बरेली में 80 हजार कुर्बानियों के बाद भी चौपट हुआ खाल का कारोबार,
Leather Market जिले में हर साल बकरीद पर पशुओं की खालों की बिक्री से मदरसों को होने वाली रुपये की कमाई इस बार बंद हो गई है। एक्सपोर्ट नहीं होने के कारण खाल के व्यापारी जिले में नहीं पहुंचे।
यूपी के बरेली में हर साल बकरीद पर पशुओं की खालों की बिक्री से मदरसों को होने वाली रुपये की कमाई इस बार बंद हो गई है। एक्सपोर्ट नहीं होने के कारण खाल के व्यापारी जिले में नहीं पहुंचे। इस कारण कुर्बानी के बाद लोगों ने पशुओं की खाल दफन कर दीं। जानकाराें की मानें ताे एक्सपाेर्ट न हाेने के चलते इस बार कराेड़ाें रुपए का नुकसान हुआ है।
ईद उल अजहा पर हाेता था माेटा मुनाफा
ईद उल पर तीन दिन लगातार व अन्य जानवरों की कुर्बानी होती है। कुर्बानी के बाद पशुओं की खाल जिले में संचालित तमाम मदरसों में पहुंचा दी जाती है। फिर वहां से कानपुर, कोलकाता के तमाम व्यापारी खाल खरीदने पहुंचते हैं। इस खाल से हर साल मदरसों को मोटा मुनाफा होता है।
बरेली में दी जाती है 80 हजार कुर्बानियां
जिले में हर साल बकरीद पर तीन दिन करीब 80 हजार छोटे पशुओं की कुर्बानी दी जाती है। इसमें करीब साठ हजार छोटे जानवर तो बीस हजार जानवर होते हैं। बाहर से आने वाले व्यापारी खाल के अच्छे दाम दे जाते हैं। छोटे जानवरों की खाल का ढाई सौ रुपया और जानवर की खाल करीब पांच सौ रुपये तक बिकती है।
मदरसाें से हाेती थी करीब ढाई करोड़ की आमदनी
इससे करीब ढाई कराेड़ रुपये तक की आमदनी मदरसों को होती है। यहां से खाल लेकर व्यापारी विदेशों में एक्सपोर्ट करते हैं। इस बार कोरोना के चलते एक्सपोर्ट बंद है, जिसके चलते मदरसों को काफी नुकसान हुआ है। व्यापारी जानवर की खाल का पचास रुपये तो छोटे का मात्र बीस रुपये दे रहे हैं।
लाेगाें ने कुर्बानी के बाद जमीन में दफन कर दी खालें
इस कारण ग्रामीण क्षेत्रों से तमाम लोग खाल देने मदरसों में नहीं पहुंचे। उन्होंने खाल दफन कर दी। तंजीम उलमा ए इस्लाम के महासचिव मौलाना शहाबुद्दीन ने बताया कि खाल का एक्सपोर्ट बंद होने के कारण इस बार पशुओं की खाल खरीदने व्यापारी नहीं आए। स्थानीय कुछ खरीदार आए, जिन्होंने काफी कम रेट लगाए। इस कारण मदरसों को काफी नुकसान हुआ है।