जानिए इतिहास में कब-कब किसानों ने किया दिल्ली पर कब्जा, देश आजाद होने के बाद
विगत कई दिनों से चल रहे किसान आंदोलन दिल्ली एवं तमाम प्रदेश में जारी है और किसान अपनी मांग पर अड़े है और पीछे हटने को वह तैयार नहीं हैं,
उनकी बस यही मांग है कि तीनो कृषि कानून को वापस लिया जाए।
धीरे धीरे दिल्ली के टिकरी बॉर्डर, गाजीपुर बॉर्डर, सिंधु बॉर्डर पर उनकी तादाद बढ़ती चली गई और आज लाखों की तादाद में किसान दिल्ली की सड़कों पर है।
अगर इतिहास में पीछे जाए तो आज से ठीक 32 साल पहले कैसे दिल्ली के बोट क्लब में एक बहुत ही बड़ा आंदोलन हुआ था ।
उस आंदोलन में तत्कालीन सरकार को किसानों ने झुका दिया था, उत्तर प्रदेश के किसान नेता महेंद्र महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में भारतीय किसान यूनियन ने अपनी मांगो को लेकर जिसमे उनको प्रमुख मांग बिजली , सिंचाई कि दरे घटाने और फसल के उचित मूल्य सहित 35 मांगों को लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश से बड़ी संख्या में किसान दिल्ली की तरफ रुख किए थे।
आंदोलन के दौरान दिल्ली के लोनी बॉर्डर पर किसानों को पुलिस के द्वारा रोका गया उसी दौरान गोली चल गई और 2 किसान की मृत्यु हो गई इसके ठीक बाद यह आंदोलन और ज्यादा उग्र रूप ले लिया। इसके बाद तमाम राज्यों से पांच लाख किसान दिल्ली के बोट क्लब पहुंचे थे और दिल्ली के तमाम जगहों पर किसानो की भारी संख्या की वजह से दिल्ली ठप सी पड़ गई थी
उस वक्त भी तत्कालीन सरकार प्रशासन सब लाचार साबित हो रहे थे और
धीरे धीरे किसान दिल्ली के बोट क्लब पे अपनी बैलगाड़ी और ट्रैक्टरों को ले पहुंच चुके थे।
उस वक्त सरकार प्रशासन और तमाम अधिकारी इस सोच में पड़ गए थे कि आखिर इस आंदोलन से कैसे निपटा जाए, सरकार के पसीने छूट रहे थे और अधिकारी कमरे से बाहर निकलकर आंदोलनकारी किसानों के बीच जाकर समझाने से डर रहे थे।
जिसके बाद महेंद्र सिंह टिकैत की अगुवाई में 12 सदस्यीय कमेटी ने तत्कालीन राष्ट्रपति और लोकसभा अध्यक्ष बलराम जाफर से मिले मगर कोई निष्कर्ष नहीं नहीं निकला।
फिर महेंद्र सिंह टिकैत ने तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी को चेतावनी दिया था और कहा था जिस तरह का व्यवहार हम किसानों के साथ किया जा रहा है यह बिल्कुल गलत है। हमारी मांगों को आप क्यों नहीं मान रहे और फिर तत्कालीन सरकार द्वारा 30 अक्टूबर 1988 को लाठी चार्ज करवा दिया गया। जिसके बाद महेंद्र सिंह की तरफ से एक बयान सामने आया और उन्होंने कहा किसान बदला नहीं लेता वह सब सह जाता है। वह तो बस जीने का अधिकार चाहता है। पुलिस ने जो उनके ऊपर जुल्म किया है उससे किसानों का हौसला और मजबूत हुआ है प्रधानमंत्री जी ने दुश्मन सा व्यवहार किया है किसानों की नाराजगी प्रधानमंत्री और इस सरकार को महंगी पड़ेगी।
साफ तौर पर कहे तो किसानों की तरफ से महेंद्र सिंह टिकैत ने प्रधानमंत्री को चुनौती दे डाली थी और फिर हफ़्तों तक राजपथ को किसानों ने कब्जा कर लिया था।
जिसके बाद किसानों के सामने आखिरकार तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को झुकना पड़ा था और किसानों को आश्वासन देकर विश्वास दिलाया गया की वह उनकी 35 सूत्रीय मांगों पर विचार करेंगे तब जाकर किसान अपने अपने घर की तरफ गए थे। ठीक 32 साल बाद कुछ ऐसा ही आंदोलन दिल्ली में जारी है।
सरकार अब तक कई बैठकें कर चुकी मगर अब तक निष्कर्ष नहीं आया, वहीं दूसरी तरफ किसानों का कहना है कि तीनों कृषि कानूनों को रद्द कराकर वह वापस कर जाएंगे।