भारत में बढ़ रहा गंदा पानी, 2050 तक और हो जाएगा गंदा
नई दिल्ली। अभी कुछ दिन पहले ही 22 मार्च को ही विश्व जल दिवस मनाया गया है। उस दिन जल संचय पर धानुका और भारत सरकार की ओर से की गई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक पत्रकार के एक सवाल पर धानुका प्रमुख तिलमिला गए थे। लेकिन आज वही बात सामने आ चुकी है। दरअसल भारत में लगातार गंदा पानी बढ़ता जा रहा है। इसकी चिंता न तो सरकारों को है और न ही जल संरक्षण का दावा करने वाली संस्थाओं को। दरअसल काउंसिल आन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) की एक अध्ययन रिपोर्ट ‘रियूज ऑफ ट्रीटेड वेस्ट वाटर इन इंडिया में कहा है कि भारत में गंदे पानी की मात्रा 2050 तक 35,000 मिलियन क्यूबिक मीटर से ज्यादा होगी। सीईईडब्ल्यू की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में अगर चुनिंदा क्षेत्रों में शोधित गंदे पानी (उपचारित अपशिष्ट जल) की बिक्री की व्यवस्था हो तो 2025 में इसका बाजार मूल्य 83 करोड़ रुपये होगा। 2050 में यह 1.9 अरब रुपये तक पहुंच जाएगा। अनुमानित सीवेज उत्पादन और शोधन क्षमता के आधार पर, 2050 तक देश में कुल गंदे पानी की मात्रा 35,000 मिलियन क्यूबिक मीटर से ज्यादा होगी।
सीईईडब्ल्यू की रिपोर्ट बताती है कि साल 2021 में निकलने वाले गंदे पानी के पुनर्उपयोग में 28 मिलियन मीट्रिक टन फल-सब्जी उगाने और इससे 966 अरब रुपये राजस्व पैदा करने की क्षमता थी। इसमें 1.3 मिलियन टन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम करने और उर्वरकों का इस्तेमाल घटाते हुए पांच करोड़ रुपये की बचत करने की क्षमता भी थी। भारत में हर साल प्रति व्यक्ति 1,486 क्यूबिक मीटर पानी उपलब्ध है, जो इसे जल की कमी वाला देश बनाता है।
सीईईडब्ल्यू की रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि गंदे पानी को भारत के जल संसाधनों का अभिन्न हिस्सा बनाना चाहिए। इसे जल प्रबंधन की सभी नीतियों, योजनाओं तथा विनियमों में शामिल करना चाहिए। गंदे पानी के सुरक्षित डिस्चार्ज और पुनर्उपयोग दोनों के लिए जल गुणवत्ता मानकों को अच्छी तरह से परिभाषित करने की जरूरत है।