(Kiren Rijiju)BJP vs RSS(Mohan Bhagwat)के अलग अलग बोल : बड़ी फूट!!
"Kiren Rijiju की मुस्लिमों को चेतावनी ,मोहन भागवत: हिंदू राष्ट्र का आह्वान"
6 अक्टूबर: मोहन भागवत का हिंदू राष्ट्र की बात| Kiren Rijiju
6 अक्टूबर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने एक बार फिर हिंदू राष्ट्र के निर्माण की बात की। उन्होंने कहा, “हमें एक ऐसा हिंदू राष्ट्र बनाना है जहां सभी धर्मों के लोग मिलजुलकर रह सकें।” उनके इस बयान ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी, क्योंकि यह बयान ऐसे समय में आया है जब देश में धर्म के नाम पर राजनीति तेज हो गई है।
7 अक्टूबर: Kiren Rijiju की चेतावनी
इसके एक दिन बाद, 7 अक्टूबर को केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने कांग्रेस के नेता राहुल गांधी पर हमला बोला। उन्होंने कहा, “राहुल गांधी चुनावों के दौरान मुसलमानों का इस्तेमाल करते हैं और फिर उन्हें छोड़ देते हैं। कांग्रेस ने हमेशा मुसलमानों को एक वोट बैंक के रूप में देखा है।” रिजिजू ने यह भी चेतावनी दी कि मुसलमानों को कांग्रेस का वोट बैंक नहीं बनना चाहिए और हिंदुओं को भी सावधान रहने की आवश्यकता है।
kiren Rijiju मुसलमानों को मेरी चेतावनी,”फूट डालो और राज करो”
बयान का सारांश
Kiren Rijiju ने कहा, “कांग्रेस ने पिछले 60 वर्षों में मुसलमानों को गरीब बनाया है। आज पीएम मोदी मुसलमानों के लिए बैंक खाते खोल रहे हैं और सभी भारतीयों के साथ समान व्यवहार कर रहे हैं। इसलिए, मुसलमानों को कांग्रेस के झूठे वादों में नहीं फंसना चाहिए।”
इन दोनों बयानों ने देश के राजनीतिक माहौल को गरमा दिया है और विभिन्न धर्मों के बीच संवाद की आवश्यकता को फिर से उजागर किया है। दोनों नेताओं के बयानों से यह स्पष्ट होता है कि भारत में धर्म और राजनीति का गहरा संबंध है, जो आने वाले चुनावों में और अधिक महत्वपूर्ण हो सकता है।
राजनीतिक माहौल में गर्मी
रिजिजू के इस बयान ने देश के राजनीतिक माहौल को गरमा दिया है। उनका तर्क है कि कांग्रेस सिर्फ चुनावी लाभ के लिए मुसलमानों का उपयोग करती है, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी भलाई के लिए ठोस कदम उठा रहे हैं।
धर्म और राजनीति का संबंध
इन बयानों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत में धर्म और राजनीति के बीच गहरा संबंध है। आने वाले चुनावों में ये मुद्दे और भी महत्वपूर्ण हो सकते हैं, जिससे विभिन्न धर्मों के बीच संवाद की आवश्यकता और बढ़ जाती है। यह स्थिति इस बात का संकेत है कि राजनीतिक दलों को अपने एजेंडे में साम्प्रदायिक सद्भावना को प्राथमिकता देनी चाहिए।