गैर इरादतन हत्या और हत्या के बीच अंतर करना अक्सर मुश्किल- SC
नई दिल्ली. उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने बुधवार को कहा कि हत्या (Murder) और गैर इरादतन हत्या के बीच अंतर करना ‘अक्सर मुश्किल’ होता है क्योंकि दोनों में मौत होती है लेकिन दोनों अपराधों में इरादे और जानकारी का थोड़ा सा अंतर होता है. उच्चतम न्यायालय ने मध्य प्रदेश में एक सब-इंस्पेक्टर की हत्या (Sub Inspector Murder Case) के लिए दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति की दोषसिद्धि को गैर इरादतन हत्या के अपराध में बदलते हुए यह टिप्पणी की.
न्यायमूर्ति के एम जोसेफ और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की पीठ ने इस टिप्पणी के साथ ही अपने फैसले में दोषी की उम्र कैद की सजा को बदलकर 10 साल की कैद कर दिया. पीठ ने अपने फैसले में कहा कि हत्या के मामले में आईपीसी (भारतीय दंड संहिता) की धारा 302 के तहत दंडनीय है जबकि गैर-इरादतन हत्या के मामले में आईपीसी की धारा 304 (गैर इरादतन हत्या) के तहत दंडनीय है.
उच्चतम न्यायालय आरोपी मोहम्मद रफीक की अपील पर विचार कर रहा था. इस अपील में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के उस फैसले को चुनौती दी गई थी जिसमें हत्या के अपराध के लिए उसे दोषी ठहराए जाने और उम्रकैद की सजा की पुष्टि की गई थी. अपने फैसले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि गैर इरादतन हत्या के संबंध में कई जगहों पर ‘संभावना’ शब्द का इस्तेमाल ‘अनिश्चितता के तत्व’ को उजागर करता है. इसमें कहा गया है कि आईपीसी की धारा 300 हत्या को परिभाषित करती है, हालांकि इसमें संभावित शब्द के उपयोग से परहेज किया जाता है.
पीठ ने कहा, ‘गैर इरादतन हत्या और हत्या के बीच अंतर करना अक्सर मुश्किल होता है क्योंकि दोनों में ही मौत होती है. फिर भी, दोनों अपराधों में शामिल इरादे और जानकारी का सूक्ष्म अंतर है.’ पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष के अनुसार पुलिस को नौ मार्च 1992 को सूचना मिली थी कि एक ट्रक ने वन विभाग का बैरियर को तोड़ दिया है और वह एक मोटरसाइकिल से टकरा गया.