लखीमपुर खीरी कांड की जांच के लिए तय एसआईटी से अपना नाम वापस लें आईपीएस पद्मजा चौहान
लखीमपुर खीरी की घटना में मारे गए किसानों के मामले की जांच की निगरानी के लिए सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश का नाम तय कर दिया है। साथ ही एसआईटी में 3 आईपीएस अधिकारियों को निगरानी के लिए शामिल किया है। अखिल भारतीय किसान महासभा सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय का स्वागत करती है और इसे पीड़ितों के अंदर न्याय के प्रति भरोषा जगाने वाला निर्णय मानती है।
परन्तु एसआईटी में शामिल किए गए तीन वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों में से एन पद्मजा चौहान एक विवादास्पद अधिकारी रही हैं। लखीमपुर खीरी जिले में ही अपनी तैनाती के दौरान आईपीएस पद्मजा चौहान किसान आंदोलन के दमन में संलिप्त रही हैं। यही नहीं किसानों, शोषित पीड़ितों व पुलिसिया उत्पीड़न के शिकार लोगों की आवाज उठाने वाले लोकतंत्र के चौथे स्तंभ प्रेस पर भी उन्होंने हमला किया।
इस संबंध में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को लंबी जांच के बाद देश का एक ऐतिहासिक आदेश देना पड़ा। प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की 5 सदस्यीय खोजी समिति ने अपनी जांच में पाया कि पद्मजा का व्यवहार आम जनता से ठीक नहीं है। इसीलिए उसने उन्हें कभी भी पब्लिक प्लेस पर पोस्ट ना किए जाने की संस्तुति की। साथ ही इस मामले को राज्यसभा, लोकसभा, विधानसभा और विधान परिषद के पटल पर भी रखने को कहा। याद रखें,
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी लखीमपुर खीरी में उनकी तैनाती के दौरान अमर उजाला पत्रकार समीउद्दीन नीलू का उत्पीड़न करने, उनकी हत्या की कोशिश करने तथा उसमें असफल रहने पर उन्हें फर्जी मुकदमे में जेल भेज देने के मामले की निंदा की। आयोग ने पीड़ित पत्रकार को 5,00,000 रुपया मुआवजे का आदेश भी दिया। इस दौरान एसपी पद्मजा के निर्देश पर आधा दर्जन से अधिक पत्रकारों के खिलाफ विभिन्न थानों में फर्जी मुकदमे दर्ज किए गए।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग नई दिल्ली उनके इस कृत्य की जांच सीबीआई से कराने की संस्तुति 2010 में कर चुका है। जिसके खिलाफ पद्मजा अपने सहयोगी पुलिसकर्मियों के माध्यम से हाई कोर्ट से स्थगन आदेश प्राप्त कर अपना प्रमोशन कराने में सफल रही है। हाईकोर्ट में यह मामला अभी भी विचाराधीन है।
लखीमपुर तहसील के गुठना बुजुर्ग गांव में जमीन की फर्जी विरासत के खिलाफ और गरीब किसानों की पट्टे की जमीन दिलाने के सवाल पर चले किसान आंदोलन में तत्कालीन एसपी पद्मजा ने आंदोलन की अगुवाई कर रहे अखिल भारतीय किसान महासभा के नेता कामरेड रामदरस, क्रांति कुमार सिंह सहित कई कार्यकर्ताओं पर गैंगस्टर एक्ट लगाया।
यही नहीं एसपी पद्मजा की इन दमनात्मक कार्यवाहियों का विरोध करने पर तराई के चर्चित किसान नेता अलाउद्दीन शास्त्री, ऐपवा की तत्कालीन राज्य सचिव अजंता लोहित (अब दोनों दिवंगत) सहित दर्जनों किसान कार्यकर्ताओं को जेल भेज दिया गया। इसके अलावा बुलंदशहर और बदायूं में तैनाती के दौरान भी उनका कार्यकाल विवादों में रहा।
अखिल भारतीय किसान महासभा का मानना है कि खुद लखीमपुर खीरी में अपने कार्यकाल में किसानों-पत्रकारों का दमन करने वाली आईपीएस अधिकारी का लखीमपुर खीरी कांड की जांच के लिए बनी एसआईटी में रहना कहीं से भी न्यायसंगत नहीं है।
इस लिए किसान महासभा की मांग है कि या तो आईपीएस पद्मजा चौहान खुद ही लखीमपुर खीरी कांड की एसआईटी से अपना नाम वापस ले लें, अन्यथा सुप्रीम कोर्ट उनकी जगह किसी और अविवादित अधिकारी का नाम राज्य सरकार से मांगे।