जानें क्या होता है फॉर्म 17C?..जिसे चुनाव आयोग सार्वजनिक नहीं कर रहा है।

फार्म 17C को जारी न करने को लेकर SC में एक याचिका दायर की गई है

Form 17C: इस समय देश में जिसको लेकर सबसे ज्यादा बवाल मचा हुआ है। वह है फॉर्म 17C, सभी राजनीतिक परियों पार्टियां इसको सार्वजनिक न करने का आरोप चुनाव आयोग पर लगा रही हैं। पार्टियों का कहना है की, चुनाव वाले दिन वोटिंग प्रतिशत कुछ और होता है और एक हफ्ते बाद कुछ और।

पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की हैं 

विपक्षी पार्टियों के हो हल्ला के बाद “एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स” ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर किया है। दायर याचिका में कहा गया है कि, चुनाव आयोग ने वोटिंग प्रतिशत का डेटा कई दिनों बाद जारी किया।19 अप्रैल को हुए पहले चरण के चुनाव का डेटा 11 दिन बाद और 26 अप्रैल को हुए दूसरे चरण के चुनाव का डेटा 4 दिन बाद आया था। इतना ही नहीं, शुरुआती डेटा और फाइनल डेटा में 5% का अंतर होने का दावा भी एसोसिएशन द्वारा किया गया है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने SC से मांग की थी की वोटिंग खत्म होने के 48 घंटे के भीतर चुनाव आयोग अपनी वेबसाइट पर फॉर्म 17C की स्कैन्ड कॉपी अपलोड करे।

जानें चुनाव आयोग क्यों नहीं जारी करना चाहता है फार्म 17C

सुप्रीम कोर्ट में इस दायर याचिका का विरोध करते हुए चुनाव आयोग कहता है कि, अगर वेबसाइट पर फार्म 17C की कॉपी अपलोड की जाती है तो इससे अफरा-तफरी हो सकती है। साथ ही ECI ने यह भी तर्क दिया कि वेबसाइट पर कॉपी अपलोड होने के बाद इसकी तस्वीरों से छेड़छाड़ की जा सकती है, जिससे आम जनता का चुनावी प्रक्रिया से भरोसा उठ सकता है।

जानें क्या है फॉर्म 17C

1961 के कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल्स के मुताबिक, दो तरह के फॉर्म होते हैं, जिनमें वोटरों का डेटा होता है. एक होता है फॉर्म 17A और दूसरा होता है।

फार्म 17C में वोटर टर्नआउट का डेटा दर्ज किया जाता है। फॉर्म 17C को वोटिंग खत्म होने के बाद भरा जाता है। इसकी एक कॉपी हर उम्मीदवार के पोलिंग एजेंट को भी दी जाती है। जबकि फॉर्म 17A में पोलिंग ऑफिसर वोट डालने आने वाले हर एक मतदाता की डिटेल दर्ज करता है।

 

 

 

 

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