Bharat की उपलब्धियों के पीछे, जानिए भारत पर कर्ज कितना?

Bharat , जो तेजी से विकासशील अर्थव्यवस्था के रूप में उभर रहा है, बढ़ते कर्ज के कारण गंभीर वित्तीय दबाव का सामना कर रहा है। सरकारी आंकड़ों और विशेषज्ञों की राय के आधार पर

Bharat , जो तेजी से विकासशील अर्थव्यवस्था के रूप में उभर रहा है, बढ़ते कर्ज के कारण गंभीर वित्तीय दबाव का सामना कर रहा है। सरकारी आंकड़ों और विशेषज्ञों की राय के आधार पर, इस रिपोर्ट में यह समझने की कोशिश की गई है कि भारत पर कर्ज क्यों बढ़ रहा है, क्या यह पहली बार हो रहा है, इसके लिए कौन जिम्मेदार है, और इससे निपटने के क्या समाधान हो सकते हैं।

Bharat पर वर्तमान कर्ज की स्थिति

• कुल कर्ज:

2023-24 के अंत तक, भारत पर कुल ₹155 लाख करोड़ का कर्ज है, जो जीडीपी का लगभग 60% है।

• बाहरी कर्ज:

Bharat पर बाहरी कर्ज (विदेशी संस्थाओं और देशों से लिया गया कर्ज) $620 बिलियन है।

• फिस्कल डेफिसिट:

2023-24 में सरकार का राजकोषीय घाटा (फिस्कल डेफिसिट) जीडीपी का 6.4% है।

क्या यह पहली बार है?

Bharat का कर्ज लेना नया नहीं है, लेकिन मौजूदा स्थिति कुछ मायनों में अलग है।
• 1991 का आर्थिक संकट:
उस समय भारत के पास आयात करने के लिए भी विदेशी मुद्रा भंडार नहीं था। स्थिति को संभालने के लिए सोना गिरवी रखना पड़ा।
• 2008 की वैश्विक मंदी:
भारत ने इस दौरान भी भारी आर्थिक दबाव का सामना किया, लेकिन उस समय बाहरी कर्ज का अनुपात इतना गंभीर नहीं था।

अंतर:

• 1991 में भारत की समस्या बाहरी मुद्रा की कमी थी।
• 2008 में समस्या वैश्विक मंदी से जुड़ी थी।
• 2023 में, भारत का कर्ज बढ़ने के साथ-साथ घरेलू राजस्व में भी कमी हो रही है।

भारत पर कर्ज क्यों बढ़ रहा है?

1. महंगे आयात:

• भारत तेल, गैस, और अन्य जरूरी वस्तुओं का आयातक है।
• रुपये की गिरती कीमत आयात को और महंगा बना रही है।

2. महामारी का प्रभाव:

• कोविड-19 महामारी के दौरान राहत पैकेज, स्वास्थ्य सेवाओं, और टीकाकरण पर भारी खर्च हुआ।
• जीएसटी संग्रह और अन्य टैक्स में गिरावट आई।

3. राजकोषीय नीतियां:

• सरकारी खर्चे जैसे कि सब्सिडी और मुफ्त योजनाओं पर बढ़ा हुआ व्यय।
• बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए विदेशी कर्ज पर निर्भरता।

4. वैश्विक कारक:

• रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक तेल और गैस की कीमतें बढ़ी हैं।
• वैश्विक मंदी और ब्याज दरों में वृद्धि से कर्ज लेना महंगा हो गया है।

5. राजस्व की कमी:

• निर्यात में गिरावट।
• कृषि और उत्पादन क्षेत्र में पर्याप्त सुधार की कमी।

कौन है जिम्मेदार?

1. मौजूदा सरकार:

• बड़े स्तर पर कर्ज लेने और मुफ्त योजनाओं की शुरुआत।
• राजस्व बढ़ाने के बजाय खर्च बढ़ाने पर जोर।

2. पिछली सरकारें:

• भारत की आर्थिक संरचना में सुधार लाने में असफलता।
• कृषि और औद्योगिक उत्पादन को बढ़ावा न देना।

3. आर्थिक नीतियों की कमी:

• निवेश के लिए अनुकूल माहौल न बनाना।
• महंगाई और आयात पर नियंत्रण में नाकामी।

4. वैश्विक घटनाएं:

• महामारी और युद्ध जैसे वैश्विक कारक।

समाधान क्या हो सकते हैं?

1. राजस्व बढ़ाना:

• घरेलू उत्पादन और निर्यात को बढ़ावा देना।
• टैक्स संग्रहण में सुधार।
• जीएसटी में पारदर्शिता लाना।

2. कर्ज प्रबंधन:

• विदेशी कर्ज पर निर्भरता कम करना।
• इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल अपनाना।

3. महंगाई पर नियंत्रण:

• घरेलू बाजार में उत्पादों की आपूर्ति बढ़ाना।
• कृषि और उद्योग क्षेत्र में निवेश बढ़ाना।

4. मुफ्त योजनाओं पर पुनर्विचार:

• केवल उन्हीं योजनाओं को जारी रखना जो उत्पादक हों।
• गैर-जरूरी सब्सिडी में कटौती।

5. वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा:

• मेक इन इंडिया जैसी योजनाओं को प्रभावी तरीके से लागू करना।
• भारतीय कंपनियों को वैश्विक बाजार में मजबूत बनाना।

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भारत पर बढ़ता कर्ज एक गंभीर समस्या है, लेकिन यह पहली बार नहीं है कि देश इस तरह की चुनौती का सामना कर रहा है।
• मजबूत नीतियां और दीर्घकालिक योजनाएं इस संकट से बाहर निकलने में मदद कर सकती हैं।
• कर्ज का प्रबंधन और राजस्व वृद्धि पर ध्यान देना ही इसका समाधान है।
• जनता और सरकार दोनों को मिलकर एक मजबूत और आत्मनिर्भर भारत की ओर कदम बढ़ाना होगा।

Bharat की उपलब्धियों के पीछे, जानिए भारत पर कर्ज कितना?

सवाल यह है:

क्या भारत समय पर सही कदम उठा पाएगा, या यह कर्ज का संकट भविष्य में और गहरा जाएगा?

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