बीएसपी संग सरकार बनाने के पक्षधर नहीं थे कल्याण, राममंदिर आंदोलन से की BJP की सोशल इंजीनियरिंग
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का शनिवार की शाम लखनऊ स्थित पीजीआई में निधन हो गया। 89 साल की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली। कल्याण सिंह के निधन पर उत्तर प्रदेश में तीन दिन का राजकीय शोक घोषित किया गया है। बरास्ते राममंदिर आंदोलन हिन्दू समाज की सभी जातियों को एक साथ जोड़ने में कामयाब रहे कल्याण सिंह कभी भी नहीं चाहते थे कि वह बसपा प्रमुख मायावती के साथ सरकार बनाएं। अव्वल तो उन्हें बसपा प्रमुख मायावती की कार्यशैली पर भरोसा नहीं था, बल्कि वह चाहते थे कि हिन्दू समाज की सभी जातियां अगर कमल के बैनर तले आ सकती हैं तो किसी दूसरे दल का सहारा क्यूं लिया जाए।
सपा-बसपा के गठबंधन से वर्ष 1995 में चल रही सरकार दो जून 95 को हुए गेस्ट हाउस कांड के बाद बसपा के समर्थन वापस लेने के चलते गिर गई। मायावती की ताजापोशी के पीछे भाजपा नेता लालजी टंडन के साथ ही ब्रह्मदत्त द्विवेदी की अहम भूमिका रही। संघ को पल-पल की रिपोर्ट दी गई और बसपा के विधायकों को समर्थन के लिए संघ व केंद्रीय नेतृत्व को राजी किया गया। इसमें अटल बिहारी वाजपेयी के साथ ही मुरली मनोहर जोशी मुख्य भूमिका में रहे। भाजपा ने मायावती को समर्थन दिया और उनकी सरकार बनी। शपथग्रहण में दिल्ली से मुरली मनोहर जोशी भाग लेने लखनऊ आए।
भाजपा का एक खेमा या यूं कहें पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह इसके पक्षधर नहीं थे। उनका मानना था कि भाजपा सपा-बसपा के गठजोड़ के बावजूद 183 सीटें लाने में सफल रही है। अन्य पिछड़ों की कमोबेश सभी जातियां जैसे निषाद, कोरी, कुर्मी, कुशवाहा, मौर्या यहां तक की यादवों ने भी उनकी पार्टी के लिए वोट किया है। ऐसे में बसपा को साथ देकर आगे बढ़ाने की कोई जरूरत नहीं है। उन्होंने पार्टी मंच पर कई बार इसका प्रबल विरोध भी किया।