जानिए क्यों वित्तमंत्री ने कांग्रेस पर लगाया पिछलग्गू होने का आरोप ?
दिल्ली, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में बजट पर चर्चा का जवाब देते हुए कांग्रेस पार्टी की आर्थिक नीतियों की बखिया उधेड़ दी। उन्होंने कांग्रेस पार्टी पर आर्थिक मामलों में कभी रूस तो कभी चीन का पिछलग्गू बनने का आरोप लगाया और दावा किया कि बीजेपी ने हमेशा भारत, भारतीयता और यहां के लोगों पर भरोसा किया।
उन्होंने कहा कि हमारी जनसंघ से लेकर बीजेपी तक और आज की बीजेपी तक एक ही सोच रही है। उन्होंने कहा, “हमारा जनसंघ के दिनों से ही भारत के आंट्रप्रन्योर, यहां की इंजीनियरिंग, यहां के ट्रेड और नौजवानों पर हमेशा भरपूर भरोसा रहा है। हम उधार की सोच नहीं रखते।”
निर्मला ने आगे कहा, “जनसंघ अपने जन्मदिन से भारत और भारतीयों पर लगातार भरोसा करता है। आप जैसा नहीं कि कहीं से कुछ उठा लिया, उसमें अपना मुलम्मा चढ़ा दिया। हमने कभी किसी की नकल नहीं की। हम कभी रूस के नजदीकी थे तो हम उसके पिछलग्गू हो गए और उसके बिल्कुल कड़े नियंत्रण में आ गए।
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बाद में पता चला कि चीन की धाक बढ़ने लगी है और वो पूंजीवाद को बढ़ावा दे रहा है तो हमें भी वैसा ही करना चाहिए। नहीं, हमारी सोच ऐसी कभी नहीं रही। जनसंघ से लेकर बीजेपी के गठन और अब की बीजेपी तक हमारी सोच एक ही रही है। हमें भारत, भारत के युवाओं और भारत की कारोबारी क्षमता पर लगातार भरोसा है।’
इससे पहले वित्त मंत्री ने कहा कि 1991 में अर्थव्यवस्था खोलने के बाद जब देश की सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की कंपनियों को कुख्यात लाइसेंस कोटा राज से मुक्ति मिली तभी हमें गरीबी उन्मूलन की दिशा में बड़ी उपलब्धि हासिल हो सकी।
उन्होंने कहा, “इसलिए मैं बार-बार यह कहती हूं कि यह बजट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उन दिनों के अनुभवों पर बहुत हद तक आधारित है जब वो गुजरात के मुख्यमंत्री थे। तब उन्होंने महसूस किया था कि लाइसेंस कोटा राज के खात्मे से भारतीय अर्थव्यवस्था को कैसे पर लगने लगे थे। उन्हीं अनुभवों के आधार पर सुधारों की सतत प्रक्रिया का संकल्प लिया गया। इस बजट में भी आपको इसकी झलक मिल रही होगी।”
निर्मला ने कांग्रेस पर विदेशी प्रभाव में आकर आर्थिक नीतियां तय करने का आरोप लगााया और कहा कि इसी सोच ने भारतीय बिजनस की रीढ़ तोड़ दी। उन्होंने कहा, “भारत के आर्थिक इतिहास में यह बेहद महत्वपूर्ण है कि कैसे 1948 से समाजवाद को बड़े जोशो-खरोश के साथ अपनाया गया था। संस्थाओं का राष्ट्रीयकरण किया गया।
तब लाइसेंस कोटा राज के रूप में समाजवाद पर भारतीयता का मुलम्मा भी चढ़ाया गया। इससे भारतीय कंपनियों के संचालन की राह में बाधा पैदा की गई, उनके लिए काम करना मुश्किल हो गया, खासकर छोटे और मझोले उद्योंगो के लिए। सवालों, लाइसेंसों, नियम-कानूनों के बोझ ने कारोबारियों की कमर तोड़ दी।”
सीतारमण ने आजादी के बाद से लेकर आज तक की कांग्रेस की आर्थिक नीतियों का हवाला दिया। उन्होंने कहा, “आजादी के बाद भारत की आर्थिक इतिहास पर एक नजर डालिए। मैं इसके डीटेल में नहीं जाऊंगी, आपको थोड़ा इशारा जरूर कर रही हूं। आप समझ जाएंगे कि यहां क्या चल रहा था। 1948, 1955, 1969 और 1975 जब समाजवाद अपने शीर्ष पर था। उन्होंने कहा, लेकिन यह वास्तविक अर्थों में समाजवाद नहीं था। वह समाजवाद भी नहीं जिसकी चर्चा पश्चिमी देशों और रूस में चल रही थी बल्कि एक अजीब तरह का मिश्रित समाजवाद था जिसने भारतीय उद्यमियों की उस क्षमता पर ही प्रहार किया जिससे वो देश की अर्थव्यवस्था को उड़ान दे सकते थे।”
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उन्होंने इस बात पर हैरानी जताई कि जिस पार्टी ने शुरू में भारतीय अर्थव्यवस्था की राह रोकी, फिर 1991 में इसे खोला और अब हमारे प्रधानमंत्री को बार-बार पूछती है कि आपने कहां सुधार किया? उन्होंने कहा, “कांग्रेस आरोप लगाती है कि आपमें (NDA सरकार में) आर्थिक सुधारों के लिए प्रतिबद्धता नहीं है, आपको अर्थशास्त्र समझ में नहीं आता है, आपको अर्थव्यवस्था के प्रबंधन की कोई जानकारी नहीं है, इसलिए आप सुधार नहीं कर सकते, यह काम तो हम (कांग्रेस) ही कर सकते हैं।”
वित्त मंत्री ने आगे कहा, “समाजवाद से साम्यवाद, फिर पूरी तरह लाइसेंस कोटा राज और आर्थिक उदारवाद तक… इसलिए हम तो सबकुछ हैं। एक वक्त में समाजवादी, दूसरे वक्त में साम्यवादी, फिर लाइसेंस कोटा राज, क्रोनी कैपिटलिजम और अंत में अर्थव्यवस्था को खोल दिया। इतने उतार-चढ़ाव लेकिन बोलते सीना तानकर हैं, कोई शर्मिंदगी नहीं।”