जानिए, क्या है एफएटीएफ, जिसमें अटकी है पाकिस्तान की सांस
आतंकवादियों को पनाह देने के मामले में अक्सर आरोपों में घिरा पाकिस्तान (terrorism in Pakistan) आतंक पर नकेल कसने वाली संस्था फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) के आगे डर जाता है. दरअसल वो संस्था की ग्रे लिस्ट से बाहर आना चाहता है ताकि इकनॉमी सुधर सके. अब पेरिस में FATF की बैठक शुरू हो चुकी है और साथ ही पाकिस्तान का फैसला भी हो जाएगा कि उसपर पाबंदियां बनी रहती हैं, या फिर और गहरी जाती हैं. ये भी हो सकता है कि टास्क फोर्स उसपर से बैन हटा ले.
ये एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है, जो मनी लॉन्ड्रिंग और टैरर फंडिंग जैसे वित्तीय मामलों में दखल देते हुए तमाम देशों के लिए गाइडलाइन तय करती है और यह तय करती है कि वित्तीय अपराधों को बढ़ावा देने वाले देशों पर लगाम कसी जा सके.
पहली सूची यानी ब्लैकलिस्ट में वो देश आते हैं जो आतंकी गतिविधियों से जुड़े होते हैं या फिर उन्हें अप्रत्यक्ष तौर पर फंड करते हैं. इन देशों की अर्थव्यवस्था से आतंक को बढ़ावा न मिले, इसके लिए देशों को ब्लैक लिस्ट कर दिया जाता है. ऐसे देशों को ब्लैकलिस्ट करने का सिलसिला साल 2000 से संस्था ने शुरू किया था.देशों को पहले चेतावनी दी जाती है और फिर कुछ देशों की एक कमेटी बनाकर निगरानी की जाती है कि ऐसे देश गाइडलाइन्स के मुताबिक गंभीर मामलों को काबू करने के लिए क्या और कैसे कदम उठा रहे हैं.
मनी लॉन्ड्रिंग और टेरर फंडिंग के मामलों में टैक्स चोरी का स्वर्ग न होकर ऐसे देश, जो इस स्थिति का शिकार होते लगते हैं, उन्हें इस लिस्ट में रखा जाता है. यह एक तरह से चेतावनी होती है कि समय रहते ये देश काबू करें और वित्तीय गड़बड़ियों को रोकने के कदम उठाएं. अगर ये देश ग्रे लिस्ट में आने के बाद भी सख़्त कदम नहीं उठाते हैं, तो इन पर ब्लैकलिस्ट होने का खतरा बढ़ता है.
बता दें कि आतंकवाद की फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग के खिलाफ ठोस कार्रवाई नहीं करने को लेकर पाकिस्तान को जून 2018 में FATF की ग्रे लिस्ट में रखा गया था. तब से वह उस लिस्ट में बना हुआ है. FATF ने आतंकी फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग के केस में पाकिस्तान से 27 प्रमुख बिंदुओं पर काम करने के लिए कहा था, लेकिन पाकिस्तान सारे लक्ष्यों को पूरा नहीं कर पा रहा है.अमेरिका में 9/11 हमले के बाद पाकिस्तान में आतंकवाद की रिपोर्टिंग करने पहुंचे पत्रकार डेनियल पर्ल का सिर 2002 में आतंकियों ने काट डाला था. इस केस में प्रमुख आरोपी उमर सईद शेख था, जिसे पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने निर्दोष कह दिया. अमेरिका ने उसके इस कदम पर एतराज जताया था. माना जा रहा है कि पाक सरकार के इस फैसले का असर लंबे समय तक FATF पर रहेगा.
इसके अलावा बीते साल फ्रांस में आतंकी घटनाओं के बाद पाकिस्तान ने एक तरह से अप्रत्यक्ष तौर पर इस्लामिक कट्टरता का समर्थन किया था. तब से फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों पाकिस्तान से नाराज हैं. अब कयास लगाए जा रहे हैं कि चूंकि एफएटीएफ में फ्रांस का बड़ा दखल है इसलिए उनकी नाराजगी पाकिस्तान पर कहर बरपा सकती है. ऐसे में इमरान सरकार ग्रे लिस्ट में बनी रह सकती है.पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से चरमरा जाएगी. बता दें कि पाकिस्तान पहले से ही कंगाल हो चुका है और फिलहाल कर्ज में डूबा हुआ है. अब कई मित्र देशों ने पाक को आर्थिक मदद देने से भी इनकार कर दिया है. ऐसे में उसके पास वर्ल्ड बैंक और एडीबी जैसी इंटरनेशनल संस्थाओं से ही कर्ज का आसरा है. अगर ग्रे लिस्ट बनी रहे तो ये संस्थाएं भी पाकिस्तान को कर्ज नहीं देंगी. साथ ही साथ ये भी हो सकता है कि ग्रे लिस्ट के चलते देश पाकिस्तान के साथ व्यापारिक संबंध रखने से इनकार कर दें.अकेले पाकिस्तान, संस्था की ग्रे लिस्ट में नहीं, बल्कि उसका साथ कई दूसरे देश दे रहे हैं. इनमें अल्बानिया, बहामास, बोत्सवाना, कंबोडिया, घाना, आइसलैंड, जमैका, मंगोलिया, निकारागुआ, सीरिया, युगांडा, यमन और जिम्बाब्वे शामिल हैं. कई देश आतंक पर सख्ती के साथ लिस्ट से बाहर भी आ चुके, जबकि कई ग्रे से होते हुए ब्लैक लिस्ट तक पहुंच गए.