लोकसभा उपचुनाव 2023 का सेमीफाइनल?
मुद्दे दरकिनार, जाति पर दारोमदार, OBC में गुर्जर और भील-भिलाला आदिवासी वर्ग का झुकाव तय करेगा जीत-हार
कांग्रेस उपचुनाव को राज्य में 2023 में होने वाले विधानसभा चुनावों का सेमीफाइनल मान रही है, जबकि BJP इसके नतीजों को शिवराज सरकार के कामकाज पर जनता की मुहर के रूप में देखेगी। लिहाजा, दोनों पार्टियों ने पूरी ताकत झोंक दी है। दोनों का फोकस खंडवा लोकसभा सीट पर है। जहां तक मुद्दों की बात है, तो जातिगत समीकरण ही इन चुनावों में निर्णायक होंगे। ऐसे में जनता के मुद्दे पीछे छूट गए हैं।
खंडवा में (अकोला-इंदौर) ब्रॉडगेज प्रोजेक्ट का काम कछुआ चाल से चल रहा है। रिंगरोड, बाइपास, ट्रांसपोर्ट नगर की मांग पिछले कई चुनावों में उठती रही है, लेकिन इस बार यह मुद्दा नहीं दिखाई नहीं दे रहा। दोनों ही पार्टियां जातिगत वोटों पर दांव लगा रही हैं। यही वजह है कि BJP ने ज्ञानेश्वर पाटिल को चुनाव मैदान में उतार कर OBC कार्ड खेला है। दूसरी तरफ कांग्रेस को आदिवासी और गुर्जर वोट बैंक से उम्मीद है।
इस सीट पर गुर्जर मतदाताओं की संख्या करीब 2 लाख 75 हजार है। इन्हें साधने के लिए कांग्रेस ने सचिन पायलट को बुलाया है। वे 27 अक्टूबर को गुर्जर बाहुल बडवाह विधानसभा क्षेत्र में तीन सभाएं करेंगे, लेकिन BJP ने इससे पहले ही यहां के विधायक को अपने पाले में कर बड़ा झटका दे दिया है। यहां OBC मतदाताओं में गुर्जरों का वर्चस्व है।
इसी तरह आदिवासियों में भील-भिलाला की बड़ी आबादी है। जानकारों का मानना है कि OBC में गुर्जर और आदिवासियों में भील-भिलाला वर्ग का झुकाव जीत-हार तय करेगा, इसलिए विकास के मुद्दों पर बात नहीं हो रही है। यह भी मुमकिन है कि अंडर करंट हो, जो दिखाई नहीं दे रहा है, क्योंकि जनता साइलेंट है।
इसे लेकर खंडवा चैंबर ऑफ कॉमर्स के कमल नागपाल कहते हैं कि व्यापारी परेशान हैं, लेकिन उनके मुद्दों को गंभीरता से लिया ही नहीं गया। इस वर्ग से सरकार उपेक्षित व्यवहार करती है, लेकिन व्यापारी स्वभिमानी होगा है। इस चुनाव में राजनीतिक मुद्दे शहर से ज्यादा गांवों की तरफ शिफ्ट हो गए हैं।
क्या मानते हैं सामाजिक कार्यकर्ता गणेश कानडे
सामाजिक कार्यकर्ता गणेश कानडे मानते हैं कि जाति और धर्म राजनीतिक परंपरा बनती जा रही है। फोरलेन, बाइपास और शहर विकास अधूरा पड़ा है। लोग मांग करते हैं, लेकिन चुनाव के समय जाति और धर्म सामने लाए जाते हैं।
कानडे आगे कहते हैं- कांग्रेस हो या BJP, इनके पास वोट मांगने के लिए मुद्दा नहीं है। उम्मीदवारों को लेकर लोगों में ज्यादा रुचि नहीं है। यहां नंदकुमार सिंह चौहान ने प्रतिनिधित्व किया, लेकिन विकास के नाम पर कुछ भी नहीं है। वे मानते हैं कि पार्टियों की संगठित विचारधारा है। इसमें BJP सफल हो जाती है, क्योंकि उसके पास RSS, दुर्गावाहिनी, बजरंगदल और ABVP जैसे संगठन हैं, जो पांच साल तक सक्रिय रहते हैं। इलेक्शन अब मैनजमेंट हो गया है, चेहरा कोई भी हो।
साहित्यकार आलोक सेठी क्या मानते हैं
खंडवा के साहित्यकार व बिजनेसमैन आलोक सेठी कहते हैं कि यदि मैं तटस्थ होकर बात करूं, तो सभी पार्टियों ने अगला चुनाव कैसे जीते, इस पर फोकस कर दिया है। अगली पीढ़ी का क्या होगा, इस पर कोई बात नहीं करता है। सही मायने में गलती मतदाताओं की है, क्योंकि हम चुनाव पर इस पर बात नहीं करते हैं कि रोड कहां है, रोजगार कहां है? लोग अब इससे हटकर इस पर बात करता है कि उम्मीदवार किस जाति का है।
सेठी आगे कहते हैं कि दुख होता है कि जिस तरह से दोनों पार्टियों के नेताओं के भाषण होते हैं, वे विकास की बात ही नहीं करते। यह दुर्भाग्य है कि खंडवा देश के सबसे पिछड़े 40 जिलों की सूची में है। मुख्यालय में ही सड़कों की हालत देख सकते हैं। युवाओं के हाथ में रोजगार नहीं हैं। राजनीति में जातियों की एंट्री हो चुकी है। हम सांसद-विधायक नहीं चुनते, ऐसा लगता है कि दामाद चुन रहे हैं।
खंडवा लोकसभा उपचुनाव में BJP और कांग्रेस सहित 16 प्रत्याशी मैदान में हैं। मुख्य मुकाबला BJP के ज्ञानेश्वर पाटिल और कांग्रेस के ठाकुर राजनारायण सिंह पुरनी में है। यहां अब तक कांग्रेस 9 और BJP व सहयोगी दल 8 बार जीते हैं। उपचुनाव में कांग्रेस के लिए वापसी तो BJP के सामने कब्जा बरकरार रखने की चुनौती है। कांग्रेस ने 70 वर्षीय राजनारायण सिंह पुरनी को राजपूत वोटों के भरोसे हैं तो BJP ने पिछड़ा वर्ग के ज्ञानेश्वर पाटिल को उम्मीदवार बनाकर OBC कार्ड खेला है।
25 साल बाद OBC चेहरा
BJP ने खंडवा लोकसभा सीट पर 25 साल बाद OBC चेहरा दिया है। इसकी एक वजह यह भी है कि इस संसदीय क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या 19 लाख 68 हजार है। इसमें से OBC 5 लाख 16 हजार हैं, जबकि समान्य वर्ग के मतदाता 4 लाख से कम हैं। जातीय समीकरण के गणित से देखें तो SC-ST वर्ग के वोटर सबसे ज्यादा 7 लाख 68 हजार हैं, इस लोकसभा क्षेत्र में आठ में से सिर्फ 3 विधानसभा क्षेत्रों में आदिवासी वोटर निर्णायक भूमिका में है।
खंडवा v/s बुरहानपुर भी मुद्दा
कांग्रेस और BJP दोनों ने जब से अपने-अपने उम्मीदवार घोषित किए हैं, तब से खंडवा V/s बुरहानपुर का मुद्दा चर्चा में आ गया है। इसकी वजह यह है कि BJP ने पिछले 12 चुनावों से लगातार बुरहानपुर से कैंडिडेट उतार रही है, जबकि कांग्रेस ने इस बार कांग्रेस ने खंडवा का प्रत्याशी उतारा है। इसको लेकर सोशल मीडिया पर लोकल फॉर वोकल की मुहिम छिड़ गई है। इसको लेकर सेठी कहते हैं कि उम्मीदवार घोषित होने बाद भले ही बाहरी का मुद्दा चर्चा में रहता है, लेकिन मतदान की तारीख करीब आने तक मायने नहीं रखता है।
अरुण यादव- हर्ष सिंह अब मुद्दा नहीं
इस सीट पर माना जा रहा था कि कांग्रेस से अरुण यादव और BJP से नंद कुमार सिंह चौहान के बेटे हर्ष सिंह का चुनाव में आमना-सामना होगा, लेकिन दोनों ही पार्टियों ने नए उम्मीदवार मैदान में उतार का चौंकाया था। मतदाताओं में अब इनके नाम को लेकर चर्चा नहीं है, हालांकि समाजसेवी गणेश कानडे कहते हैं कि यादव में चुनाव लड़ने का अनुभव है, वे हर्ष से लड़ाई में सीट निकाल सकते थे।
25 साल से BJP का कब्जा
खंडवा सीट पर बीते 25 सालों में (2009 के लोकसभा चुनाव का अपवाद छोड़कर) यहां से BJP ही जीतती रही है। खंडवा लोकसभा क्षेत्र में आठ विधानसभा सीटें आती हैं। इसमें खंडवा, बुरहानपुर, नेपानगर, पंधाना, मांधाता, बड़वाह, भीकनगांव और बागली शामिल हैं। ये सीटें भी चार जिलों खंडवा, बुरहानपुर, खरगोन और देवास जिलों में बंटी हैं। इस लोकसभा क्षेत्र की 8 विधानसभा सीटों में से 3 पर BJP, 4 पर कांग्रेस और 1 सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी का कब्जा है।
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