साहब मजदूर की एहमियत के अहसास की गोली खा लो, कोरोना चला जायेगा
पत्रकार नवेद शिकोह की कलम से
श्रमिक दिवस पर ग़ौर कीजिए, शहर बनाने वाला क्यों शहर छोड़ रहा !
ताजमहल बनवाकर हाथ कटवा देना मोहब्बत की निशानी नहीं ज़ुल्म और एहसानफरामोशी की मिसाल है। हम इन रिवायतों पर अमल करते रहे तो हमारा खोखला लोकतंत्र मुगलिया सल्तनतों की तरह इतिहास बन जायेगा। अफसोस कि कोरोना काल में हम मजदूरों के साथ कुछ ऐसा ही बर्ताव कर रहे हैं।
लक्जरी लाइफ जीने वाले साहब लोग, तुम रेड ज़ोन मे हो। लेकिन गरीब और आम जनता ही कोरोना के खतरे से तुम्हें बचायेगी। तुम्हारे अधिनस्थ काम करने वाली देश की सत्तर प्रतिशत मेहनतकश आबादी की इम्युनिटी पॉवर कोरोना पर लगाम लगा लेगी।
तुम्हारा शहर बनाने वाला,तुम्हारा ईंधन बचाने वाला, तुम्हारे कल-कारखाने चलाने वाला, तुम्हारा जीडीपी बढ़ाने वाला श्रमिक ही कोरोना को भी भगायेगा। ये फैलायेगा नहीं तुम्हें इस जानलेवा वायरस से बचायेगा। इसे तुमने परिवार से, रोटी से रोजी से और रोजगार से दूर कर दिया है लेकिन यही भारत से कोविड 19 को दूर भगा देगा।श्रमिक ही असली कोरोना फाइटर है। इसका योगदान इस वायरस से लड़ने वाले डाक्टरों, वैज्ञानिकों, पुलिस इत्यादि से भी बढ़ कर है।
बीवी बच्चों के साथ भूख प्यास के आलम मे भी जो पांच-सात सौ किलोमीटर पैदल चल लें इन्हें हल्के मे मत लेना, यही भारत की ताकत हैं.. यही भारत की आत्मा है। इसके हाथ मत कमजोर करो, इनके पैरों में बेड़ियां मत डालो, यही कोरोना के बढ़ते कदमों का रास्ता रोक रहे हैं। इनके फौलादी हाथ ही तो कोविड 19 का गिरेबान पकड़ कर पीछे ढकेल रहे हैं।
किसान, मजदूर समेत मजदूरी स्तर का काम करने वाले ठेले वाले.. रिक्शेवाले जैसे पेशेवर इस देश का करीब सत्तर प्रतिशत हिस्सा हैं। इन मेहनतकशों के मेहनत का पसीना रोज ना जाने कितने जहरीले वायरस पी जाता है। भारत जैसा घनी आबादी वाले राष्ट्र को मेहनत के इस पसीने ने ही इटली और अमेरिका नहीं बनने दिया। संक्रमण को भी हजम(बेअसर)करने वाले भारतीय आम नागरिकों के फोलादी जिस्म कमाल के हैं। इनका जिस्म बच्पन से ही दो-चार वायरस बेअसर करने में अभयस्त है। इनका इम्युनिटी पॉवर यानी प्रतिरोधक शक्ति इतनी मजबूत है कि इनके नजदीक आकर कोरोना को रोना पड़ेगा।
देश-दुनिया के साइंटिस्ट और डाक्टर भी यही बात कह रहे हैं कि भारत इसलिए कोविड 19 की भयावह स्थितियों से बच जायेगा क्योंकि यहां की आम, गरीब, किसान,मजदूर, कामगार जैसे मेहनतकशों की इम्यूनिटी बेहद मजबूत है।
वायरस के जंगल में पलने-बढ़ने वाला भारतीय श्रमिक उस मोगली की तरह हैं जो विपरीत परिस्थितियों में जीना जानता है।
मोगली जैसे मजबूत मजदूर को मजबूर करने वाले शेर खान से बचाना पड़ेगा। जंगल बुक का शेर खान ही मोगली के लिए खतरा था। यहां शेरखार मजदूर की भूख, बेरोजगारी और बेबसी है। यदि मजदूर(मोगली)शेर खान (भुखमरी) से बच गया तो भविष्य में कोरोना को भगाने का श्रेय मजदूर स्तर के लोगों की प्रतिरोध क्षमता को ही जायेगा।
लेकिन अफसोस कि इस देश के साहब लोग इस कोरोना काल में मजदूर/कामगारों/श्रमिकों की अहमियत समझ नहीं पाये। इनकी जितनी बेकद्री करनी थी की गयी। इतिहास गवाह है कि जिसने कामगारों के पसीने की अहमियत नहीं समझी.. जिसने मजदूरों का हक छीना.. श्रमिकों के साथ जुल्म की वो अतीत बन कर रह गया।
ताजमहल बनवाकर हाथ कटवा देना मोहब्बत की निशानी नहीं ज़ुल्म और एहसानफरामोशी की मिसाल है। हम इन रिवायतों पर अमल करते रहे तो हमारा खोखला लोकतंत्र मुगलिया सल्तनतों की तरह इतिहास बन जायेगा।
भारत में ये कोरोना काल इतिहास के पन्नों में दो बातों के लिए याद किया जायेगा। पहला ये कि देश के साहब लोगों ने इन बुरे दिनों में उन मजदूरों को मैट्रो सिटीज से बाहर कर दिया जो मैट्रो सिटीज मजदूरों ने ही बनाये थे। फैक्टियों, कंपनियों और कारखानों को चलाने वाले मजदूरों से उनके मालिकों ने मुंह मोड़ लिया। इन श्रमिकों की रोटी छिन गयी जिस रोटी का गेंहू तैयार करने वाला किसान भी उसके परिवार का ही सदस्य है।