सुनंदा पुष्कर मामले में इंजेक्शन का निशान बना बड़ा सबूत, जानें कोर्ट ने क्या कहा
नई दिल्ली. सुनंदा पुष्कर की मौत के मामले में अभियोजन पक्ष चाहता था कि पुष्कर के हाथ पर मिले इंजेक्शन के निशान के आधार पर कोर्ट शशि थरूर (Shashi Tharoor) के खिलाफ हत्या का आरोप तय करे. जबकि, कोर्ट ने पाया कि हाथ पर लगा निशान KIMS त्रिवेंद्रम में इलाज के दौरान लगाए गए कैन्युला का है. थरूर को मुक्त करने के दौरान कोर्ट ने अपने विस्तृत आदेश में कहा है कि इंजेक्शन के निशान की मौजूदगी के आधार पर ही पुलिस ने FIR में थरूर पर हत्या के आरोप लगाए थे. कोर्ट ने पाया कि पुलिस को लगा कि जो निशान है, उसके जरिए ही जहर दिया गया था.
आखिरकार आत्महत्या और उत्पीड़न के आरोपों के साथ चार्जशीट दायर की गई. जबकि, अभियोजन पक्ष का कहना था कि यह साफ नहीं है कि मामला हत्या या आत्महत्या का है. ऐसे में थरूर के खिलाफ हत्या समेत सभी अपराध तय करने चाहिए. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, ‘इस आधार पर जांच होनी चाहिए थी कि यह आत्महत्या हो सकती है, का कारण हाथ पर इंजेक्शन के निशान की मौजूदगी थी. हालांकि, मेडिकल टीम ने निष्कर्ष निकाला है कि निशान KIMS, त्रिवेंद्रम में इलाज के दौरान लगाए गए कैन्युला का था.’
कोर्ट ने कहा कि यह KIMS त्रिवेंद्रम में उनके इलाज से जुड़े दस्तावेज और लेफ्टिनेंट कर्नल चंद्रिका टीजी की घोषणा से साबित होता है कि कैन्युला का आकार 20 ग्राम का था, जो 14 जनवरी 2014 को पुष्कर के हाथ में लगाया गया था. कोर्ट ने कहा, ‘इस बात का भी जिक्र है कि कैन्युला केवल एक बार डाली गई थी और उसी दिन दोपहर में डिस्चार्ज के समय हटा ली गई थी.’ अदालत ने कहा कि पहले से ही बगैर पता लगे निशान पर ही नया निशान बनाना नामुमकिन के बराबर है.
कोर्ट ने कहा कि साइकोलॉजिकल ऑटोप्सी रिपोर्ट में भी फॉरेंसिक रिपोर्ट का हवाला दिया गया और कहा गया है कि सीधे हाथ पर इंजेक्शन की चोट का निशान KIMS की तरफ से छोड़े गए कैन्युला का था. जैसा कि KIMS केरल की हॉस्पिटल अथॉरिटीज ने स्वीकार किया है. कोर्ट ने कहा कि उक्त रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि इस बात की संभावना कम ही है कि इस मामले में मौत का कारण हत्या हो सकती है.
किसी ने आत्महत्या की बात की पुष्टि नहीं की
अदालत की तरफ से जारी फैसले में कहा गया है कि मेडिकल बोर्ड्स में से किसी ने भी इस बात की पुष्टि नहीं की कि मौत आत्महत्या से हुई थी. फैसले के अनुसार, ‘AIIMS ऑटोप्सी बोर्ड ने कहा था कि मौत का कारण जहर और एल्प्राजोलम का अत्याधिक सेवन था. इसमें मौत के आत्महत्या, हत्या या दुर्घटना के बारे में कुछ नहीं लिखा था. डायरेक्टर जनरल ऑफ हेल्थ सर्विसेज की तरफ से गठित बोर्ड ने यह भी बताया कि इसके संबंध में कोई निश्चित राय नहीं दी जा सकती है.’
‘अपनी पहली रिपोर्ट में साइकोलॉजिकल ऑटोप्सी बोर्ड ने कहा था कि मौत हत्या या आत्महत्या नहीं थी. जबकि, दूसरी रिपोर्ट में बताया गया था कि मृतक को आत्महत्या के ख्याल थे, लेकिन यह नहीं कहा गया कि यह आत्महत्या थी और ना ही इस तरह की कोई सामग्री मिली जो इस बात की पुष्टि कर सके.’ फैसले में कहा गया है कि थरूर ने कभी भी इस तरह से कोई विचार या काम नहीं किया, जिससे सामान्य हालात में पुष्कर आत्महत्या के लिए प्रेरित हों.
फैसले में कहा गया है कि थरूर की तरफ से दहेज की मांग और उत्पीड़न के कोई आरोप नहीं है. साथ ही ऐसा भी कुछ नहीं है, जिससे यह पता लग सके कि मृतका के साथ उन्होंने कोई शारीरिक क्रूरता की थी. फैसले के मुताबिक, ‘भले ही अभियोजन के मामले को फेस वैल्यू के आधार पर लिया जाए कि आरोपी के संबंध थे और मृतका परेशान, नाराज, दुखी और मानसिक तौर से परेशान थी. आगे इससे जुड़ा कुछ नहीं मिलने पर यह नहीं कहा जा सकता कि यह मानसिक क्रूरता होगी.’
कोर्ट ने कहा कि यह स्थापित कानून है कि अगर परिणामस्वरूप आत्महत्या होती है, तो उसे विवाह से जुड़े विवादों को उकसाना नहीं माना जा सकता. न्यायालय ने फैसले में कहा, ‘काफी जोर इस बात पर डाला गया कि आरोपी का कथित रूप से संबंध है. जबकि, इस बात को दोहराया जा सकता है कि गवाहों के बयान दिखाते हैं कि मृतका आरोपी के कथित संबंध के चलते परेशान, छला हुआ महसूस कर रही थी, बैचेन थी. अभियोजन ने ऐसा कुछ भी पेश नहीं किया, जो दिखा सके कि आरोपी ने मृतका को आत्महत्या के लिए उकसाया था.’
फैसले में कहा गया है, ‘अभियोजन एक भी ऐसा मौका नहीं बता सका, जहां आरोपी ने उद्देश्यपूर्ण तरीके से ऐसा कुछ भी किया हो, जिसके चलते अपराध होने में मदद मिली. अभियोजन ने तर्क दिया कि आरोपी ने संबंध नहीं रखने का वादा करने के बाद भी अपने संबंध जारी रखे और उनका जानबूझकर गलत बयानबाजी करना उकसावे को दिखाता है. हालांकि, इस तर्क का कोई मतलब नहीं है क्योंकि अभियोजन के मामले के आधार पर भी आरोपी ने अपने कथित संबंध को छिपाने के लिए कदम उठाए. साथ ही ऑन रिकॉर्ड ऐसा कुछ भी नहीं है कि आरोपी ने मृतका को जब तब परेशान या चिढ़ाने के लिए ऐसा काम किया, जब तक कि उसने कड़ी प्रतिक्रिया नहीं दी या मृतका को आत्महत्या के लिए उकसाने, अपील करने या प्रोत्साहित करने के इरादे से कोई काम किया.’