MP उपचुनाव में जीत-हार से सरकार पर कोई असर नहीं
फिर भी शिवराज-कमलनाथ की प्रतिष्ठा दांव पर, वजह- यह है 2023 का सेमीफाइनल
मध्यप्रदेश में खंडवा लोकसभा और तीन विधानसभा सीटों के उपचुनाव के नतीजे न सरकार बनाएंगे, न बिगाड़ेंगे। इन्हें हवा बताने वाला चुनाव कहा जा रहा है। यदि सरकार रहते हुए शिवराज सिंह नतीजे भाजपा के पक्ष में नहीं करा पाए तो यह उनके लिए अलॉर्म साबित हो सकता है।
दूसरी तरफ हैं कांग्रेस के दिग्गज कमलनाथ। उनके लिए यह चुनाव जीतना, अपना रास्ता खुद बनाने जैसा है। दमोह उपचुनाव में जीत के बाद दिल्ली तक उनकी पहले की तरह चलती रही है। यदि इस चुनाव में वे बड़ा उलटफेर नहीं कर पाए तो नेता प्रतिपक्ष, प्रदेशाध्यक्ष से लेकर पूरी एमपी कांग्रेस की कमान संभाले कमलनाथ के लिए मुश्किल के हालात बना सकते हैं। दोनों ही नेताओं के भविष्य को देखते हुए उपचुनाव बेहद महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं।
समझिए परिणाम का किस पर क्या असर होगा…
यदि चारों सीट कांग्रेस जीती तो..
कमलनाथ का पावर बढ़ेगा। 2023 में विधानसभा चुनाव नेतृत्व में लड़ने की दावेदारी बनी रहेगी। साथ में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को संजीवनी मिल जाएगी। 2023 के चुनाव में कांग्रेस पूरी ताकत के साथ मैदान में उतरेगी। शिवराज के लिए यह खतरे की घंटी साबित होगी।
यदि चारों सीट बीजेपी जीती तो..
शिवराज पार्टी में ज्यादा मजबूत हो जाएंगे। केंद्रीय नेतृत्व का भरोसा बढ़ेगा और मुख्यमंत्री बदलने की अटकलें कमजोर हो जाएंगी। प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा का संगठन में ताकत बढ़ेगी। पार्टी के सत्ता और संगठन समन्वय को लेकर पिछले एक साल से चल रहे प्रयास कारगर साबित होंगे।
यदि लोकसभा सीट बीजेपी जीती और तीनों विधानसभा सीट कांग्रेस तो..
कांग्रेस खंडवा लोकसभा सीट छोड़कर तीनों विधानसभा सीटें जीतती है तो भी बीजेपी के लिए खतरे की घंटी ही माना जाएगा। इसका सीधा असर शिवराज पर पड़ेगा। क्योंकि बीजेपी ने उपचुनाव शिवराज के बूते पर लड़ा है। इतना ही नहीं, पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा का कद केंद्रीय नेतृत्व के सामने कमजोर हो जाएगा, क्योंकि शर्मा के अध्यक्ष रहते हाल ही में बीजेपी दमोह चुनाव हार चुकी है।
यदि लोकसभा सीट कांग्रेस जीती और विधानसभा सीट बीजेपी तो..
कांग्रेस यदि लोकसभा सीट जीतती है और वह तीनों विधानसभा सीटें हारती है तो कांग्रेस को ज्यादा नुकसान नहीं होगा। दरअसल, 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने मोदी लहर के चलते मध्यप्रदेश में सूपड़ा साफ कर दिया था और कांग्रेस सिर्फ एक सीट छिंदवाड़ा जीत पाई थी, वह भी कमलनाथ के बूते पर। इससे खंडवा सीट जीतने से यह भी पता चलेगा कि मोदी लहर का असर क्या कम हो गया है?
यदि कांग्रेस से लाए प्रत्याशी के दम पर जोबट सीट जीती तो..
बीजेपी यदि रैगांव गंवाकर जोबट सीट पर जीत दर्ज कर यह संदेश भले ही दे कि दो सीटें उसके खाते में वापस आ गईं, तो भी भविष्य में राजनीतिक फायदा उसे मिलने की उम्मीद कम दिखाई देती है। वजह है कि जोबट सीट जीतने के बाद उम्मीदवार को फायदा मिलेगा ना कि पार्टी को। आदिवासी वोटबैंक के लिहाज से देखें तो बीजेपी कुछ हद तक फायदा मिलेगा, लेकिन कांग्रेस दलबदल को मुद्दा आगे भी बनाएगी।
यदि रैगांव सीट में पूरी ताकत झोंकने पर भी बीजेपी हारी तो..
पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के प्रभाव वाले विंध्य अंचल में 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को निराशा हाथ लगी थी। यदि इस अंचल ने कांग्रेस का साथ दिया होता तो फिर दलबदल से उनकी सरकार को गिरा पाना संभव नहीं होता। इसलिए रैगांव विधानसभा सीट का उपचुनाव भी कांग्रेस के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। यह बीजेपी की मजबूत पकड़ की सीट मानी जाती रही है और कांग्रेस यहां बसपा के कारण अक्सर चुनाव हारती रही है। उप चुनाव में बसपा उम्मीदवार के न होने से भाजपा-कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला हो गया।
कांग्रेस-बीजेपी को दो-दो सीटें तो..
एक्जिट पोल के आधार पर खंडवा लोकसभा और जोबट विधानसभा सीट पर बीजेपी का प्रदर्शन कांग्रेस की अपेक्षा ज्यादा प्रभावी रहा, जबकि रैगांव व पृथ्वीपुर में कांग्रेस के पक्ष में माहौल होने की संभावना प्रबल है। यदि परिणाम इसके आस-पास आते हैं तो भी बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस को फायदा मिलेगा। बीजेपी सत्ता में होने के बावजूद रैगांव सीट नहीं बचा पाई तो यह खतरे की घंटी रहेगी। इसका फायदा कांग्रेस पूरे विंध्य इलाके में मिलेगा। यह सरकार के लिहाज से एंटी इंकम्बेंसी की शुरुआत माना जाएगा।
यदि पृथ्वीपुर में सिम्पैथी के बावजूद कांग्रेस हार गई तो..
पृथ्वीपुर सीट पर कांग्रेस की हार होती है तो कमलनाथ का चुनावी मैनेजमेंट फेल माना जाएगा। दरअसल, कांग्रेस ने यहां नया प्रयोग किया है, जिसमें बड़ी सभाएं करने की बजाय छोटी-छोटी नुक्कड़ सभाएं और मतदाताओं से सीधा संवाद किया गया। यही वजह है कि कमलनाथ ने यहां सिर्फ दो सभांए कीं, जबकि इसके उलट बीजेपी ने इस सीट को छीनने में पूरी ताकत लगा दी। शिवराज की सबसे अधिक आठ सभाएं हुईं।
यदि खंडवा सीट अरुण यादव से ज्यादा वोटों से कांग्रेस हारी तो..
यादव खंडवा सीट से चुनाव लड़ते रहे हैं। हालांकि उनके खाते में जीत से ज्यादा हार दर्ज हैं। बावजूद इसके यादव टिकट के मजबूत दावेदार थे, लेकिन सर्वे में पिछड़ जाने के बाद उन्होंने अपनी दावेदारी वापस ले ली। उन्हें कमलनाथ का राजनीतिक विरोधी भी माना जाता है। यादव का एक बयान चुनाव के दौरान यह बयान भी चर्चा में रहा- फसल मैं लगता हूं, काट कोई और ले जाता है। भाजपा ने इसे चुनावी मुद्दा भी बनाया था। यादव के पक्ष में सहानुभूति बनते देख कदम पीछे खींच लिए थे। यही वजह है कि खंडवा लोकसभा सीट बीजेपी के लिए अहम है। इस सीट को जीतने से आगामी विधानसभा चुनाव के लिए ओबीसी वर्ग को साधने में मदद मिलेगी, क्योंकि प्रदेश में 51% आबादी इस वर्ग से आती है। कांग्रेस इस सीट को आदिवासी वोटबैंक के नजरिए से देखती है।
इसलिए यह चुनाव 2023 का सेमीफाइल
चुनाव नतीजों से राज्य के सभी अंचलों की राजनीतिक फिजा का पता चलेगा, क्योंकि अलग-अलग अंचलों में यह चुनाव हुए हैं। खंडवा चुनाव निमाड़ और मालवा अंचल में, जोबट मध्य भारत अंचल और पृथ्वीपुर बुंदेलखंड तथा विंध्य अंचल में हैं। यह नतीजे जहां एक और कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के प्रभाव पर असर डालने वाले हैं तो वहीं दूसरी ओर बीजेपी की सरकार और शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता भी देखने को मिल सकती है।
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