India – पूजा स्थलों पर सर्वे की याचिकाएं: क्या है मामला?
India 2022 में ज्ञानवापी मस्जिद पर सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ ने मौखिक रूप से टिप्पणी की थी कि 1991 के पूजा स्थल अधिनियम (Places of Worship Act) की धारा 3 और 4 किसी पूजा स्थल के “धार्मिक स्वरूप की पहचान” पर रोक नहीं लगाती।
India 2022 में ज्ञानवापी मस्जिद पर सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ ने मौखिक रूप से टिप्पणी की थी कि 1991 के पूजा स्थल अधिनियम (Places of Worship Act) की धारा 3 और 4 किसी पूजा स्थल के “धार्मिक स्वरूप की पहचान” पर रोक नहीं लगाती। इस टिप्पणी का निचली न्यायपालिका पर गहरा प्रभाव पड़ा है। उत्तर प्रदेश और राजस्थान की कई जिला और सत्र अदालतों ने विभिन्न मस्जिदों और अन्य मध्यकालीन पूजा स्थलों के धार्मिक स्वरूप की जांच की याचिकाएं स्वीकार की हैं।
India सर्वे के लिए चयनित स्थल
India सर्वे की मांग वाले प्रमुख स्थलों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- अजमेर दरगाह और अढ़ाई दिन का झोपड़ा (राजस्थान)
- शाही जामा मस्जिद (संभल, उत्तर प्रदेश)
- टीलेवाली मस्जिद (लखनऊ)
- शम्सी जामा मस्जिद (बदायूं)
- अताला मस्जिद (जौनपुर)
- ज्ञानवापी मस्जिद (वाराणसी)
- ईदगाह मस्जिद (मथुरा)
- कमाल मौला मस्जिद (धार, मध्य प्रदेश)
India पूजा स्थल अधिनियम, 1991 का महत्व
1991 का पूजा स्थल अधिनियम धार्मिक स्थलों की यथास्थिति बनाए रखने के उद्देश्य से लागू किया गया था। इस अधिनियम की धारा 3 किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक स्वरूप को बदलने पर प्रतिबंध लगाती है, और धारा 4 यह सुनिश्चित करती है कि 15 अगस्त, 1947 की स्थिति को बदला न जाए।
हालाँकि, अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले को इस अधिनियम से छूट दी गई थी।
ज्ञानवापी मामले की नजीर
ज्ञानवापी मस्जिद मामले में उच्चतम न्यायालय ने पूजा स्थल अधिनियम का हवाला देते हुए मौखिक टिप्पणी की थी, जिसने “धार्मिक स्वरूप की पहचान” की याचिकाओं के लिए आधार तैयार किया। इस मामले में अदालत ने आदेश दिया था कि मस्जिद परिसर का सर्वे किया जाए, जिससे अन्य स्थलों के लिए भी ऐसी याचिकाओं को मान्यता मिलने लगी।
प्रभाव और विवाद
- धार्मिक और सामाजिक विवाद: इन याचिकाओं ने धार्मिक समुदायों के बीच विवाद को बढ़ावा दिया है और समाज में सांप्रदायिक तनाव की स्थिति उत्पन्न की है।
- न्यायिक प्रभाव: निचली अदालतें इस अधिनियम की व्याख्या करते हुए “धार्मिक स्वरूप की पहचान” की अनुमति देने लगी हैं, जिससे इसके प्रावधानों के पालन पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
- संवैधानिक प्रश्न: क्या पूजा स्थल अधिनियम “धार्मिक स्वरूप की पहचान” की प्रक्रिया को वैध ठहराता है या नहीं, इस पर उच्चतम न्यायालय को अंतिम निर्णय देना होगा।
आगे की चुनौतियां
India इन मामलों में सर्वेक्षण और जांच से देश के धार्मिक और सामाजिक ताने-बाने पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है। पूजा स्थल अधिनियम का उद्देश्य विवादों को समाप्त करना था, लेकिन मौजूदा स्थिति ने इसे नए विवादों का कारण बना दिया है।\
South Korea – राष्ट्रपति यूं ने मार्शल लॉ डिक्री का बचाव किया, विद्रोह के आरोप खारिज
India पूजा स्थल अधिनियम, 1991 और ज्ञानवापी मामले की नजीर ने धार्मिक स्थलों के स्वरूप पर चर्चा को पुनर्जीवित किया है। न्यायपालिका और सरकार के सामने यह चुनौती है कि वह कानून के प्रावधानों को स्पष्ट करते हुए सामाजिक संतुलन बनाए रखे।