अयोध्या मामले में फैसले के पहले ही ये मुसलमान हिंदुओं को गिफ्ट करना चाहते हैं मंदिर!
दशकों से चलते आ रहे अयोध्या राम मंदिर- बाबरी मस्जिद विवाद में एक नया मोड़ आया है । जहां एक तरफ सुप्रीम कोर्ट ने 17 अक्टूबर तक फैसला करने की बात कही है, और हिन्दू अपने पक्ष में फैसले के लिए प्रार्थना कर रहे हैं, वहीं कुछ मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने मामले में मध्यस्थता का रुख अपना लिया है । उन्होंने मुस्लिमो के पक्ष में फैसला आने की संभावना में जीती हुई ज़मीन को हिंदुओं को भेंट करने की बात कही है ।
इंडियन मुस्लिम्स फॉर पीस के बैनर तले गुरुवार को हुई मुस्लिम बुद्धजीवियों की बैठक में पूर्व जज, शिक्षाविद्, पूर्व नौकरशाह, वकील और पत्रकार शामिल हुए । इस बैठक में अयोध्या की विवादित जमीन को हिंदुओं को सौंपने के प्रस्ताव पर सहमति जताई गई । प्रस्ताव के अनुसार विवादित ज़मीन हिंदुओं को सौंपने के बदले में मस्जिद के लिए कहीं वैकल्पिक जमीन दी जाए । इस प्रस्ताव को सुप्रीम कोर्ट और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड भेजने पर भी सहमति बनी । मामले पर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के पूर्व कुलपति रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल जमीरुद्दीन शाह ने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट का फैसला हमारे पक्ष में आ भी जाए तो मस्जिद बनना मुमकिन नहीं है । लिहाजा बहुसंख्यक हिंदुओं की भावनाओं को देखते हुए जमीन उन्हें गिफ्ट कर दी जाए । इससे सौहार्द बना रहेगा । उन्होंने कहा कि इस बात पर सुन्नी सेंट्रल बोर्ड भी हमारे साथ है । हालांकि सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के पदाधिकारियों ने इस तरह की किसी भी बातचीत से इनकार किया है ।
इन्होने किया विरोध
गौरतलब है कि इंडियन मुस्लिम्स फ़ॉर पीस के इस प्रस्ताव पर आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड की तरफ से विरोध देखने को मिला है । बोर्ड के सचिव जफरयाब जिलानी ने कहा कि अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट जो भी फैसला करेगा उसे ही माना जाएगा । उन्होंने कहा कि इस मामले में पर्सनल लॉ बोर्ड और बाबरी एक्शन कमेटी का स्टैंड आज भी वही है । इंडियन मुस्लिम्स फॉर पीस की पहल पर उन्होंने कहा कि वो खुद तय करें कि वो मुस्लिमों की नुमाईंदगी कर रहे हैं या फिर सरकार की । इस मामले में पक्षकार इक़बाल अंसारी ने भी कहा कि वो सुप्रीम कोर्ट का ही फैसला मानेंगे । वहीं इस विवाद को लेकर पूर्व आईएएस अनीस अंसारी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा लड़ना सभी का संवैधानिक अधिकार है, लेकिन मध्यस्थता बेहतर रास्ता है । इसी के चलते उन्होंने पास किए गए प्रस्ताव को सुन्नी वक्फ बोर्ड के मार्फत सुप्रीम कोर्ट की मध्यस्थता समिति को भेजने की बात कही ।