UP के इस गांव में 14 साल से बकरीद के पहले पुलिस उठा ले जाती है बकरे, जानिए क्यों?
संतकबीरनगर: उत्तर प्रदेश के के संत कबीर नगर (Sant Kabirnagar) का एक ऐसा गांव है, जहां पिछले कई सालों से बकरीद (Bakrid) के पहले पुलिस सारे बकरे उठा ले जाती है और तीन दिन बाद ये बकरे सकुशल वापस कर देती है. इस गांव में कुर्बानी (Qurbani) नहीं होती है. ये परंपरा 2007 से चलती चली आ रही है. जिले के मेहदावल तहसील के एक मुसहरा नाम का एक गांव है. इस गांव की स्टोरी चौंकाने वाली है. इस गांव में हर साल त्यौहार के समय तनाव सामने आता है. यहां एक तरफ हिंदू पक्ष बकरीद पर कुर्बानी नहीं करने देता तो बदले में मुस्लिम पक्ष के लोग होलिका दहन नहीं करने देते. दोनों पक्षों में वैसे तो और कभी तनाव देखने को नहीं मिलता लेकिन बकरीद और होली पर स्थिति तनावपूर्ण हो जाती है.
अब हर साल गांव में पुलिस कुर्बानी के बकरों को बकरीद के पहले उठा ले जाती है और त्योहार बीत जाने पर तीन दिन बाद ही वापस करती है. पूरा खयाल रखा जाता है कि कहीं कोई बकरीद पर कुर्बानी न कर दे. ऐसा संतकबीरनगर के छोटे से मुसहरा गांव में ही होता है। सुनने में जरा अजीब जरूर लगेगा पर यही सच्चाई है.
अब हर साल बकरीद आने पर वहां सुरक्षा के लिहाज से पुलिस फोर्स ओर पीएसी तक तैनात कर दी जाती है. पुलिस बकरीद के एक दिन पहले ही गांव में पहुंच जाती है और कुर्बानी के बकरों को कब्जे में लेकर गांव के पास बने एक मदरसे या सरकारी स्कूल में कैद कर देती है. त्योहार खत्म होने के तीन दिन बाद जाकर बकरे उनके मालिकों को वापस किये जाते हैं. इस मामले पर जिले के आलाधिकारियों की नजर रहती है. गांव में कोई हिंसा न हो, इसके लिये पुलिस बकरों को ले आती है ताकि कुर्बानी पर लगी रोक बरकरार रहे.
गांव के मुस्लिम पक्ष के लोगों ने बताया कि वो कुर्बानी करना चाहते हैं, लेकिन पुलिस और गांव के हिन्दू पक्ष के लोग उन्हें बकरीद पर कुर्बानी नहीं करने देते. इस मामले में पुलिस मदद करने के बजाय उन्हीं के बकरों को तीन दिन के लिये कैद कर लेती है. बकरीद खत्म होने के तीन दिन बाद बकरे वापस किये जाते हैं. पुलिस के कब्जे में भी मालिक को ही अपने बकरों की देखभाल करनी पड़ती है और इसकी कोई रसीद भी नहीं दी जाती कि लोग अपने बकरे पहचान सकें.
हालांकि गौर करने वाली बात यह भी है कि गांव में 365 दिन में 362 दिन बाजार में बकरे काटकर वैसे ही बेचे जाते हैं, लेकिन इस पर किसी को कोई आपत्ति नहीं होती. बस बकरीद के तीन दिन बकरे नहीं कटने दिये जाते. कोई चोरी-छिपे काट न ले, इसके लिये बकरों का कैद कर लिया जाता है.
हिन्दू पक्ष की दलील
हिन्दू पक्ष का कहना था कि कोई नई परंपरा नहीं बनने दी जाएगी. दलील और दावा ये कि जब कुर्बानी गांव के बाहर एक जगह पर होती आयी है तो गांव में कुर्बानी क्यों की गई? उनके मुताबिक जब बकरीद पर कुर्बानी नहीं करने दी गई तो मुस्लिम पक्ष के लोगों ने होलिका जलाने वाली जमीन को कब्रिस्तान की भूमि बताकर विवाद पैदा किया और पिछले कुछ साल से होलिका जलनी भी रुक गई.
तनाव लेकर आता है
ऐसा नहीं कि ये तनाव मिटाने के लिये प्रयास नहीं किये गए, पर दोनों पक्ष अपनी-अपनी जिद पर अड़े हैं. सुलह की पूरी कोशिश की गयी पर वो लोग मानने को तैयार नहीं हैं. गांव के लोगों ने जैसे अब तय कर रखा है कि एक दूसरे को त्योहार नहीं मनाने देंगे. कुल मिलाकर जरा सी आपसी सूझबूझ और सौहार्द्र की कमी के चलते इस गांव की खुशियां घरों में कैद होकर रह गयी हैं. खुशी के त्योहार भी अपने साथ तनाव लेकर आते हैं।
बकरीद के मद्देनजर रविवार को मेंहदावल के मुसहरा में पहुंचे एसडीएम अजय कुमार त्रिपाठी और सीओ अम्बरीष कुमार भदौरिया ने हिन्दू और मुस्लिम समाज के लोगों को समझाया और शांति व्यवस्था बनाने की अपील किया है. उन्होंने कहा कि यहां पर बकरीद की नई परंपरा के लिए कोई छूट नहीं दी जाएगी, जिससे विवाद हो सकता है. पुराने परंपरा के अनुसार ही बकरीद की त्योहार लोग मनाएंगे. जनपद के मुसहारा गांव में बकरीद के मद्देनजर पुलिस प्रशासन पूरी तरह अलर्ट है. दो दिन पहले से ही पुलिस का पहरा तेज हो जाता है और गांव के हर गली में सन्नाटा छा जाता है.
मुसहरा गांव के निवासी राममिलन का कहना है कि 2007 के पहले मुस्लिम समुदाय के लोग बगल के गांव मेंहदूपार से बकरे की कुर्बानी करके लाते थे. गांव में कुर्बानी न होने की परंपरा थी. लेकिन उस समय राजनीतिक लाभ के चलते तत्कालीन विधायक ने नई परंपरा की शुरुआत करते हुए 2007 में कुर्बानी कराने लगे, जिससे दो समुदायों में दंगा भड़क गया. इसमें हिन्दू पक्ष के 29 लोग जेल भी गए थे.
गांव के इंदल चौधरी का कहना है कि जैसे पुरानी परंपरा के अनुसार त्योहार मनाया जा रहा था. उसी अनुसार इस बार भी बकरीद की त्योहार मनाएंगे तो विवाद होने से बचा जा सकता है. उन्होंने कहा कि दंगा के बाद से प्रशासन पूरी तरह से अलर्ट रहता जिससे को विवाद ना हो.
मुसहरा गांव के नवनिर्वाचित प्रधान श्रीचंद्र निषाद ने कहा कि बकरीद के त्योहार पर लोगों से शांति की अपील की जा रही है. पुलिस प्रशासन भी पूरी तरह मुस्तैद है. पुराने परंपरा के अनुसार बकरे की कुर्बानी पर प्रतिबंध है. उन्होंने कहा कि प्रशासन कि तरफ से किसी भी तरह का कोई नई परंपरा नहीं है, जिससे विवाद बढ़ सकता है. प्रशासन के अनुसार ही परंपरागत त्योहार मनाया जाएगा.
मुसहरा गांव के निवासी हाफिज मोहम्मद अरमान का कहना है कि आजादी के बाद भी हम लोग आजाद नहीं हैं, मेरे हक को छीना जाता है. बकरीद में कुर्बानी के पहले ही पुलिस बकरों को उठा ले जाती है, जिससे कुर्बानी नहीं हो पाती है इसलिए हम लोगों ने त्योहार के बाद चौथे दिन उसी बकरे की कुर्बानी कर दोस्तों और रिश्तेदारों को खिलाया जाता है.
गांव के निवासी मोहम्मद नईम का कहना है कि हमारे समुदाय में बड़े त्योहारों में से एक है बकरीद का त्योहार. जिसे सभी मुसलमान बड़ी धूमधाम के साथ मनाते हैं, लेकिन इस खुशी से हम लोग वंचित रह जाते हैं. पुलिस कुर्बानी से पहले बकरे को उठा ले जाती है, जिससे हमारी खुशी छीन जाती है.