चा थी कि जब वाजपेयी छात्र संगठन एसफआई में थे और सिंधिया परिवार से मिलने वाले वजीफे के कारण उनको पार्टी से निकाला गया था। उस प्रस्ताव का अनुमोदन उनकी दोस्त ने ही किया था, जो उस वक्त उनके साथ थीं।
राजकुमारी कौल के साथ वाजपेयी ने शादी क्यों नहीं की, यह तो किसी को पता नहीं है लेकिन मिस कौल की शादी के बाद वाजपेयी उनके घर पर काफी समय रहे थे। विवाह के संबंध में एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा था कि मैं अविवाहित हूं पर कुंवारा नहीं।
जब सबकी प्रेम कहानी की चर्चा हो रही हो तो ऐसे में भारतीय राजनीति के मोस्ट एलिजिबल बैचलर राहुल गांधी की बात न हो, ये भला कैसे हो सकता है। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी अपनी कोलंबियाई गर्लफ्रेंड को लेकर अक्सर चर्चा में रहे हैं। कॉलेज के दिनों की दोस्ती में प्यार का रंग भर चुका है, लेकिन राजनीतिक मजबूरी के कारण राहुल अगला कदम नहीं उठा पा रहे हैं। राजनीति से अवकाश लेकर समय-समय पर बाहर चले जाने के कारण भी राहुल की प्रेम कहानी से जुड़ी अफवाहों को हवा मिलती है। राजनीति के जानकारों की माने तो कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री पद के भावी प्रत्याशी राहुल गांधी को उस विदेशी बाला से विवाह के लिए सोनिया गांधी की रजामंदी मिल पाना मुश्किल लग रहा है। राजनीति के लिए सोनिया ने प्रधानमंत्री की कुर्सी त्याग दी, कहीं राहुल को अपनी गर्लफ्रेंड से हाथ न धोना पड़े। हालांकि कांग्रेसी नेता इस तरह की खबरों को महज़ अफवाह बताते आए हैं लेकिन राहुल आखिर किस लड़की के इंतजार में बैठे हैं, इसका जवाब किसी के पास नहीं है।
राजस्थान की राजनीति से सुर्खियों में आए सचिन पायलट और फारूख अब्दुल्ला की बेटी सारा अब्दुल्ला की प्रेम कहानी भी काफ़ी चर्चा में रही है। लंदन में MBA की पढ़ाई के दौरान दोनों की पहली मुलाकात हुई थी। फिर प्यार हुआ और बात शादी तक पहुंच गई। लेकिन सचिन और सारा को अपने सियासी परिवार का साथ नहीं मिला।
कश्मीर की राजनीति के लिए फारूख अब्दुल्ला और सारा के भाई उमर अब्दुल्ला ने इस शादी से साफ इनकार कर दिया था। जब सहमति के सारे दरवाजे बंद हो गए तो सचिन और सारा ने दुनिया की परवाह न करते हुए शादी कर ली। उनकी शादी में अब्दुल्ला परिवार की तरफ से कोई शामिल नहीं हुआ था। काफ़ी समय बाद अब्दुल्ला परिवार ने सचिन पायलट को स्वीकार किया।
ये अलग बात है कि जिस राजनीति वजह से उमर अब्दुल्ला अपनी बहन सारा और सचिन के प्रेम कहानी के विलेन बन गए थे, आज उसी सियासत के कारण उमर अपने प्यार से महरूम हैं। पिछले दस साल से उमर अब्दुल्ला का नाम एक मशहूर टीवी जर्नलिस्ट के साथ जोड़ा जा रहा है। उमर की प्रेम कहानी सबको पता है पर सियासी मजबूरी के कारण वे शादी नहीं कर पा रहे हैं।
“नेम और फेम” की चाह हर किसी को होती है, और जब आपका नाम देश के सर्वोच्च पद पर बैठे किसी व्यक्ति के साथ जोड़ा जा रहा हो, तो फिर कहना ही क्या है? दूसरी ओर, अपना जीवन “खुली किताब” की तरह बताने वाले सियासतदान “लव लाइफ” को हमेशा छुपाकर रखते हैं।