जानें नीतीश कुमार के वो फैसले जिनसे महिलाओं को मिली पहचान
पटना. बिहार के सीएम नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू (JDU) हाल के दिन में लिए गए एक फैसले की वजह से सुर्खियों में है. दरअसल जेडीयू ने संगठन में महिलाओं को भारी हिस्सेदारी है और पार्टी का दावा है कि 33 फीसदी पद महिलाओं को देने वाली जेडीयू देश की पहली पार्टी है. जेडीयू के इस फैसले को नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के महिला सशक्तिकरण वाली सोंच से भी जोड़कर देखा जा रहा है. दरअसल साल 2005 में सत्ता संभालने के बाद से ही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महिलाओं के उत्थान (Women Empowerment) पर विशेष जोर दिया है. आज उसी का नतीजा है कि समाज के हर क्षेत्र में महिलाएं अपना लोहा मनवा रही हैं. नीतीश सरकार की कई योजनाओं को दूसरे राज्यों ने भी अपनाया है. राजनीति का क्षेत्र हो या शिक्षा का या सरकारी नौकरियों का, सरकार की योजनाओं के बदौलत महिलाओं की भागीदारी अन्य राज्यों की तुलना में ज्यादा है
सत्ता में सीधी भागीदारी
पंचायत और शहरी निकायों में महिलाओं के लिए पचास फीसदी आरक्षण करने वाला बिहार देश का पहला राज्य है. आरक्षण के कारण निर्णय लेने की प्रकिया में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है. नतीजतन कुल 8442 मुखिया में पांच हजार महिला मुखिया है. जिला परिषद हो या नगर निगम, महिलाओं की सशक्त मौजूदगी हर जगह दिखती है. हाल फिलहाल में जेडीयू ने अपनी नई प्रदेश कमेटी की घोषणा की है जिसमें महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण दिया गया है.
महिला सम्मान को अहमियत
2008 में मुख्यमंत्री नारी शक्ति योजना को लागू किया गया. इस योजना का मु्ख्य मकसद आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक सशक्तिकरण के रूप में महिलाओं को पहचान दिलाना था. इस योजना के जरिए महिलाओं के बहुआयामी विकास पर जोर दिया गया.इसी कड़ी में मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना, कन्या उत्थान योजना तथा कन्या सुरक्षा योजना के जरिए बाल विवाह को रोकने और कन्या जन्म को प्रोत्साहित करने की कोशिश की गई. बाल विवाह और दहेज प्रथा के खिलाफ हजारों किलोमीटर की मानव श्रृंखला बनाई गयी.
सरकारी नौकरी में सशक्त हिस्सेदारी
2016 में राज्य की सभी सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए 35 प्रतिशत तथा शिक्षा विभाग की नौकरियों में 50 प्रतिशत तक आरक्षण का प्रावधान किया गया. इसी को आगे बढ़ाते हुए सरकार ने सरकारी दफ्तरों में पोस्टिंग मे भी महिलाओं को 35 प्रतिशत आरक्षण दिया है. सरकार की कोशिश है कि आरक्षण के अनुपात में महिलाएं एसडीएम, बीडीओ, सीओ और थानेदार जैसे पद पर भी तैनात रहें. आरक्षण के कारण ही नियोजित शिक्षकों की कुल संख्या 3 लाख 51 हजार में करीब 2 लाख महिलाएं हैं. ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट की एक रिपोर्ट के अनुसार बिहार पुलिस में 25.33 प्रतिशत महिलाएं हैं. पुलिस बल की कुल संख्या करीब 92,000 है जिसमें 23,245 महिलाएं है. किसी भी राज्य में यह सर्वाधिक संख्या है और यह राष्ट्रीय औसत 10.3 प्रतिशत से दोगुनी है. 2015 तक यह आंकड़ा महज 3.3 प्रतिशत ही था.
शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी कदम
लड़कियों की शिक्षा के क्षेत्र में नीतीश कुमार की गेम चेंजर योजना मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना तथा मुख्यमंत्री बालिका प्रोत्साहन योजना से स्कूलों में लड़कियों के नामांकन में भारी इजाफा हुआ.अब तो सरकार ने मेडिकल,इंजीनियरिंग और प्रस्तावित स्पोर्टस यूनिवर्सिटी में नामांकन में 33 प्रतिशत सीट लड़कियों के लिए आरक्षित कर दी है.ऐसा करने वाला बिहार देश का पहला राज्य बन गया है.बिहार सरकार ने इस साल अपने बजट में इंटरमीडिएट (12वीं) पास अविवाहित लड़कियों को 25 हजार रुपये और स्नातक पास लड़कियों को 50 हजार रुपये दिए जाने का प्रावधान किया है.
आर्थिक तौर पर स्वावलंबी बनाने की कोशिश
बिहार में महिलाओं को सशक्त बनाने में ‘बिहार रूरल लाइवलिहुड प्रोजेक्ट’ यानी जीविका बेहद कारगर साबित हो रही है. इससे जुड़कर महिलाओं को उनके घर में ही रोजगार मिल रहा है. जीविका के तहत स्वयं सहायता समूह ने उल्लेखनीय काम किया है. देश में सर्वाधिक संख्या में महिलाएं किसी भी ऐसे समूह से जुड़ीं हैं. आंकड़ों के मुताबिक 34260 स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) का गठन किया गया है जिनसे गरीब परिवार की 4.30 लाख महिलाएं लाभान्वित हो रहीं हैं. अपनी छोटी बचत के जरिए एसएचजी की महिलाओं ने करीब 4 करोड़ रुपये जमा किए हैं. हाल में सरकार ने महिला उद्यमी योजना के तहत 10 लाख रुपये तक की मदद करने की घोषणा की है, जिसमें से पांच लाख अनुदान के रूप में मिलेगा और बाकि पांच लाख लोन होगा.
सरकार तो महिलाओं को समाज की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है, लेकिन समाज का भी दायित्व बनता है कि सरकारी योजना के मूल उदेश्य को पूरा करने में सहयोग करे. अशिक्षा, सामाजिक असमानता और पुरुषवादी मानसिकता आधी आबादी के सशक्तिकरण में बड़ी बाधा है.इसे दूर करने के लिए हम सबको आगे आना होगा.