जानिए पीएम हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर मिशन के बारें में, क्या है खास
प्रतिकूल परिस्थितियां ही मनुष्य को विकास की सीढ़ियों तक ले जाती हैं. आवश्यकता ही आविष्कार की जननी होती है. कोविड-19 महामारी ने पूरी दुनिया को ये दो बुनियादी बातें फिर से याद दिला दी हैं. स्वास्थ्य सुविधाओं में अव्वल रहने वाले बहुत से देश किन्हीं कारणों से भले ही कोविड-19 के कहर पर असरदार तरीके से काबू नहीं पा सके, लेकिन भारत ने अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन किया है, इसमें कोई शक किसी को नहीं होना चाहिए. विपक्ष के राजनैतिक आरोपों को ताक पर नहीं भी रखें, तो हकीकत यही है कि भारत ने गत 21 अक्टूबर को 100 करोड़ से ज्यादा टीके लगाने की आंकड़ा पार कर लिया.
सच यह भी है कि वर्ष 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भारत की राजनीति में नया दौर शुरू होने के बाद नागरिकों की कई ऐसी बुनियादी समस्याओं की तरफ पहली बार ध्यान दिया गया, जिनका समाधान पहले की सरकारों की प्राथमिकता सूची में नहीं रहा. सीधे स्वास्थ्य से जुड़े मामलों के अलावा ऐसे बहुत से दूसरे कदम भी होते हैं, जो कमजोर व्यक्ति के हरसंभव सशक्तीकरण (स्वास्थ्य समेत) के लिए आवश्यक होते हैं.
प्रधानमंत्री जन धन खाते हैं उदाहरण
उदाहरण के लिए प्रधानमंत्री जन धन खातों को ही लें, तो पता चलता है कि 20 अक्टूबर, 2021 तक 43 करोड़, 69 लाख से ज्यादा लोगों ने आजादी के सात दशक बाद पहली बार खाते खुलवाए हैं. इन खातों में एक लाख, 46 हजार, 232 करोड़ रुपये से ज्यादा रुपये जमा हैं. यह बडी उपलब्धि है, जिसकी तरफ लोगों का ध्यान नहीं जाता है. पैसे होंगे, तभी अच्छा इलाज भी कराया जा सकता है और जन धन खाते यह सुनिश्चित कर सकते हैं. ऐसी और बहुत सी योजनाएं हैं, जो गरीबों का जीवन स्तर सुधारने में मददगार साबित हुई हैं. इसके अलावा आयुष्मान भारत जैसी सेहत से जुडी सीधी योजनाएं भी मोदी सरकार ने सफलतापूर्वक लागू की हैं. आयुष्मान योजना के तहत इसकी सीमा में आने वाले लोग किसी भी अस्पताल में पांच लाख रुपये तक का इलाज मुफ्त में करा सकते हैं.
कोविड-19 के अप्रत्याशित उभार ने पूरी दुनिया को नागरिकों की सेहत के प्रति चौकन्ना कर दिया है. ऐसे में भारत में भी बड़े पैमाने पर उपाय किए जा रहे हैं, ताकि भविष्य में नागरिकों को उचित इलाज और दूसरी संबंधित सुविधाओं के लिए परेशान नहीं होना पड़े. यह सही है कि जन्होंने कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान मौत की विभीषिका को देखा है, वे लंबे समय तक दर्द से पूरी तरह उबर नहीं पाएंगे, लेकिन संकट ही हमें भविष्य को सुरक्षित बनाने के लिए तैयार करता है. दुनिया की तरह भारत में भी कई बडी त्रासदियां हुई हैं. अपनों की मौत कोई नहीं भूलता, लेकिन जीवन चलता रहता है. भोपाल गैस त्रासदी जैसे हादसों से हम यही सीखते हैं कि आगे कौन सी सावधानियां बरत कर और कौन सी उन्नत तकनीक अपना कर हम इस तरह के जोखिम कम कर सकते हैं?
आयुष्मान और हेल्थ मिशन से अलग महत्वपूर्ण योजना
देश में मेडिकल और नर्सिंग कॉलेजों की स्थापना पर उल्लेखनीय रूप से जोर देने के साथ ही मोदी सरकार ने अब आयुष्मान भारत योजना और नेशनल हेल्थ मिशन से अलग एक और महत्वपूर्ण योजना लॉन्च की है. नए मिशन का नाम है प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर मिशन. इस मिशन पर पांच साल में 64 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए जाएंगे. नए मिशन के जरिये देश के कोने-कोने में इलाज से लेकर क्रिटिकल रिसर्च तक पूरा इकोसिस्टम बनाया जा रहा है. इसके तहत गांवों और शहरों में ‘हेल्थ और वेलनेस सेंटर’ खोले जा रहे हैं, जहां शुरुआत में ही बीमारियों का पता लगाया जा सके.
प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर मिशन के तहत सभी स्वास्थ्य सेवा सुविधाओं से युक्त दो बड़े सचल कंटेनर स्थापित किए जाएंगे. इमरजेंसी में उन्हें हवाई या रेल मार्ग से कहीं भी ले जाया जा सकेगा. हर कंटेनर में 200 बिस्तरों की क्षमता होगी और इन्हें दिल्ली और चेन्नई में स्थापित किया जाएगा. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया के अनुसार नए मिशन के तहत स्थापित होने वाली सुविधाओं से जिला स्तर पर ही 134 तरह के टेस्ट हो जाएंगे. प्रधानमंत्री ने 157 नए मेडिकल कॉलेज को मंजूरी दी है. मेडिकल छात्रों के लिए सीटें लगभग दोगुनी हो जाएंगी. मांडविया के मुताबिक कैंसर, डायबिटीज जैसी बीमारियों का इलाज और जांच प्राइमरी लेवल पर हो सकेगा. इसके लिए 1.50 लाख हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर खोलने का फैसला किया गया है, इनमें से करीब 79 हजार सेंटर में काम शुरू हो चुका है.
15 नई बायो-सेफ्टी लेवल तीन लेबोरेट्रीज होगी शुरू
स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, 15 नई बायो-सेफ्टी लेवल तीन लेबोरेट्रीज शुरू की जाएंगी. चार नए रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी भी शुरू होंगे. इसके अलावा बीमारी का पता लगाने, रोकथाम और कंटेनमेंट के लिए 50 इंटरनेशनल प्वॉइंट्स फॉर एंट्री को भी मजबूत किया जाएगा. इसके साथ प्रभावी स्क्रीनिंग के लिए पैसेंजर ड़ेटाबेस को डिजिटाइज किया जाएगा. ‘वन हेल्थ’ के लिए नया नेशनल इंस्टीएट्यूशन बनेगा. शहरी क्षेत्रों में 11 हजार से ज्यादा और ग्रामीण क्षेत्रों में 17 हजार से ज्यादा प्राइमरी हेल्थ सेंटर बनाए जा रहे हैं. ब्लॉक, जिला, प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर आईटी टेक्नोलॉजी के जरिये डायग्नॉस्टिक लेबोरेटरी का नेटवर्क स्थापित होगा. चार बड़े वायरोलॉजी संस्थान बनेंगे. पांच लाख से ज्यादा आबादी वाले हर जिले में कैजुअल्टी केयर सेंटर होंगे.
स्वास्थ्य पर इतना जोर इसलिए दिया जाना चाहिए, क्योंकि मनुष्य ब्रह्मांड की सबसे महत्वपूर्ण रचना है. लेकिन मनुष्य के जीवन के लिए जरूरी सभी चीजें भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं, जितना स्वयं मनुष्य. अर्थ यह हुआ कि सर्वाधिक महत्व वाले किसी अस्तित्व को बरकरार रखने वाले सभी तत्व भी कम महत्व के नहीं हो सकते. ऐसा कहें, तो ज्यादा सही होगा कि दुनिया में जीवन के बने रहने के लिए सभी प्राकृतिक अवयव एक-दूसरे के होने के लिए अनिवार्य हैं. इसलिए हम कह सकते हैं कि भौतिक विकास भले ही कितने भी चरम पर पहुंच जाए, मनुष्य समेत सभी कुदरती अस्तित्व उनका लाभ तभी उठा सकते हैं, जब वे सेहतमंद रहें. मनुष्य जीवन को बेहतर बनाना है, तो स्वच्छ पर्यावरण यानी साफ हवा और पानी के साथ ही बिना मानवीय हस्तक्षेप वाले प्राकृतिक भोज्य पदार्थों के साथ-साथ उचित स्वास्थ्य सेवाओं का उपलब्ध होना जरूरी है.
दुनिया भर में दूसरी भौतिक सुख-सुविधाओं के विकास पर जितना ध्यान दिया गया, उतना ही स्वास्थ्य सेवाओं के विकास पर भी दिया गया है. रोज नई-नई खोज हो रही हैं. चिकित्सा विज्ञान अब मनुष्यों में पशुओं के अंगों के सफल प्रत्यारोपण तक जा पहुंचा है. लेकिन यह भी सही है कि दुनिया के सभी लोगों तक विज्ञान की तरक्की की पहुंच एक जैसी नहीं है.
भारत में स्वास्थ्य सुविधाएं हालात दिनों दिन सुधर रहे
विकसित देशों के मुकाबले विकासशील और अल्पविकसित देशों में स्वास्थ्य सुविधाएं बहुत कम हैं. दुनिया भर में राजनैतिक व्यवस्थाओं ने अमीर और गरीब, दो श्रेणियां बना रखी हैं. निकट भविष्य में सामाजिक समरसता का वैश्विक लक्ष्य हासिल हो पाएगा, ऐसा लगता नहीं है. ऊपर वाला जमीन पर हर व्यक्ति को एक जैसी परिस्थिति में ही भेजता है, लेकिन समाजों में भेदभाव की मानवीय प्रवृत्ति भी प्राकृतिक रूप से मनुष्य में विद्यमान रहती है. अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों की तरह नायक और खलनायक भी समाज में अनिवार्य रूप से होते ही हैं और रहेंगे भी.
बहरहाल, भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं की बात करें, तो हालात दिनोंदिन सुधर रहे हैं. मोदी सरकार ने शुरू से ही इस ओर ध्यान दिया है. मेडिकल कॉलेज ज्यादा होंगे, तो डॉक्टर भी ज्यादा संख्या में उपलब्ध होंगे. अस्पतालों की संख्या बढ़ाने के साथ ही दवाओं की उपलब्धता की ओर भी काफी ध्यान दिया जा रहा है. अब नए हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर मिशन में जांच की सुविधाएं भी देशव्यापी की जा रही हैं. रेल और हवाई मार्ग में भी उल्लेखनीय विस्तार किया जा रहा है. साफ पानी की उपलब्धता के साथ ही स्वच्छता पर भी काफी ध्यान दिया जा रहा है. कुपोषण से निपटने के उपायों पर भी जोर दिया जा रहा है. इसके साथ ही प्रदूषण घटाने, नदियों को अविरल बनाने पर भी ध्यान दिया जा रहा है. ये सभी कारक बेहतर स्वास्थ्य का वातावरण बनाने के लिए जरूरी हैं.
भारत में स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ेगी, तो बड़े स्तर पर रोजगार का सृजन भी होगा. डॉक्टर, नर्से, दूसरे सहायक, लैब तकनीशियन, सफाई कर्मी, फॉर्मेसी उद्योग से जुडने वालों में उल्लेखनीय रूप से वृद्धि होगी. साथ ही यातायात और होटलिंग जैसे बहुत से क्षेत्रों में भी रोजगार बढ़ेगा. इस लिहाज से समझदार वही है, जो हर तरह से हालात को भांप कर आने वाली कठिन परिस्थितियों के लिए स्वयं को लगातार तैयार करता रहे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार कोविड-19 से सबक लेते हुए स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार करना चाहती है, तो उसका स्वागत करना चाहिए.