Justice शेखर यादव का बयान: बहस का नया मुद्दा या विचारधारा का प्रदर्शन?
Justice शेखर यादव ने प्रयागराज में विश्व हिंदू परिषद (VHP) की लीगल सेल द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में कहा,
1. Justice शेखर यादव का विवादास्पद बयान:
8 दिसंबर 2024 को, इलाहाबाद हाई कोर्ट के सिटिंग जज Justice शेखर यादव ने प्रयागराज में विश्व हिंदू परिषद (VHP) की लीगल सेल द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में कहा,
“यह हिंदुस्तान है, और यह देश बहुसंख्यकों की इच्छाओं के अनुसार चलेगा। यही कानून है। परिवार हो या समाज, जो बहुसंख्यकों की भलाई के लिए सही होगा, वही स्वीकार्य होगा।”
इस बयान ने सोशल मीडिया और न्यायपालिका के दायरे में तीखी बहस छेड़ दी। उनके अनुसार, कानून बहुसंख्यक समुदाय के हितों के अनुसार चलना चाहिए। यह टिप्पणी संविधान की धर्मनिरपेक्षता और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा के सिद्धांतों के विपरीत मानी जा रही है।
2. यूनिफॉर्म सिविल कोड और मुसलमानों पर टिप्पणी:
Justice यादव ने अपने भाषण में हिंदू समाज में सती, जौहर, और छुआछूत जैसी प्रथाओं के उन्मूलन का उदाहरण देते हुए सवाल किया कि मुस्लिम समाज में बहुविवाह जैसी प्रथाएं अब भी क्यों जारी हैं। उन्होंने इसे अस्वीकार्य करार दिया।
यह बयान समुदायों के बीच विभाजन और न्यायपालिका की निष्पक्षता को लेकर नई चिंताएं पैदा करता है। आलोचकों का कहना है कि इस तरह के बयान न्यायपालिका की निष्पक्षता को कमजोर कर सकते हैं।
3. सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं:
Justice यादव का बयान सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ।
• सकारात्मक प्रतिक्रियाएं: कुछ लोग इसे “साहसिक और सत्यवादी” बयान कह रहे हैं, जो भारत की वास्तविकता को दर्शाता है।
• नकारात्मक प्रतिक्रियाएं: कई यूजर्स ने उन्हें “सांप्रदायिक” और “संगठन विशेष का प्रवक्ता” कहा।
एक यूजर ने लिखा,
“अब न्यायपालिका भी राजनीति का खेल खेलने लगी है।”
वहीं दूसरे ने सवाल उठाया,
“क्या यह बयान उनके भविष्य में दिए गए न्यायिक फैसलों को प्रभावित नहीं करेगा?”
4. क्या यह रंजन गोगोई प्रकरण का विस्तार है?
कई आलोचकों ने इस बयान को पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के मामले से जोड़ा। गोगोई, जो अयोध्या केस के फैसले के बाद राज्यसभा सांसद बने, पर आरोप लगा कि उन्होंने पदोन्नति के लिए सरकार के करीब होने की कोशिश की।
Justice शेखर यादव के बयान को भी इसी नजरिये से देखा जा रहा है। क्या यह बयान “ऊपर तक पहुंचने” और भविष्य में लाभ लेने की कोशिश है?
5. क्या यह संविधान के खिलाफ है?
भारत का संविधान धर्मनिरपेक्षता का प्रतीक है।
• इसमें सभी धर्मों और समुदायों को समान अधिकार दिए गए हैं।
• बहुसंख्यकवाद को बढ़ावा देना संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ माना जा सकता है।
Justice यादव का बयान, जिसमें बहुसंख्यकों की इच्छाओं को कानून का आधार बताया गया है, इस धर्मनिरपेक्ष ढांचे को चुनौती देता है।
6. न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सवाल:
न्यायपालिका की जिम्मेदारी है कि वह सभी पक्षों को निष्पक्षता से सुने और न्याय करे।
• लेकिन जब एक जज सार्वजनिक मंच पर इस तरह के बयान देता है, तो इससे उनकी निष्पक्षता पर सवाल खड़े होते हैं।
• यह बहस का विषय बन गया है कि क्या जजों को अपने व्यक्तिगत विचार सार्वजनिक रूप से व्यक्त करने चाहिए।
7. क्या यह प्रमोशन की राजनीति है?
आलोचक यह भी कह रहे हैं कि यह बयान न्यायपालिका के भीतर पदोन्नति की राजनीति का हिस्सा हो सकता है।
• रंजन गोगोई के बाद यह धारणा मजबूत हुई है कि कुछ जज रिटायरमेंट के बाद बड़े पदों की ओर देख रहे हैं।
• क्या जस्टिस यादव का बयान इसी दिशा में एक कदम है?
8. यूनिफॉर्म सिविल कोड: संवैधानिक बहस या सांप्रदायिक मुद्दा?
यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में एक आदर्श के रूप में उल्लेखित है।
• हालांकि, इसे लागू करना हमेशा संवेदनशील और विवादास्पद रहा है।
• Justice यादव ने इसे सीधे बहुसंख्यकवाद से जोड़कर इसे और विवादास्पद बना दिया।
Sanjeev Bhatt की रिहाई किसकी चिंता ,यह अफसर बनेगा नरेंद्र मोदी के लिए बड़ी परेशानी!
9. न्यायपालिका को अपनी सीमाओं में रहना चाहिए
Justice शेखर यादव का बयान केवल एक व्यक्तिगत राय नहीं, बल्कि न्यायपालिका और समाज के लिए एक चुनौती बन गया है।
• क्या जजों को अपनी राय सार्वजनिक रूप से व्यक्त करनी चाहिए?
• क्या यह संविधान की धर्मनिरपेक्षता को कमजोर करता है?
• क्या यह न्यायपालिका की निष्पक्षता पर असर डालता है?
इन सवालों के जवाब आने वाले समय में तय करेंगे कि भारतीय न्यायपालिका अपनी प्रतिष्ठा और निष्पक्षता को बनाए रखने में कितनी सक्षम है।