जालौन :पर्यटन के मानचित्र में जुड़ा एक और महल का नाम ‘ताईबाई का महल’ , जाने इसकी विचित्र कहानी
जनपद जालौन को पर्यटन के मानचित्र पर लाने के लिए जिलाधिकारी जालौन डॉ मन्नान अख्तर की पहल का जनपद वासियों ने स्वागत किया है और कदम को सराहनीय बताया है। जालौन टूरिज्म के नाम से जारी किए गए पोर्टल में जनपद के विभिन्न धार्मिक, ऐतिहासिक महत्व के स्थलों को सम्मिलित किया गया है। इसमें एक नाम जालौन नगर क्षेत्र में स्थित मराठा साम्राज्य के महल जिसे ताईबाई के निवास स्थान के रूप में भी जाना जाता था और बाद में अंग्रेजों ने इस पर अपना इस परअधिपत्य स्थापित किया था। जिसमें आज़ादी के बाद स्थापित की गई तहसील और परगनाधिकारी के कक्षों का संचालन किया गया था। हालांकि अब इस समय जीर्ण शीर्ण और खंडहर हो चुकी इमारते अपने बुलंद होने का एहसास कराती है।
इस इमारत के बारे में मराठा वंशज और इतिहासकार विजय मोहन भागवत ने बताया कि 17 वीं शताब्दी में ताईबाई के पिता ने अपनी बेटी की याद में इस महल का निर्माण कराया गया था
18 वीं शताब्दी के शुरुआती दिनों में जब अंग्रेजों ने आक्रमण किया तो ताईबाई अपने साथियों के साथ पहले रायपुर मड़ैया गई और फिर बाद में कुठोंद पहुंची जहां अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और इलाहाबाद जेल भेज दिया वहीं पर उनका देहांत हो गया था।
उसके बाद अंग्रेजों का जालौन पर अधिपत्य स्थापित हो गया था।
आजादी के बाद इस महल में परगनाधिकारी, तहसीलदार, नायब तहसीलदार, नजारत अनुभाग सहित कई अन्य विभागों के अधिकारी बैठ कर जनता की समस्याओं को सुनते थे।
इस महल के बीचों-बीच बने आंगन में एक पीपल का वृक्ष भी है और एक शिव मंदिर है जिसके बारे में बताया जाता है कि इस शिव मन्दिर में ताईबाई पूजा अर्चना करतीं थीं। जिसका 1967 मे तत्कालीन तहसीलदार अजब सिंह ने जीर्णोद्धार कराया था। साथ ही बताया यह भी जाता है कि इस महल के पानी के निकास के लिए बनाए गए परनाले का पानी कहां जाकर निकलता है यह भी एक रहस्य ही है अभी तक।
कहा तो यह भी जाता है कि इस बात की प्रमाणिकता के लिए अंग्रेजों ने कई गैलन पानी में रंग घोलकर इसके परनाले में डलवाया था। लेकिन परनाले के पानी के निकास के रहस्य को उजागर करने में असमर्थ रहने पर उन्होंने उस परनाले को सीमेंटिड पत्थरों से पटवा दिया था।