ड्रग्स की चपेट में कश्मीर की युवा आबादी
कश्मीर में नशे पर हर रोज 18 करोड़ रुपए खर्च; कम उम्र के लड़के-लड़कियां सबसे ज्यादा शिकार, इनमें 90% हेरोइन लेते हैं
‘मेरा नाम नाजिया (बदला हुआ नाम) है, मैं 18 साल की हूं और श्रीनगर में रहती हूं। लंबे वक्त तक बवाल, कर्फ्यू, लॉकडाउन, वॉयलेंस की वजह से मेरी दिमागी सेहत पर बुरा असर हुआ। मैं डिप्रेशन की तरफ बढ़ने लगी। उसी वक्त मैंने अपने कॉलेज के दोस्तों के साथ एक-दो बार हेरोइन का इंजेक्शन लिया। ये नशा मुझे सारे गमों से दूर ले जाने वाला लगा। शुरू में मजा आया और फिर मुझे लत पड़ गई। इसके बाद नशे के लिए मुझे ज्यादा पैसों की जरूरत पड़ने लगी। मेरी पॉकेट मनी कम थी तो मैंने घर में चोरी करना शुरू की, लेकिन जल्द ही ये बात मां-अब्बा को पता चल गई। इसके बाद मैं डीएडिक्शन सेंटर गई और अब मैं अपना इलाज करवा रही हूं।’
ये कहानी सिर्फ नाजिया की नहीं है बल्कि ये बड़ी तादाद में कश्मीरी युवाओं की कहानी है। मिलिटेंसी, पत्थरबाजी, हिंसा, आगजनी, झड़प और फिर सख्त कर्फ्यू की घटनाओं ने कश्मीर की एक पूरी पीढ़ी को बर्बाद कर दिया है। अब कश्मीरी युवाओं को ड्रग्स ने भी जकड़ लिया है। इस पूरी ड्रग्स स्टोरी में कई स्टेक होल्डर्स हैं- पीड़ित युवा, उनका परिवार, समाज, पुलिस और डीएडिक्शन के काम में लगे हॉस्पिटल-डॉक्टर्स।
कश्मीर में ग्राउंड जीरो पर जब हम पहुंचे तो पता चला कि यहां नशे तक पहुंच बहुत आसान है। गांव-कस्बों-शहरों में ड्रग पैडलर्स का जोरदार नेटवर्क है। कश्मीर में राजधानी श्रीनगर और साउथ कश्मीर में अनंतनाग सबसे ज्यादा ड्रग्स प्रभावित जिले हैं। इसके अलावा पुलवामा, बारामूला, कुपवाड़ा, बांदीपोरा, शोपियां में भी ड्रग्स के काफी मामले सामने आ रहे हैं।
लड़कियां भी हो रहीं ड्रग्स का शिकार
ऑल जेएंडके यूथ वेलफेयर ऑर्गेनाइजेशन एक NGO है जो नशा मुक्ति को लेकर कश्मीर में काम कर रहा है। इसके श्रीनगर केंद्र पर पूरे कश्मीर से ड्रग्स पीड़ित मरीज आते हैं। इस NGO के सेक्रेटरी शब्बीर अहमद बताते हैं, ‘कश्मीर में ड्रग्स के बहुत ज्यादा मामले देखने को मिल रहे हैं। हालात गंभीर हैं। हमारे पेशेंट भी बताते हैं कि कश्मीर में ड्रग्स तेजी से अपने पैर पसार रहा है। हमारे यहां जो पेशेंट आते हैं उनमें से 99% मरीज हेरोइन का नशा करते हैं और टीनएजर्स में ये दिक्कत ज्यादा देखने को मिल रही है। अब तो लड़कियां भी काफी तादाद में इसकी शिकार हो रही हैं।’
‘कश्मीर में 1990 से जो हालात बिगड़ना शुरू हुए, उसी के साथ ड्रग्स की दिक्कत भी बढ़ती चली गई। आज जो 25-30 साल का युवा है, उसने पूरे वक्त कश्मीर में हालात खराब ही देखे। कश्मीर में नौकरी, रोजगार के मौके कुछ भी नहीं है। ड्रग्स की चीजें आम होती जा रही हैं। लोगों को आसानी से पैसा मिल रहा है और ड्रग्स की उपलब्धता भी बहुत ही आसान है।’
पिछले 30 साल से कश्मीर आतंकी घटनाओं, पत्थरबाजी, मिलिटेंसी, अलगाववाद के लिए बदनाम रहा है। लंबे वक्त से अस्थिरता का माहौल, 1989 के बाद से हिंसा, कर्फ्यू, सुरक्षाबलों का कथित उत्पीड़न, आर्टिकल 370 हटने के बाद लॉकडाउन और कोरोना की तालाबंदी, इन सब कारणों की वजह से लोगों को लंबे वक्त तक घर में रहना पड़ा है। इस दौरान मानसिक तनाव, डिप्रेशन, मेंटल हेल्थ पर बुरा असर हुआ है। कश्मीर के सीमा पर होने की वजह से भी ड्रग्स की सप्लाई होने की आशंका रहती है। इस वजह से यहां ड्रग्स का कारोबार अच्छा-खासा फल-फूल रहा है।
कौन-कौन से नशे हो रहे हैं- हेरोइन, कोकीन, ब्राउन शुगर, टोबैको, एल्कोहल, गांजा, चरस, भांग, फार्मास्यूटिकल दवाएं नशे के रूप में।
कश्मीर में गांजा, चरस और भांग का उत्पादन आम बात है और इसी वजह से यहां पर इसका सेवन भी काफी पहले से हो रहा है, लेकिन 2015 के बाद से ड्रग्स का ट्रेंड तेजी से बदला है और कश्मीर में नहीं बनने वाले ड्रग्स जैसे हेरोइन, कोकीन, ब्राउन शुगर की खपत बढ़ गई है। एक्सपर्ट बताते हैं कि इसके लिंक टेरर से भी जुड़ते हैं।
ड्रग्स लेने वाले युवाओं की मानें तो 80% तक युवा ड्रग्स की लत के शिकार हो चुके हैं। कश्मीर में ड्रग्स की समस्या को लेकर अभी तक कोई भी विस्तृत सर्वे या स्टडी न होने की वजह से डेटा का अभाव है, लेकिन कुछ-कुछ बिखरे हुए डेटा मिलते हैं।
नशा मुक्ति केंद्रों पर अपनी सेवाएं देने वाले मेडिकल अफसर डॉ. मंजूर हुसैन बताते हैं, ‘ड्रग्स बहुत बड़ी समस्या है, लोगों को इस दिक्कत के बारे में मालूम नहीं है। ये तेजी से फैल रहा है। ट्रीटमेंट में तीन तरह के पेशेंट आते हैं। सेल्फ मोटिवेटेड केस आसान होते हैं, दूसरी तरह के केस फैमिली लेकर आती हैं और उसे मोटिवेट करके ट्रीटमेंट देते हैं। तीसरे वो पेशेंट होते हैं जिन्हें पुलिस लाती है या जबरदस्ती लाया जाता है। इस पूरे मामले में कभी भी अच्छी स्टडी नहीं हो पाई है। इसकी वजह लोगों में बैठा स्टिग्मा है। लड़कियां भी इसे छुपाती हैं।’
नशा मुक्ति केंद्र के साथ काम करने वाले एक्सपर्ट और कई पीड़ितों ने हमें बताया कि ड्रग्स ओवरडोज की वजह से भी कई युवाओं की मौतें भी हुई हैं। सोसायटी में टैबू होने की वजह से घर वाले ऐसी मौतों को छुपा लेते हैं और उन्हें हार्ट अटैक से मौत करार देते हैं।
श्रीनगर के SSP जुबैर अहमद खान बताते हैं, ‘ड्रग्स की समस्या को समाज के साथ तालमेल बैठाए बिना खत्म नहीं किया जा सकता। पुलिस इसके लिए दो तरह की रणनीति पर काम कर रही है। पहली, ड्रग्स की सप्लाई पर चोट की जाए और दूसरी, इसका शिकार बन चुके युवाओं को सही रास्ते पर वापस लाया जाए। सप्लाई चेन तोड़ने के लिए पुलिस कार्रवाई करती रहती है। सोर्सेज के जरिए पैडलर्स को ट्रेस करती है और जाल बनाकर पकड़ती है। वहीं दूसरी तरफ जम्मू कश्मीर पुलिस कश्मीर में तीन नशा मुक्ति केंद्र भी चलाती है। नॉर्थ में बारामूला, साउथ में अनंतनाग और सेंट्रल में श्रीनगर में हमारे सेंटर्स हैं। हमारी कोशिश है कि समाज के साथ मिलकर नशामुक्ति पर काम किया जाए। इससे न सिर्फ ड्रग्स के पीड़ितों को इलाज मिलता है, बल्कि पुलिस और लोगों को बीच का रिश्ता भी मजबूत होता है।’
ड्रग्स की वजह से बढ़ रहे अपराध
कश्मीर में 2014 से 2019 तक लगातार जुवेनाइल क्राइम में बढ़ोतरी देखने को मिली है। जहां 2014 में सिर्फ IPC के तहत दर्ज होने वाले 102 मामले ही सामने आए थे, वहीं 2019 में करीब तीन गुना बढ़कर 299 हो गए।
कश्मीर के सरकारी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंस ने कश्मीर की राजधानी श्रीनगर और अनंतनाग जिले में ड्रग्स पर सर्वे किया। सर्वे के मुताबिक दोनों जिलों के 17,768 लोग किसी ना किसी तरह का नशा करते हैं। ये तादाद कुल जनसंख्या की करीब 2% है, लेकिन चौंकाने वाला आंकड़ा ये है कि नशा करने वालों में से 90% लोग हेरोइन का नशा करते हैं। ये सर्वे दिसंबर 2019 से जनवरी 2020 के बीच किया गया।
सर्वे में प्रमुख भूमिका निभाने वाले प्रोफेसर डॉ. यासिन राथर कहते हैं कि युवाओं में ड्रग्स के हालात खतरनाक हैं। लोग इंजेक्शन, फॉइल जैसे अलग-अलग तरह से हेरोइन का नशा करते हैं। आर्थिक पहलू की बात करें तो हर दिन इन दो जिलों में लोग 3 करोड़ 70 लाख रुपए नशे पर खर्च करते हैं। एक ग्राम हेरोइन 6 हजार रुपए में मिलती है। पूरे कश्मीर में इस हिसाब से करीब 18 करोड़ रुपए रोजाना ड्रग्स पर खर्च हो रहे हैं। इस हिसाब से कश्मीर में सालाना ड्रग्स का कारोबार साढ़े 6 हजार करोड़ रुपए का है।
कश्मीर से निकल रहे ये हजारों करोड़ रुपए आखिर कहां जा रहे हैं और उनका क्या हो रहा है, ये सबसे बड़ी चिंता का विषय है, जिस पर सरकार को ध्यान देने की जरूरत है।