लंदन : किसानों की आड़ में भारतीय हाई कमीशन के सामने प्रदर्शन, दिखाए खालिस्तान के झंडे….
लंदन में भारतीय उच्चायोग के सामने किसानों के समर्थन में प्रदर्शन के दौरान भारत विरोध तत्व भी दिखे थे. माना जा रहा है कि कम से कम दो शीर्ष खालिस्तानी चरमपंथी इस प्रदर्शन का हिस्सा थे. इनमें से एक की शिनाख्त परमजीत सिंह उर्फ पम्मा और दूसरे की कुलदीप सिंह चेहरू के रूप में की गई है. ये दोनों लोग लंदन में प्रदर्शन के दौरान खालिस्तानी झंडे के साथ मौजूद थे.
भारतीय खुफिया अधिकारियों के अनुसार कुलदीप सिंह चेहरू अखंड कीर्ति जत्था (AKJ) से जुड़ा हुआ है और फेडरेशन ऑफ सिख ऑर्गनाइजेशन (FSO) का समन्वयक है. 48 साल के कुलदीप सिंह चेहरू की ब्रिटेन में मिठाई की कई दुकानें हैं. लेकिन उसका नाम वांछित की सूची में नहीं है. उसका ताल्लुक पंजाब में कपूरथला जिले के फगवाड़ा में चेहरू गांव से है.
मगर संगठन के संस्थापक और पहले नेता खालिस्तान कमांडो फोर्स (KCF) के “जनरल” आतंकी मनबीर सिंह चेहरू के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं. मनबीर को गिरफ्तार किया गया और बाद में दिसंबर 1987 में एक मुठभेड़ में मार दिया गया. इसके बाद कुलदीप सिंह ने भारत छोड़ दिया और ब्रिटेन में रहना शुरू किया. उसे ब्रिटेन में भारत विरोध प्रदर्शनों के लिए जाना जाता है.
भारत के अन्य अलगाववादियों के साथ कुलदीप सिंह चेहरू ने भारत में किसानों के विरोध प्रदर्शन को अपना एजेंडा भुनाने के लिए इस्तेमाल किया.
परमजीत सिंह उर्फ पम्मा का इतिहास
वहीं परमजीत सिंह उर्फ पम्मा अपेक्षाकृत सबसे प्रमुख सिख चरमपंथियों में से एक है. एनआईए की ओर से वांछित परमजीत सिंह का भारत विरोधी गतिविधियों का एक लंबा इतिहास रहा है. इस साल जुलाई में गृह मंत्रालय ने उसे गैरकानूनी गतिविधियों (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत 8 अन्य खालिस्तानी चरमपंथियों के साथ एक आतंकवादी के रूप में चिह्नित किया था.
पम्मा के मिलिटेंसी गतिविधियों की शुरुआत उनके बड़े भाई परमिंदर सिंह उर्फ “राजा” या “बॉस” से शुरू हुई. परमिंदर को 1980 के दशक में पंजाब पुलिस ने गोली मार दी थी. पम्मा ने तब संगरूर जेल में भी 10 महीने गुजारे थे. 1992 तक पम्मा छोटे-मोटे अपराधों में शामिल रहा, दो साल बाद वह जर्मनी चला गया और फिर पाकिस्तान, जहां उसने बब्बर खालसा इंटरनेशनल (बीकेआई) की शुरुआत की.
खुफिया एजेंसियों के मुताबिक पम्मा शुरू में वधवा सिंह का करीबी था. फिर खालिस्तान टाइगर फोर्स में शामिल हो गया और जगतार सिंह तारा के करीब हो गया. जिसके बाद थाईलैंड में गतिविधियों की जिम्मेदारी संभाली. पंजाब में आतंकवादी गतिविधियों को वह पाकिस्तान से समर्थन देता रहा.
पम्मा को वर्ष 2000 में राजनीतिक शरण मिल गई, जहां बताया जा रहा है कि तीन मंजिला एक किराने की दुकान में उसकी हिस्सेदारी है. हाल के वर्षों में वह गुरपतवंत सिंह पन्नू के करीब आया. खुफिया एजेंसियों का मानना है कि पन्नू पाकिस्तान के आईएसआई के समर्थन के साथ पंजाब में खालिस्तानी आंदोलन को फिर से खड़ा करने में लगा हुआ है.
पम्मा पर राष्ट्रीय सिख संगत (RSS) के प्रमुख रूलदा सिंह की हत्या में शामिल होने का आरोप है. रूलदा सिंह की 28 जुलाई, 2009 को पटियाला में अनाज बाजार में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. इसके तुरंत बाद वेस्ट मिडलैंड्स पुलिस ने पम्मा को जुलाई 2010 में गुरशरण बीर सिंह, पियारा सिंह गिल और अमृतबीर सिंह सहित तीन अन्य संदिग्धों के साथ नजरबंद कर दिया था. लेकिन जल्द ही उन्हें छोड़ दिया गया था.