मन में उठे एक छोटे से सेवा भाव से पैदा हुई अंतर्राष्ट्रीय सेवा संस्था रैडक्रॉस

एक युवक पहाड़ की चोटी पर बैठा दूरबीन से सारे युद्ध का दृश्य देख रहा था। युद्ध में कुछ सैनिक मर रहे थे और कुछ अपने जीवन की अंतिम घडिय़ां गिन रहे थे। युद्ध में घायल, कराहते हुए सैनिकों को मोर्चे के पीछे की सहायता शिविरों में छोड़ा जा रहा था। सैनिकों की दयनीय दशा देख कर वह युवक अत्यंत द्रवित हो गया। असल में वह युवक नेपोलियन से मिलने पैरिस गया था किन्तु जैसे ही उसे पता चला कि वह मोर्चे पर चले गए हैं तो वह उनसे मिलने मोर्चे की ओर निकल पड़ा।

मोर्चे पर चल रहे युद्ध का भयंकर दृश्य देखकर वह उनसे मिलने की बात ही भूल गया। अब बस उसके मन में एक ही बात आ रही थी कि कैसे घायल एवं मरणासन्न सैनिकों की सहायता की जाए? ये ख्याल आते ही वह सैनिकों की सेवा में लग गया। इसी बीच युद्ध समाप्त हो गया।

इसके बाद युवक ने एक ऐसा दल बनाने का विचार किया जो युद्ध के ऐसे मौके पर जाकर घायलों की सेवा कर, उन्हें बचाने का कार्य कर सके। उसने अपने अथक प्रयासों से एक सेवादल बनाया।

इस दल को एक अंतर्राष्ट्रीय सेवा संस्था के रूप में मान्यता भी दिलवा दी। अब, जब कहीं भी युद्ध छिड़ता है तो इस संस्था के सदस्य तुरंत घायल सैनिकों की सेवा में जुट जाते हैं।

इस काम में युद्धरत देशों के लोग भी उनका साथ देते हैं। संस्था के सदस्य विशेष पोशाक पहनते हैं, जिस पर उनका चिन्ह रैडक्रॉस बना रहता है। युद्ध क्षेत्र में उन पर हमला नहीं किया जाता है। घायल सैनिकों की इस संस्था का नाम रैडक्रॉस है। इस संस्था का संस्थापक वही युवक ज्यां हैनरी ड्यूनैंट था। वह जिनेवा के एक मध्यवर्गीय परिवार में जन्मा था।

प्रत्येक वर्ष विश्व भर में ज्यां हैनरी के जन्मदिवस 8 मई को रैडक्रॉस दिवस के रूप में मनाया जाता है। मन में उठे एक छोटे से सेवा भाव को उन्होंने एक विशाल अंतर्राष्ट्रीय सेवा संस्था के रूप में परिवर्तित कर दिया। विश्व हमेशा उनकी इस सेवा संस्था का ऋणी रहेगा।

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