विधानसभा चुनाव : बिहार के बारदोली में इस बार किसका बजेगा डंका
बेगूसराय। बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक तापमान उफान पर है। ऐसे में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का गृह विधानसभा क्षेत्र बेगूसराय का तेघड़ा इन दिनों सुर्खियों में है। लेनिनग्राद के नाम से चर्चित रहा बरौनी विधानसभा क्षेत्र परिसीमन के बाद वर्तमान का तेघड़ा विधानसभा क्षेत्र बन गया है। बेगूसराय की धरती ने एक से एक रत्न को पैदा किया। लेकिन यह क्षेत्र साहित्यिक, सांस्कृतिक, औद्योगिक और राजनीतिक रूप से हमेशा सुर्खियों में रहा। इसी विधानसभा क्षेत्र के सिमरिया में साहित्य के सूर्य राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का जन्म हुआ। कभी दुनिया के दस इतिहासकारों में शामिल रहे डॉ. रामशरण शर्मा का घर इसी क्षेत्र में था।
केंद्रीय गृह सचिव के पद तक पहुंचे और जिला से एक मात्र राज्यपाल बने बाल्मीकि प्रसाद सिंह बीहट में पैदा हुए। देश दुनिया में चर्चित हुए छात्र नेता कन्हैया कुमार का घर बीहट इसी विधानसभा क्षेत्र में है। जिसे बिहार का बारदोली कहा जाता है। अंग्रेज हुकूमत के समय जब लोग अंग्रेजों के चौकीदार से डरते थे तो इस गांव के भीखो सिंह समेत अन्य नौजवानों ने घुड़सवार अंग्रेज सिपाही को पटक कर उसका हथियार छीन लिया था। कभी एशिया का सबसे बड़ा यार्ड गढ़हरा यहीं है, बरौनी की पहचान बिहार के औद्योगिक राजधानी के रूप में है। यह लेलिनग्राद आज वामपंथी और दक्षिणपंथी की धुरी बन चुका है।
1952 के विधानसभा चुनाव में बिहार के पहले एमएससी उत्तीर्ण रामचरित्र सिंह विधायक बने थे। 1957 में कांग्रेस ने टिकट काट दिया तो वे निर्दलीय खड़ा होकर चुनाव जीत गए। लेकिन इसके बाद 1962 से लगातार 48 सालों तक इस सीट पर वामपंथ का कब्जा रहा। 2010 में अचानक बड़ा बदलाव हुआ और भाजपा के ललन कुंवर ने यहां कमल खिलाकर राष्ट्रवाद का झंडा बुलंद करते हुए वामपंथ के अभेद्य किला को ध्वस्त कर दिया। लेकिन 2015 के विधानसभा चुनाव में जदयू के वीरेंद्र महतों ने राजद के चुनाव चिन्ह पर वामपंथ और दक्षिणपंथ के सभी समीकरण को ध्वस्त करते हुए जीत हासिल कर ली। अब वीरेंद्र महतों राजद छोड़कर जदयू में शामिल हो गए और सीटिंग रहने से जदयू की दावेदारी भी है तो राजद की भी। महागठबंधन में भाकपा की दावेदारी यहां मजबूत मानी जाती है।
वामपंथ के परंपरागत और कन्हैया के घर वाले इस सीट पर पूर्व विधायक राजेंद्र सिंह, अशोक कुमार सिंह, राम रतन सिंह और सनातन सिंह दावेदार हैं।एनडीए में जदयू और भाजपा में इस सीट को लेकर रस्साकस्सी हो रही है। फिलहाल वीरेंद्र महतों जदयू में भले ही आ गए लेकिन उनके बाहरी रहने (मोकामा निवासी) और पांच साल तक क्षेत्र से गायब रहने के कारण एनडीए के कार्यकर्ता उन्हें पचा नहीं पा रहे हैं। जदयू जिलाध्यक्ष भूमिपाल राय यहां से बड़े दावेदार हैं। भाजपा के पूर्व विधायक ललन कुंवर, केशव शांडिल्य, कृष्ण नंदन सिंह, राम लखन सिंह, सुनील कुंवर और सुनील कुमार यहां से दावेदार हैं।
बेगूसराय विधानसभा में अगर भाजपा किसी अगड़े को टिकट देती है तो पूर्व विधायक सुरेंद्र मेहता का तेघड़ा से चुनाव लड़ना तय है। राजद से जिलाध्यक्ष मोहित यादव, सुधा देवी, कामदेव यादव, मकबूल आलम, जिला परिषद सदस्य जनार्दन यादव एवं सिकंदर अली दावेदारी कर रहे हैं। पूर्व मुखिया हेमंत कुमार शर्मा सीपीआई एवं राजद दोनों ओर से टिकट लेने के प्रयास में हैं, अगर दोनों में से किसी ने टिकट नहीं दिया तो वह निर्दलीय मैदान में उतरेंगे। दूसरे निर्दलीय प्रत्याशी संजीव भारती भी क्षेत्र में परिश्रम कर रहे हैं। पप्पू यादव के जाप से उमेश सिंह तैयारी में लगे हुए हैं, अगर यह सीट जदयू के हिस्से में नहीं गई तो अशोक कुमार सिंह भासो भी यहां से निर्दलीय मैदान में उतरेंगे।
फिलहाल बदहाल गढ़हरा यार्ड, गंगा का कटाव और विस्थापन का दर्द एवं जर्जर सड़क की मार झेल रहे इस विधानसभा क्षेत्र के लोगों की निगाहें गठबंधन के दलों पर टिकी है। दोनों गठबंधन यहां किसे अपना उम्मीदवार बनाती है, उसके बाद बड़े पैमाने पर निर्दलीय प्रत्याशी भी खुलकर सामने आएंगे। इधर, दो लाख हजार मतदाताओं के लिए मतदान केन्द्र बनाकर प्रशासन शांतिपूर्ण चुनाव की तैयारी कर रहा है।