जगदलपुर : बस्तर के ग्रामीण इंजीनियरिंग की मिसाल है दशहरा रथ निर्माण
जगदलपुर। विश्व में सबसे लंबी अवधि 75 दिवसीय बस्तर दशहरा इस वर्ष अधिमास के चलते 16 अक्टूबर से शुरू होकर 104 दिनों तक चलेगा। यह पर्व, विश्व में अपनी अनोखी ग्रामीण परंपराओं के कारण आज भी आर्कषण का केंद्र है। जंगल से लाई गई कच्ची लकड़ी से दुमंजिला भव्य रथ पिछले अनवरत 612 वर्षों से प्रति वर्ष एक नया रथ बनाने वाले ग्रामीण कारीगरों के पास भले ही किसी इंजीनियरिंग कालेज की डिग्री न हो, लेकिन जिस कुशलता और टाईम मैनेजमेंट से इसे तैयार किया जाता है, जिसे बस्तर के ग्रामीण इंजीनियरिंग की मिसाल कहा जा सकता है। रथ निर्माण का कार्य बस्तर दशहरे के देशी विदेशी सैलानियों के आकर्षण का मुख्य केंद्र होता है।
रियासत कालीन परंपराओं को अपने में समेंटे बस्तर दशहरा में चलने वाले रथ के चक्कों से लेकर धुरी (एक्सल) तथा रथ के चक्कों व मूल ढांचे के निर्माण में अपने सीमित पारंपरिक घरेलू हथियार कुल्हाड़ी व बसूले सहित अन्य बढ़ई के उपयोग में आने वाले देशी हथियार का ही उपयोग करते हैं। बस्तर के ग्रामीण शिल्पी जिस कुशलता के साथ दो मंजिले रथ का निर्माण करते हैं, वह 40 फुटउंचा और 32 फुट लंबा होता है। इसकी चौड़ाई 20 फिट होती है तथा इसे बनाने में 50 घन मीटर लकड़ी का उपयोग होता है।
माचकोट व तिरिया के जंगलों से लाए गए साल वृक्ष के मोटे तनों को सीधे चीर कर 20 से 25 फुट फारों में बदला जाता है। इसके बाद रथ के एक्सल के लिए दो मजबूत लकडियों को तराशा जाता है। इसके दोनों छोर पर चक्का बिठाने के लिए आकार तय किया जाता है। इन आयताकार आकारों के बाद चक्का बिठाने की बारी आती है।
रथ परिचालन का सारा दारोमदार पहियों पर ही होता है। रथ का पहिया बनाने के लिए मजबूत लकडिय़ों के दो अर्धगोलाकार आकृतियों को आपस में बिठाकर पूर्ण गोलाकार चक्कों का रूप दिया जाता है। इन चारों चक्कों का आकार, मोटाई व उनके बीच बने नार का निर्माण ऐसे होता है कि रथ को खींचने के लिए कम से कम बल उपयोग हो। बस्तर दशहरा देखने के लिए विश्वभर से पर्यटक अपार उत्कंठा लिए बस्तर पहुंचते हैं। बस्तर दशहरा इनके आर्कषण और कौतुहल का विषय होता है। लेकिन इस वर्ष कोरोना संक्रमण के चलते कम से कम लोगों में बस्तर मनाने की तैयारी शुरू हो गई है।