मीडिया पर खोखले छापे, सरकार की फजीहत
न्यूज़ नशा इन दिनों रोज रात 9:00 बजे देश और प्रदेश से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करता है। जिसमें देश और प्रदेश के अधिकारी वरिष्ठ पत्रकार और नेता शामिल होते हैं। शनिवार की रात को न्यूज़ नशा पर चर्चा का मुद्दा था “मीडिया पर खोखले छापे, सरकार की फजीहत”
आपको बता दें इस चर्चा में वरिष्ठ पत्रकार शांतनु गुहा रे, वरिष्ठ पत्रकार दीपक शर्मा और वरिष्ठ पत्रकार दर्शन देसाई शामिल हुए थे।
इस दौरान न्यूज़ नशा की एडिटर इन चीफ विनीता यादव ने कई सवाल किए।
न्यूज नशा सवाल- जिस तरीके से पूरे विश्व के पत्रकार संगठनों के द्वारा इस तरह की रेड की निंदा की जा रही है वहीं दूसरी तरफ रेड करने पहुंची आईटी की टीम के अधिकारियों के द्वारा उन संस्थाओं से यह कहा गया है कि जरा खबर देखकर छापे क्या यह दबाव बनाने की कोशिश नहीं है ?
शांतनु गुहा रे– यह पहली बार नहीं हुआ है इसके पहले भी इस तरीके की जांचें और रेड मीडिया को दबाने के लिए सरकारों के द्वारा की गई है, पत्रकार का काम है पत्रकारिता करना और खबर को सामने लाना और रखना, अगर पत्रकार के यहां छापा पड़ रहा है तो इससे यह साफ है कि पत्रकारिता करने से रोका जा रहा है इससे यह भी साफ है की सरकार ठीक उसी तरीके से चाहती है जैसे हलवाई की दुकान में दूध हम सप्लाई करेंगे उसके आगे आपको जो करना है करें, इस वक्त पत्रकार का काम है पत्रकारिता करना और निष्पक्ष तरीके से अपनी बात को रखना मगर अफसोस की बात यह है कि इस वक्त भारत की पत्रकारिता भारत और पाकिस्तान की तरह बट गई है।
दीपक शर्मा -अगर आप सरकार के विरुद्ध जाकर यह दिखाएंगे यहां पर दवाई नहीं मिली पेरासिटामोल जैसी दवा अस्पतालों में उपलब्ध नहीं है आप अगर उत्तर प्रदेश के ग्राउंड जीरो पर उतर कर दिखाएंगे कि अस्पतालों की स्थिति सही नहीं है लोगों को बेड नहीं मिल रहा है सरकार के दावे झूठे हैं तो उनको तकलीफ होगी और जिसने इस तरीके की रिपोर्टिंग की है खबरें दिखाई हैं उनके यहां छापा पड़ा है, और जिन मुख्यधारा की मीडिया ने वह तस्वीर नहीं दिखाई जिन तस्वीरों को विदेशी मीडिया ने ड्रोन से लेकर दिखाई, उनके यहां छापा पड़ गया मगर उनके यहां छापा नहीं पड़ा जिन्होंने इस तस्वीरों को नहीं दिखाया हमारी आपत्ति इसी बात पर है कि आखिर कुछ चुनिंदा लोगों के ऊपर क्यों छापा पड़ रहा है और इसी बात पर सवाल उठता है कि आप ने उन मीडिया संस्थानों को चुना जिसने उत्तर प्रदेश में बड़ी आक्रामकता के साथ और सच्चाई के साथ खबरों को दिखाया है और यह छापा डालना पूरी तरीके से गलत है और इसकी निंदा हर जगह हो रही है।
दर्शन देसाई – हमने लखनऊ से ज्यादा गुजरात में काम किया है और गुजरात के पत्रकारों को यह रेड देखकर कोई आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि हम लोगों को एक आदत सी पड़ गई है गुजरात के पत्रकारों के साथ यहां आए दिन होता रहता है, अभी तो फोन से ट्रैक किया जाता है मगर पहले जब फोन नहीं हुआ करता था तो फिजिकली ट्रैक पत्रकार होते थे मैं भी कई बार ट्रैक हो चुका हूं जब मैं इंडियन एक्सप्रेस में हुआ करता था तो एक स्टोरी पर मैं गया था जिसके लिए सरकार के बड़े अधिकारी ने मेरे घर के लाइन लाइन पर फोन किया और कहा कि अपने एडिटर को कह दीजिए कि स्टोरी नहीं मिली मगर मैंने मना कर दिया, जब 2002 का गुजरात का दंगा चल रहा था तो उस वक्त भी खुद तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का फोन आया था और उन्होंने पूछा था तुम्हारा एजेंडा क्या है, इस तरीके से पत्रकारों को दबाने का और उनको ट्रैप करने का पुराना इतिहास रहा है जो कि गलत है
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