जानिए क्या था वो घटनाक्रम, जिसके बाद जितिन प्रसाद की राहें कांग्रेस से होने लगीं जुदा
लखनऊ. उत्तर प्रदेश में मिशन-2022 की तैयारियों में जुटी कांग्रेस (Congress) को विधानसभा चुनाव से पहले एक बड़ा झटका लगा है. कांग्रेस और ब्राम्हणों के कद्दावर नेता जितिन प्रसाद (Jitin Prasada) ने बुधवार को कांग्रेस और गांधी परिवार से अपने 3 पीढ़ियों पुराना नाता तोड़ बीजेपी (BJP) का दामन थाम लिया है. राहुल गांधी के बेहद करीबी माने जाने वाले जितिन प्रसाद एक लंबे समय से पार्टी की उपेक्षा और अंतर्कलह को लेकर आहत थे. ये उपेक्षा और अंतर्कलह कई बार सामने भी आया. जितिन प्रसाद ने इसको लेकर कई बार अपनी बात राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी के सामने रखी थी. लेकिन उसके बावजूद कोई सार्थक परिणाम न मिलने पर जितिन प्रसाद ने 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को अलविदा कहकर भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया है.
दरअसल राहुल गांधी के समय में जितिन प्रसाद की कभी यूपी में उस तरह तूती बोलती थी, जिस तरह MP में ज्योतिरादित्य सिंधिया और राजस्थान में सचिन पायलट का दबदबा रहा है. लेकिन धीरे-धीरे ये असर कम होता गया. इसमें कहीं न कहीं जितिन के खुद चुनाव हारना भी कारण रहा. लेकिन दूसरे कारण भी कम जिम्मेदार नहीं रहे. सियासी जानकारों के अनुसार जब से देश और प्रदेश के सियासत में प्रियंका गांधी का दखल बढ़ा. तब से प्रियंका से जुड़े कुछ नेताओं द्वारा अपनी निजी महत्वाकांक्षाओं के चलते एक सोची-समझी रणनीति के तहत जितिन प्रसाद के खिलाफ मोर्चा खोल दिया गया.
सबसे पहले जितिन प्रसाद को अपना क्षेत्र छोड़कर लखनऊ से राजनाथ सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ने को बोला गया. लेकिन जितिन प्रसाद किसी भी कीमत पर ऐसा न करके अपने क्षेत्र से ही चुनाव लड़ने की बात स्पष्ट कर दी. जिसके बाद जितिन के विरोधियों के फीडबैक के आधार पर ही जितिन प्रसाद को यूपी की सियासत से साइड लाइन कर दिया गया. फिर जब 2019 में कांग्रेस को करारी शिकस्त मिली, उसके बाद जितिन प्रसाद को ब्राम्हण चेहरे के तौर पर कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाये जाने की चर्चाएं शुरू हुई. लेकिन यहां भी प्रियंका ने जितिन को दरकिनार कर अजय कुमार लल्लू को कांग्रेस की कमान सौंप दी.
राष्ट्रीय सचिव धीरज गुर्जर के कहने पर विरोध
इसके बाद जितिन प्रसाद के यूपी कांग्रेस से जुड़े अहम फैसलों में दखल को भी ख़त्म कर दिया गया. जितिन प्रसाद से जुड़े नेताओं को भी जिला और संगठन के अहम पदों से हटा दिया गया. इतना ही नही इस दौरान कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव और यूपी के सहप्रभारी धीरज गुर्जर के कहने पर न सिर्फ जितिन प्रसाद के क्षेत्र लखीमपुर के जिलाध्यक्ष पर दबाव बनाकर जितिन प्रसाद के खिलाफ निंदा प्रस्ताव भेजवाया गया. बल्कि भाड़े पर मजदूर लेकर जितिन प्रसाद के खिलाफ उनके ही क्षेत्र में नारेबाज़ी कराकर उनकी छवि धूमिल कराने का प्रयास किया गया. इस साजिश से जुड़ा धीरज गुर्जर और लखीमपुर कांग्रेस के जिलाध्यक्ष का ऑडियो लीक हो जाने पर टीम प्रियंका पर कई गंभीर सवाल खड़े हो गए. लेकिन इसके बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई. इसके बाद जितिन प्रसाद ने अपना अलग रास्ता तलाशना शुरू कर दिया.
कांग्रेस को झेलनी पड़ सकती है ब्राह्मणों की नाराजगी
यूपी विधानसभा चुनाव से पहले जितिन प्रसाद के पार्टी छोड़ दिये जाने से ब्राम्हणों की भी नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है. अब कांग्रेस भले ही जितिन प्रसाद पर धोखा देने और उनके जाने से कोई फर्क न पड़ने की बात कह रही हो, लेकिन हकीकत यही है कि कांग्रेस के लिए जितिन प्रसाद जैसा कद्दावर ब्राह्मण नेता खोजना आसान न होगा. जितिन प्रसाद ब्राह्मणों के हितों की रक्षा के लिए ब्राह्मण चेतना परिषद नाम का संगठन पहले से ही चला रहे है. जिसके जरिये जितिन प्रसाद बीते एक लंबे समय से ब्राम्हणों को जोड़ने के लिए न सिर्फ इस संगठन के जरिये सरकार से नाराज हर एक ब्राह्मण परिवार से संपर्क कर रहे थे, बल्कि उनकी मदद के लिए अपने स्तर से हर संभव प्रयास भी करते रहे हैं.