‘करणी सेना’ के सामने अब ‘यादव सेना’, राणा सांगा विवाद में भाजपा को बड़ा झटका.. सपा के पाले में दलित

राणा सांगा पर विवाद से UP की सियासत में नया मोड़, अगड़ा-दलित ध्रुवीकरण के संकेत

उत्तर प्रदेश की राजनीति में इन दिनों समाजवादी पार्टी (सपा) के राज्यसभा सांसद रामजीलाल सुमन का बयान केंद्र बिंदु बन गया है। राणा सांगा को लेकर दिए गए उनके बयान के बाद करणी सेना समेत क्षत्रिय समाज ने आक्रोश जताया है। वहीं, सपा ने दलित समुदाय के समर्थन से इस विवाद को अपने पक्ष में मोड़ने की रणनीति बना ली है।

इस पूरे घटनाक्रम का सबसे बड़ा असर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर पड़ता दिख रहा है, खासकर उसके दलित वोट बैंक पर। आइए इस विवाद को विस्तार से समझते हैं—

विवाद की शुरुआत: रामजीलाल सुमन ने क्या कहा?

21 मार्च को राज्यसभा में सपा सांसद रामजीलाल सुमन ने एक बयान में कहा,

मुसलमानों में बाबर का डीएनए है तो हिंदुओं में किसका है? बाबर को भारत में लाने वाला राणा सांगा था। अगर मुसलमान बाबर की औलाद हैं, तो तुम गद्दार राणा सांगा की औलाद हो।

सुमन के इस बयान से करणी सेना और क्षत्रिय समाज आक्रोशित हो गए। उन्होंने सुमन के खिलाफ प्रदर्शन शुरू कर दिए और सपा पर हिंदू वीरों के अपमान का आरोप लगाया।

भाजपा की मुश्किलें: दलित वोट बैंक खिसकने की आशंका

उधर, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा पहले ही लोकसभा चुनाव 2024 में दलित वोटों के कुछ हिस्से को सपा की तरफ जाते देख चुकी है। ऐसे में यह नया विवाद भाजपा के लिए और भी चुनौतीपूर्ण बन गया है।

भाजपा का परंपरागत क्षत्रिय समर्थन अब सुमन के बयान के बाद और मुखर हो रहा है, लेकिन इसी के साथ दलितों में एक अलग असंतोष पनप रहा है। करणी सेना के तलवार लेकर सड़कों पर प्रदर्शन करने के दृश्य दलित समाज को भाजपा के खिलाफ मोड़ सकते हैं।

इसी डैमेज कंट्रोल के लिए भाजपा ने अंबेडकर जयंती पर 12 दिवसीय कार्यक्रम शुरू किए हैं। पार्टी के तमाम दलित नेता, जैसे बेबीरानी मौर्य, असीम अरुण और ब्रजलाल, एक्टिव मोड में हैं। फिर भी नुकसान की आशंका बनी हुई है।

सपा की चतुर रणनीति

पहले ऐसा लग रहा था कि रामजीलाल सुमन का बयान सपा के लिए सेल्फ गोल साबित होगा, लेकिन करणी सेना के विरोध प्रदर्शनों ने सियासी हवा सपा की ओर मोड़ दी।

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने तुरंत राजनीतिक मोर्चा संभाला—दलित नेता इंद्रजीत सरोज को फ्रंटफुट पर लाया, अयोध्या सांसद अवधेश प्रसाद को रामनवमी पर रामलला दर्शन के लिए भेजा और अब वे खुद 19 अप्रैल को रामजीलाल सुमन के घर जा रहे हैं।

इन सबके जरिए सपा ‘पीडीए’ यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक वर्ग की एकजुटता का संदेश देने की कोशिश कर रही है। यह रणनीति 2027 विधानसभा चुनाव को देखते हुए काफी महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।

बसपा और RSS की चिंता बढ़ी

इस विवाद से बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती भी चिंतित हैं। उन्हें डर है कि दलित वोट सपा की ओर शिफ्ट हो सकता है, जिससे बसपा का जनाधार और कमजोर होगा।

वहीं, आरएसएस के लिए भी यह स्थिति झटका है। संगठन लंबे समय से हिंदुत्व के नाम पर दलितों को जोड़ने की कोशिश कर रहा है। लेकिन करणी सेना के आंदोलन से केवल ठाकुर समाज एकजुट हो रहा है, जबकि दलित समुदाय अलग-थलग महसूस कर रहा है।

क्या भाजपा दलित समर्थन बनाए रख पाएगी?

भाजपा प्रवक्ता समीर कुमार सिंह और एससी आयोग के अध्यक्ष वैद्यनाथ रावत जैसे नेता दावा कर रहे हैं कि दलित भाजपा के साथ बना रहेगा। लेकिन जमीनी हालात कुछ और कहानी बयां कर रहे हैं।

2024 लोकसभा चुनाव में सपा को मिला दलित समर्थन अगर 2027 विधानसभा चुनाव तक बरकरार रहता है, तो भाजपा को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है।

राणा सांगा विवाद में कौन हारा, कौन जीता?

  • सपा: चतुर रणनीति से पीडीए वोट बैंक को मजबूत करने की कोशिश, फायदा संभव।
  • भाजपा: दलितों और अगड़ों के बीच संतुलन साधने की चुनौती, नुकसान की आशंका।
  • बसपा: सियासी हाशिए पर धकेली जा रही, जनाधार बचाने की चुनौती।
  • RSS: दलित-हिंदू एकता की मुहिम को झटका।

बहरहाल इस पूरे मुद्दे पर राजनीतिक विश्लेषण कहता है कि रामजीलाल सुमन का एक बयान यूपी की राजनीति में गहराई से असर डाल रहा है। दलितों के सम्मान और पहचान के सवाल पर सपा को मौका मिला है, वहीं भाजपा को अगड़ी और दलित जातियों के बीच फंसी सियासत को संभालना चुनौती बन गया है।

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