ये है झारखंड में लातेहार सीट का समीकरण, बीजेपी को पड़ गए थे लाले
झारखण्ड की राजधानी रांची से 100 किमी दूर लातेहार जिला 2014 लोकसभा चुनाव के समय चर्चा में था। उस समय जहाँ पूरे देश में बीजेपी की लहर थी, वहीँ लातेहार में बीजेपी को बड़ी हार झेलनी पड़ी थी। माना जाता है कि यह जनजातीय जिला इतना सजग है कि कार्य न करने पर विधायक यहाँ दोबारा नहीं जीत सकते।
झारखंड राज्य का बड़ा जिला होने के अलावा लातेहार प्रमुख विधानसभा सीट भी है। 2005 में यहां कराए गए पहले चुनाव में राजद के नेता प्रकाश राम विधायक चुने गए थे। 2009 के चुनाव में यहां से भाजपा के बैद्यनाथ राम विधायक बने। 2014 में इस सीट से झारखंड विकास मोर्चा के नेता प्रकाश राम विधायक चुने गए। गौरतलब है कि लातेहार में कुल 242,069 मतदाता हैं। प्रकाश राम को कुल 71,189 मत मिले थे। प्रकाश राम ने भाजपा के ब्रजमोहन राम को 26,787 मतों से हराया था।
जनजातीय जिले का औसत लिंगानुपात 967
जनगणना 2011 के अनुसार लातेहार की कुल आबादी 726,978 है। इनमें से 369,666 पुरुष और 357,312 महिलाएं हैं। यानी औसत लिंगानुपात 967 है। इस जिले की 7.1 फीसदी आबादी शहरी और 92.9 फीसदी लोग ग्रामीण इलाकों में रहते हैं। औसत साक्षरता दर 59.51 फीसदी है। जिले में पुरुषों में शिक्षा दर 69.97 फीसदी और महिलाओं की 48.68 फीसदी है। शहरी इलाकों का औसत साक्षरता दर 78.3 फीसदी और ग्रामीण इलाकों का औसत साक्षरता दर 58 फीसदी है। जिले में कुल 313,379 लोग विभिन्न प्रकार के रोजगार में लीन हैं। इनमे 37.4 प्रतिशत लोग स्थाई रोजगार में हैं या साल में 6 महीने से ज्यादा काम करते हैं।
समृद्ध और विकसित सभ्यता से भरा लेताहर
गौरतलब है कि लातेहर अपनी समृद्ध प्राकृतिक सुंदरता, वन, वन उत्पादों और खनिज के लिए प्रसिद्ध है। 1924 के बाद से ही अनुमण्डल के रूप में यह पलामू जिले का एक अभिन्न हिस्सा रहा था। 77 साल बाद 4 अप्रैल 2001 में लातेहार को जिला घोषित कर दिया गया था। मुख्य रूप से यह जनजातीय जिला है। यहां करीब 45.54 फीसदी अनुसूचित जनजाति रहती है। लातेहार अपने घने जंगलों और हाथियों के लिए भी जाना जाता है। चारों तरफ जंगलों से घिरा होने के कारण इस पर साम्राज्य स्थापित करने वाले आक्रमणकारियों की नजर कम जाती थी। लेकिन जंगलों और दुर्गम क्षेत्र होने के बावजूद पुराने शिलालेखों से पता चलता है कि यहां काफी विकसित सभ्यता थी। इस क्षेत्र में आदिम जनजातियों का शासन चलता था।
लेताहर में सब कुछ है ख़ास
यहां की खास बात ये है कि इन जंगलों में जो आदिवासी रहते हैं उनकी आजीविका इन्हीं जंगलों से चलती हैं। अपने समाज की रक्षा करने के लिए महिलाएं पुरुष शिकारी भेष में शिकार करती थीं और लड़ाई लड़ती थीं। बाद में परंपरा के कारण बारह वर्षों के अंतराल पर पारंपरिक पुरुष वस्त्रों में महिलाएं जनी शिकार करने लगीं। अब यह परंपरागत त्योहार के रूप में 12 वर्षों के अंतराल पर महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। वहीँ लातेहार इंद्रा झरना, तातापानी सुकारी नदी, नवागढ़ किला, बेतला राष्ट्रीय अभ्यारण्य और नेतरहाट बोर्डिंग स्कूल के लिए भी विख्यात है। बता दें कि नेतरहाट को क्वीन ऑफ छोटा नागपुर भी कहा जाता है।