जानिए क्या है ब्राह्मण जाति और इस जाति का राजनीती पर क्या है असर ?
भारत में हिन्दू धर्म में कई जातियां है। जिनमे से प्रथिमिक जातियां है ब्राह्मण,क्षत्रिय ,वैश्य और शूद्र । और हिन्दू धर्म में दलित को बाहर माना जाता था। लेकिन भारत का संविधान बनने के बाद से भेदभाव कम हो गया है। ऐसा माना जाता की कर्म और धर्म के हिसाब से जातियां बाटी गई है और ऐसा 3000 साल पहले से चला आ रहा है। हर जाती का कर्म और धर्म ब्रहम्मा जी के शरीर के अंगो के अनुसार तय किया गया है। ऐसा भी मन्ना है की इन सभी जातियों को ब्रहम्मा भगवान् ने उत्पन किया है। हिन्दू धर्म में ऐसा भी मना जाता है की ब्रहम्मा भगवान् ने ही इस श्रिस्टी की रचना की है।
अब हम आपको ब्राह्मण जाति के बारे में बताते है
हिन्द धर्म में ऐसा भी माना जाता है की ब्राह्मण जाति ब्रहम्मा जी के सर से उत्पन हुई है। पहले के ज़माने में ऐसा था की ब्राह्मण सिर्फ शिक्षक या पंडित और बहुदिमनी व्यक्ति ही होते है। लेकिन आज 21 सदी में ऐसा कुछ भी नहीं रहा है। ज़माना बदल गया है अब हर किसी को पढ़ें लिखे और आगे बढ़ने का मौका मिलता है। ये चार जातियां 3000 जातियों में बटी हुई है और 25000 sub – caste में बटी हुई है।
ब्राह्मण जाती में भी कई अलग सर नेम होते है और सबके अलग गोत्र होते है। अगर सेम जाती भी है तब भी गोत्र अलग होते है।
अब ये जानिए की कैसे ब्राह्मण समाज का प्रभाव राजनीती पर पड़ता है।
राजनीती तो पूरी तरह धर्म और जाती पर आधारित है। उत्तर भारत के बड़े राज्य जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश में ब्राह्मण जाति प्राथमिकता है।
भारतीय जनता पार्टी की बात करें तो 38 साल से पार्टी राजनीती में है और हमेशा से ऊंची जाती को ज्यादा प्राथमिकता मिलती है। जनरल केटेगरी में आने वाले ब्राह्मण, ठाकुर और बनिया को मिला के 65 % करयकर्ता है। और वहीं नीची जाती यानि की SC ,ST का अनुपात उसक मुकाबले कम ही होता है। बीजेपी पार्टी में राष्ट्रीय स्तर पर तीन -चौथाई ऑफिस कार्यकर्ता ऊंची जाती के लोग है। बीजेपी में 65 % डिस्ट्रिक्ट प्रेजिडेंट जनरल केटेगरी के है। दलित पक्ष इस बात से नाराज़ भी हुए है और उनका कहना है की बीजेपी ब्राह्मण- बनिया पार्टी है।
लेकिन जब विकास दुबे का केस हुआ और उप्र सरकार ने विकास दुबे का एनकाउंटर कर दिया तो इस बार से ब्रह्मिन समझ काफी नज़र हो गया था। दरहसल लोगों को सही गलत की नहीं पड़ी होती है लेकिन अगर जाति पर जब भी बात आएगी को तो सब एकजुट हो जाते है। और राजनेता इसी का फ़ायदा उठाते है। जब योगी सरकार ने देखा की ब्राह्मण समाज उनके खिलाफ हो रहा है तो अब 2022 के पहले अब उन्होंने रुख बदल लिया है और ब्राह्मण! उत्तर भारत में सत्ता, राजनीतिक और सामाजिक जीवन का फिर से मुख्य मुद्दा बन गया है। आज ब्राह्मणों के महत्व और उनकी भूमिका पर खूब चिंतन हो रहा है और इनका समर्थन पाने के लिए भी राजनीतिक दलों में इनसे गठजोड़ की होड़ है। राजनीती का खेल बस जातियोँ पर टीका है और सभी राजनैतिक दल इसका सहारा लेते हुए साल गुज़ारते जा रहे है।