पाक PM ने कहा- अमेरिका ने अफगानिस्तान में सब गड़बड़ कर दिया, राजनीतिक समझौते से ही निकलेगा हल
फोटो इमरान खान के इंटरव्यू की है, जो अमेरिकी न्यूज चैनल के पत्रकार ने लिया है।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अफगानिस्तान में बिगड़ते हालातों के लिए अमेरिका को जिम्मेदार ठहराया है। अमेरिकी न्यूज चैनल PBS के पत्रकार जूडी वुड्रूफ को दिए इंटरव्यू में इमरान ने कहा कि अमेरिका ने तालिबान को ठीक से हैंडल नहीं किया और सब गड़बड़ कर दिया। इस इंटरव्यू का प्रसारण पाकिस्तान में मंगलवार रात को किया गया। इस इंटरव्यू में इमरान ने अमेरिका के खिलाफ जमकर भड़ास निकाली।
अफगानिस्तान की समस्या पर अमेरिका का रुख कैसा रहा?
अफगानिस्तान की समस्या का हल सेना के जरिए नहीं निकाला जा सकता। मैं शुरू से ही यह कहता आया हूं, लेकिन मेरी बात कभी नहीं सुनी गई। उल्टा मुझे तालीबान खान और अमेरिका विरोधी कहकर संबोधित किया गया। मेरे जैसे कई और लोग ये बात दोहराते आए हैं। इसके पीछे एक बड़ा कारण है। मैं इतिहास से वाकिफ हूं।
अमेरिका से क्या गलतियां हुईं?
US ने जब इस बात को समझा कि अफगानिस्तान की समस्या का सैन्य हल नहीं निकाला जा सकता, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। एक समय अफगानिस्तान में अमेरिका के 10 हजार से ज्यादा सैनिक थे और सही मायनों में ये ही वह वक्त था, जब अमेरिका को तालिबान से समझौता करना चाहिए था।
तालिबान का अफगानिस्तान में दोबारा लौटना क्या वहां के लोगों के लिए अच्छा है?
राजनीतिक समझौता ही अफगानिस्तान के भविष्य के लिए बेहतर है। यही एकमात्र रास्ता भी है। सच यह है कि अब तालिबान अफगानिस्तान की सरकार में शामिल रहेगा।
तालिबान के बढ़ते प्रभाव को पाकिस्तान किस तरह देखता है?
यदि अफगानिस्तान गृह युद्ध की तरफ बढ़ता है तो इसका असर पाकिस्तान पर भी पड़ेगा। हमारे मुल्क के सामने शरणार्थी समस्या खड़ी हो जाएगी। पहले ही पाकिस्तान में 30 लाख से ज्यादा अफगान शरणार्थी हैं। इनकी संख्या बढ़ने पर हमें परेशानी होगी, हमारे देश की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि शरणार्थी समस्या का सामना कर सकें।
पाकिस्तान पर किस तरह का असर पड़ेगा ?
तालिबान पश्तूनों का संगठन है। यदि अफगानिस्तान में गृहयुद्ध जैसी स्थिति बनती है तो हमारे देश के पश्तून भी उसमें शामिल हो सकते हैं। इससे परेशानी और बढ़ेगी।
पाकिस्तान पर तालिबान को आर्थिक मदद मुहैया कराने के आरोप लगते रहे हैं?
ये बिल्कुल गलत आरोप है। अल कायदा ने जब वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला किया तो उसमें एक भी पाकिस्तानी नागरिक शामिल नहीं था। उस समय तालिबान का कोई लड़ाका पाकिस्तान में नहीं था। अमेरिका और तालिबान की लड़ाई में 70 हजार से ज्यादा पाकिस्तानी नागरिकों की मौत चुकी है। अफगानिस्तान में चल रहे युद्ध से पाकिस्तान को 150 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है।
क्या और कैसा है तालिबान?
1979 से 1989 तक अफगानिस्तान पर सोवियत संघ का शासन रहा। अमेरिका, पाकिस्तान और अरब देश अफगान लड़ाकों (मुजाहिदीन) को पैसा और हथियार देते रहे। जब सोवियत सेनाओं ने अफगानिस्तान छोड़ा तो मुजाहिदीन गुट एक बैनर तले आ गए। इसको नाम दिया गया तालिबान। हालांकि तालिबान कई गुटों में बंट चुका है।तालिबान में 90% पश्तून कबायली लोग हैं। इनमें से ज्यादातर का ताल्लुक पाकिस्तान के मदरसों से है। पश्तो भाषा में तालिबान का अर्थ होता हैं छात्र या स्टूडेंट।पश्चिमी और उत्तरी पाकिस्तान में भी काफी पश्तून हैं। अमेरिका और पश्चिमी देश इन्हें अफगान तालिबान और तालिबान पाकिस्तान के तौर पर बांटकर देखते हैं।1996 से 2001 तक अफगानिस्तान में तालिबान की हुकूमत रही। इस दौरान दुनिया के सिर्फ 3 देशों ने इसकी सरकार को मान्यता देने का जोखिम उठाया था। ये तीनों ही देश सुन्नी बहुल इस्लामिक गणराज्य थे। इनके नाम थे- सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और पाकिस्तान।