Afghan Crisis: तालिबान की बढ़ती ताकत के चलते अफगानिस्तान में भारत की 500 परियोजनाएं खतरे में

अफगानिस्तान के बिगड़ते हालात के बीच एससीओ के विदेश मंत्रियों की बैठक पर टिकी लोगों की नजरें

भारत को इस बात की चिंता है कि पाकिस्तान समर्थित तालिबान के सत्ता पर काबिज होने से उसकी परियोजनाओं को उसी तरह से नुकसान पहुंचाया जा सकता है जैसे वर्ष 1996-2001 में पहुंचाया गया था। तब तालिबान ने बच्चों के अस्पताल तक को भी नहीं बख्शा था।

जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। पिछले 24 घंटों में अफगानिस्तान के कई इलाकों में तालिबान की बढ़ती ताकत के संकेत के बीच भारत की सबसे बड़ी चिंता फिलहाल उन परियोजनाओं को सुरक्षित रखने की है जिसे लगाने में उसने न सिर्फ अरबों डालर खर्च किए हैं बल्कि जिनके साथ उसके रणनीतिक हित भी जुड़े हुए हैं। अफगानिस्तान के 34 प्रांतों में भारत की मदद से तकरीबन 500 छोटी-बड़ी परियोजनाओं को या तो अंजाम दे दिया गया है या फिर उन पर काम जारी है।

अरबों डालर के खर्च से चल रही छोटी-बड़ी परियोजनाएं अफगानिस्तान के विकास की धुरी बनीं

तीन अरब डालर के निवेश वाली इन परियोजनाओं में अफगानिस्तान के ग्रामीण व दूरदराज के हिस्सों में न सिर्फ बिजली पहुंचाई जा रही है बल्कि भारत की तरफ से निर्मित सड़कों और पुलों की वजह से वहां आर्थिक गतिविधियों में तेजी आई है। भारत को इस बात की चिंता है कि पाकिस्तान समर्थित तालिबान के सत्ता पर काबिज होने से उसकी परियोजनाओं को उसी तरह से नुकसान पहुंचाया जा सकता है जैसे वर्ष 1996-2001 में पहुंचाया गया था। तब तालिबान ने भारत की तरफ से बनाए गए बच्चों के अस्पताल तक को भी नहीं बख्शा था।

तालिबान के सत्ता पर काबिज होने से तैयार हो रही परियोजनाओं के भविष्य को लेकर अनिश्चितता

तालिबान के आने से वहां चलाई जा रही कुछ अहम परियोजनाओं का भविष्य भी अधर में लटक सकता है। इनमें सबसे अहम परियोजना ईरान के चाबहार बंदरगाह से अफगानिस्तान के देलारम तक की सड़क परियोजना है। 218 किलोमीटर लंबी इस सड़क का निर्माण पूरी तरह से भारत की मदद से हो रहा है जो आने वाले दिनों में अफगानिस्तान को सीधे चाबहार बंदरगाह से जोड़ेगी। इसके अलावा पूरे काबुल को पेय जल उपलब्ध कराने के उद्देश्य से शुरू की जाने वाली शहतूत डैम परियोजना का काम भी लटक सकता है। भारत पहले ही सलमा डैम का निर्माण कर चुका है जिससे 42 मेगावाट बिजली बनती है और 75 हजार हेक्टेयर जमीन की सिंचाई होती है।

भारत ने परियोजनाओं को अफगान की जनता की दशा सुधारने के लिए शुरू किया था

पूर्व में तालिबान ने भारत की मदद से निर्मित बच्चों के जिस अस्पताल को धवस्त किया था, भारत ने उसे फिर से एक बड़े चिकित्सा केंद्र के तौर पर बनवा दिया है। इसके अलावा भारत की मदद से कई पावर ट्रांसमिशन स्टेशन, स्माल डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स चलाए जा रहे हैं। इन सारी परियोजनाओं को भारत ने अफगानिस्तान की जनता की दशा सुधारने के लिए शुरू किया था। इनमें से कुछ का काम अभी अधूरा है। कुछ परियोजनाओं को भारत के लंबे रणनीतिक हितों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है जिनका भविष्य इस बात से तय होगा कि अफगानिस्तान में तालिबान कितना शक्तिशाली साबित होता है।

कंधार समेत 11 प्रांतों में तालिबान की पकड़ मजबूत

उधर, अफगानिस्तान सरकार ने कहा है कि कंधार स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास से भारतीय कर्मचारियों को वापस भेजने का काम चल रहा है। भारतीय वाणिज्य दूतावास की रक्षा अफगानिस्तान के कमांडो कर रहे हैं। इसके बावजूद कंधार से जो सूचना पश्चिमी देशों के पत्रकारों ने सोमवार को भेजी है उसके मुताबिक वहां तालिबान और अफगानिस्तानी सेना के बीच लगातार लड़ाई चल रही है। कंधार के अलावा हेरात, हिलमंद, बदक्शान, गजनी, फरयाब समेत 11 प्रांतों में तालिबान की तरफ से प्रांतीय सरकारों के ढांचे को खत्म करने की कोशिश जारी है। कंधार के बाद मजार-ए-शरीफ के पास भी तालिबान की पकड़ बढ़ रही है और संभवत: जल्द ही वहां के भारतीय मिशन को लेकर भी फैसला करना पड़ सकता है।

तालिबान देश के एक तिहाई हिस्से पर काबिज

बहरहाल, काबुल स्थित भारतीय दूतावास पूरे हालात पर लगातार नजर रखे हुए है। नई दिल्ली को लगातार पूरे देश में बदल रहे हालात की पल-पल की जानकारी दी जा रही है। सनद रहे कि तालिबान का दावा है कि उसने 421 जिलों में से 85 फीसद जिलों पर कब्जा कर लिया है, जबकि अफगानिस्तान सरकार के प्रतिनिधि बता रहे हैं कि तालिबान अभी देश के एक तिहाई हिस्से पर ही काबिज हुआ है।

एससीओ के विदेश मंत्रियों की बैठक पर टिकी लोगों की नजरें

अफगानिस्तान के बिगड़ते हालात के बीच अब सभी की नजरें मंगलवार और बुधवार को दुशांबे में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के विदेश मंत्रियों की बैठक पर टिकी हुई हैं। भारत की ओर से विदेश मंत्री एस. जयशंकर इस बैठक में हिस्सा लेंगे और उनके साथ पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी, चीन के विदेश मंत्री वांग ई, रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव समेत अफगानिस्तान के कुछ दूसरे पड़ोसी देशों के विदेश मंत्री भी होंगे।

अफगानिस्तान को लेकर 14 जुलाई को एससीओ की विशेष बैठक

इस मंच पर 14 जुलाई, 2021 को अफगानिस्तान को लेकर एक विशेष बैठक होने वाली है। उस बैठक में अफगानिस्तान सरकार के प्रतिनिधि भी हिस्सा लेंगे। एससीओ के सारे सदस्य देश सीधे या परोक्ष तौर पर अफगानिस्तान के बदल रहे हालात से जुड़े हुए हैं और अमेरिकी सेना की वापसी के बाद माना जा रहा है कि अब एससीओ के देशों की भूमिका बढ़ गई है। एससीओ अफगानिस्तान को लेकर कितना प्रभावशाली साबित होता है यह इस बात पर निर्भर करेगा कि चीन और रूस क्या रवैया अख्तियार करते हैं।

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