जब कोरोना में कोई करीबी न रहे
बच्चे खुद को जिम्मेदार न मान बैठें, इसलिए उन्हें साफ शब्दों में खबर दें; व्यवहार बदले तो एक्सपर्ट की सलाह लें
कोरोना की दूसरी लहर ने देश में काफी तबाही मचाई। कोविड-19 की वजह से कई परिवार पूरी तरह खत्म हो गए हैं, तो कई बच्चे अनाथ हो गए हैं। कई तो ऐसे भी हैं जिनकी देखभाल करने वाला परिवार को कोई सदस्य नहीं बचा है।
लैंसेट के डेटा के मुताबिक भारत में करीब 1.19 लाख बच्चों ने अपने पेरेंट्स या फिर प्राइमरी केयर गिवर यानी प्राथमिक तौर पर बच्चों की देख-रेख करने वालों को खोया। इनमें से 25,500 बच्चों ने अपनी मां को खोया तो वहीं, 90,751 बच्चों ने अपने पिता को खो दिया। ऐसे ही न जाने कितने बच्चों ने अपने करीबी रिश्तेदारों को खोया है।
बच्चे कोरोना की वजह से घरों में बंद रहने पर वैसे भी मेंटल हेल्थ की समस्या से जूझ रहे हैं। ऐसे में कई पेरेंट्स को यह चिंता सता रही है कि जो बच्चा पहले से परेशान है उसे इस बारे में कैसे बताएं कि उसने अपने किसी करीबी को खोया है?
बच्चों से साफ और सीधे शब्दों में बात करें
अमेरिका के नेशनल आलियांस फॉर चिल्ड्रन ग्रीफ का कहना है कि बच्चों को जब भी किसी अपने की मौत के बारे में बताएं तो उन्हें साफ और सीधे शब्दों में बताएं। किसी ऐसे तरीके से बात न करें कि उन्हें कन्फ्यूजन हो। उन्हें ये समझ आए कि क्या हुआ है और हम शोक क्यों मना रहे हैं। एक छोटा बच्चा डेथ को इस तरह से समझता है कि जब किसी की मौत होती है, तो उसका शरीर काम करना बंद कर देता है।
साइकोलॉजिस्ट लिसा डामोर ने UNICEF से बातचीत में कहा है कि बच्चों का यह जानना बेहद जरूरी है कि उन्होंने किसी अपने को खो दिया है, लेकिन ये बताते वक्त इस बात का ख्याल रखना भी जरूरी होता है कि इससे उनकी मानसिक सेहत पर ज्यादा असर न हो।
बच्चों को उनके करीबियों की मौत के बारे में इस तरह बताएं….
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बच्चों से सच्चाई छिपानी नहीं चाहिए और न ही सच बताने में देरी करनी चाहिए।जब बच्चों को यह बताएंगे तो उनका भरोसा आप पर बढ़ जाएगा और इससे उन्हें अपने दुख से उबरने में मदद मिलेगी।बच्चों से क्या बात करेंगे और किस तरह उन्हें बताएंगे यह पहले ही सोच लें।बच्चों से बात करने के लिए सुरक्षित और शांत जगह पर उन्हें अपने साथ बैठाएं।अगर बच्चा किसी खिलौने या ऐसी किसी चीज के साथ ज्यादा कंफर्टेबल है तो उसे वह चीज साथ रखने के लिए कहें।बच्चों से धीरे-धीरे बात करें और बीच में कुछ देर रुकें, ताकि वो समझ सकें कि आप कहना क्या चाह रहे हैं।अगर आप रुक-रुक कर बात करेंगे तो अपनी फीलिंग्स पर भी कंट्रोल कर पाएंगे।बच्चे ये सब सुनने के बाद कई तरह के सवाल भी करेंगे, तो आपको उनके हर सवाल का जवाब देने के लिए भी तैयार रहना होगा।कई बार ऐसी बातें सुनकर बच्चे खुद को इसका जिम्मेदार मानने लगते हैं। जैसे- किसी बच्चे ने अगर अपना पिता खोया है तो उसे लगता है कि वह अपने पिता की बात नहीं मानता था इसलिए वो उसे छोड़कर चले गए। इसलिए उनसे बात करते वक्त यह जरूर समझाएं कि इसमें किसी की कोई गलती हैं, पापा की बॉडी में वायरस ने अटैक कर दिया था, जिसकी वजह से वे सांस नहीं ले पा रहे थे और उनकी मौत हो गई।
बच्चों का दुख उनकी डेवलपमेंट स्टेज के आधार पर अलग-अलग होता है
अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स का कहना है कि बच्चों का दुख भी उनकी डेवलपमेंट स्टेज के आधार पर अलग-अलग होता है। यानी बच्चा किस उम्र का है, उसकी सोचने-समझने की क्षमता कितनी है, उनका दुख इन बातों पर आधारित होता है।
अमेरिका के ग्रीफ काउंसलिंग एक्सपर्ट मीन्स-थॉम्पसन का कहना है कि यह बच्चों की उम्र, उनके दिमाग के डेवलपमेंट, मौत की अपरिवर्तनीय प्रकृति (इरिवर्सिबल नेचर) को लेकर उनकी समझ आधारित होता है। जैसे-जैसे वे अपने जीवन के अलग-अलग चरणों से गुजरते हैं, वे ग्रीफ को नए और अलग-अलग तरीकों से समझने लगते हैं।
मैरीलैंड में बच्चों और उनके दुख पर काम करने वाली एक थेरेपिस्ट लिंडा गोल्डमैन कहती हैं कि यह जानना महत्वपूर्ण है कि बच्चे वयस्कों की तुलना में अलग तरह से शोक मनाते हैं। कई बार बच्चे कुछ ऐसा गेम खेलते हुए नजर आते हैं जो लोगों को बहुत अजीब लग सकता है, लेकिन असल में वो इसके जरिए अपना दुख कम करने की कोशिश करते हैं।
करीबियों की मौत के दुख की वजह से बच्चों की मेंटल हेल्थ प्रभावित न हो उसके लिए इन बातों का ध्यान रखें…
बच्चे जिस पर सबसे ज्यादा भरोसा करते हैं या अपना मानते हैं वो लगातार बच्चों की देखभाल करें, उन्हें प्यार करें।शिशु या फिर छोटे बच्चे प्यार भरे फिजिकल कॉन्टैक्ट, कडलिंग, सिंगिंग के माध्यम से यह महसूस करते हैं कि आप उन्हें प्यार कर रहे हैं और वो अपके साथ सुरक्षित महसूस करते हैं।बच्चों के डेली रुटीन को बनाए रखने की कोशिश करें। जैसे कि, उनका होमवर्क, एक्सरसाइज, खेलने का टाइम वैसा ही रखें जैसे पहले था।अगर बच्चे के व्यवहार में कुछ बदलाव दिखे तो उसे पनिशमेंट देने के बदले ये समझने की कोशिश करें कि वे अपना दुख बता नहीं पा रहे हैं।बच्चों के साथ खेलने वाले बच्चों को और उनके टीचर को भी इस बारे में जरूर बताएं, ताकि वो भी बच्चे का सपोर्ट कर सकें, उन्हें समझ सकें।
नेशनल आलियांस फॉर चिल्ड्रन ग्रीफ के मुताबिक अगर बच्चों में किसी करीबी की मौत का पता चलने के बाद ये लक्षण दिखें या व्यवहार में बदलाव दिखे तो समझिए कि वो अपने दुख से उबर नहीं पा रहे हैं, उन्हें एक्सपर्ट की जरूरत है..